महिला कर्मचारियों को उनके कार्यक्षेत्र  मे अधिकार

भारत में हर मिनट महिलाओं के खिलाफ कोई न कोई अपराध हो रहा होता है.  ऐसे में आज के जमाने में महिलाएं बाहर तो क्या अपने घर-दफ्तर में भी सुरक्षित नहीं हैं.आज  बहुत जरूरी है कि महिलाएं हमेशा अलर्ट रहें और अपने अधिकारों के बारे मे जागरूक रहे।
 प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961)

अक्सर मां बनते ही महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे नौकरी छोड़ दें.पर अब सरकार विभिन्न संस्थाओं में कार्यरत महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के लिषसूति अवकाश की विशेष व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 42 के अनुकूल करने के लिए 1961 में प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत पूर्व में 90 दिनों का प्रसूति अवकाश मिलता था। अब 135 दिनों का अवकाश मिलने लगा है।

अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम, 1979 एवं ठेका श्रम अधिनियम, 1970 शासन ने ‘अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम 1979 पारित करके विशेष नियोजनों में महिला कर्मचारियों के लिए पृथक शौचालय एवं स्नान ग्रहों की व्यवस्था करना अनिवार्य किया है। इसी प्रकार ‘ठेका श्रम अधिनियम 1970 द्वारा यह प्रावधान रखा गया है कि महिलाओं से एक दिन में मात्र घंटे में ही कार्य लिया जाए।

महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013

महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए और कार्यस्थल पर उसके अधिकारों की रक्षा करने के लिए महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 अधिनियमित किया गया है । राष्ट्रीय महिला आयोग ने उपर्युक्त अधिनियम पर विचार-विमर्श करने के लिए तारीख 3 फरवरी, 2015 को राज्य आयोगों के साथ एक संवाद बैठक का आयोजन किया । अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों में ऐसी शिकायतों पर विचार करने के लिए आंतरिक परिवाद समिति (आई.सी.सी.) गठित करने का भार नियोजक पर और स्थानीय परिवाद समिति (एल.सी.सी.) गठित करने का भार जिला अधिकारी पर डाला गया है ।

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इसमे निम्न को शामिल किया गया है ।

i) आंतरिक परिवाद समिति/स्थानीय परिवाद समिति के गठन की मानीटरिंग – राज्य महिला आयोगों को अपने-अपने राज्यों में जिला स्तर पर आंतरिक परिवाद समितियों और स्थानीय परिवाद समितियों के गठन को मानीटर करना चाहिए ।

(ii) आंतरिक परिवाद समिति/स्थानीय परिवाद समिति के कार्यकरण की मानीटरिंग – राज्य महिला आयोगों को अपने-अपने राज्यों में जिला स्तर पर आंतरिक परिवाद समितियों और स्थानीय परिवाद समितियों के कार्यकरण को मानीटर करना चाहिए । जिला अधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग की सिफारिश की जाती है ।

(iii) जागरुकता कार्यक्रम – राज्य महिला आयोगों को अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के बारे में इनके बेहतर कार्यान्वयन के लिए अपने-अपने राज्यों में जानकारी के प्रचार-प्रसार के लिए नियमित रूप से कार्यक्रम आयोजित करने चाहिएं ।

(iv) आंतरिक परिवाद समिति में – राज्य आयोगों को अपने-अपने कार्यालयों में आंतरिक परिवाद समितियों का गठन भी सुनिश्चित करना चाहिए ।

(v)  संगठनों के साथ सहयोग – राज्य आयोगों को आंतरिक परिवाद समिति के सदस्यों के लिए कार्यशालाओं, विषय बोध और जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन करने और संसाधन व्यक्ति उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिए ।

(vi) वार्षिक रिपोर्ट – आंतरिक परिवाद समितियों और स्थानीय परिवाद समितियों के कार्यक्रम से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट की प्रतियां संगठनों और जिला अधिकारियों द्वारा राज्य महिला आयोग को उपलब्ध कराई जानी चाहिएं ।

 समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 (Equal Remuneration Act, 1976)

यह अधिनियम कार्यस्थल पर सैलरी के मामले में भेदभाव को रोकता है. समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 सारे भारत में लागू है। केन्द्रीय सरकार को इसे विभिन्न स्थानों या नियोजनों में लागू करने की शक्ति प्राप्त है। अब तक यह अधिनियम देश के अधिकांश उद्योगों, स्थापनों या नियोजनों में लागू किया जा चुका है। अगर किसी अधिनिर्णय, समझौते या सेवा की संविदा या किसी अन्य कानून के उपबंध इस अधिनियम के उपबंधों के विरोध में हों, तो वहाँ इसी अधिनियम के उपबंध लागू होंगे।

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पुरुष और स्त्री-कर्मकारों को समान पारिश्रमिक देने के संबंध में नियोजक का दायित्व

स्त्री और पुरुष कामगारों की भरती और नियोजन की शर्तों में भेदभाव करने का प्रतिशेध

उन स्थितियों को छोड़कर जहाँ स्त्रियों के नियोजन को प्रतिशिद्ध या प्रतिबंधित किया गया है, इस अधिनियम के प्रारंभ होने पर कोई भी नियोजक एक ही या समान प्रकृति के कार्य पर भरती करते समय स्त्रियों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं करेगा। स्त्रियों के साथ भेदभाव की मनाही भरती के उपरांत सेवा की दशाओं जैसे पदोन्नति, प्रशिक्षण या स्थानांतरण के संबंध में भी की गई हैं। लेकिन, भेदभाव-संबंधी उपर्युक्त उपबंध अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, भूतपूर्व सैनिकों, छंटनी किए गए कर्मचारियों या अन्य वर्ग या श्रेणी के व्यक्तियों से संबंद्ध प्राथमिकताओं या आरक्षण के साथ लागू नही होगें।

 कारखाना अधिनियम, 1948 (The Factories Act, 1948)

अगर आप किसी कारखाने में काम करते हैं और वहां काम करने की स्थिति खराब है तो आपके नियोक्ता को दंडित किया जाना चाहिए।
महिला कर्मचारियों की शिफ्ट के समय में कोई बदलाव होता है तो उन्हें 24 घंटे का नोटिस मिलना चाहिए. यदि किसी कारखाने में 30 से अधिक महिला कर्मचारी हैं,  तो वहां छह साल या इससे कम उम्र के बच्चों के लिए एक क्रे᠎श्‌ (Creche) होना चाहिए।

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