जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 187 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी.
धारा 188
इस धारा मे भारत से बाहर किया गया अपराध को बताया गया है।
जब कोई अपराध भारत से बाहर किया गया होता है —
(क) भारत के किसी नागरिक के द्वारा चाहे खुले समुद्र पर या अन्यत्र कही किया गया अपराध , अथवा
(ख) किसी व्यक्ति के द्वाराकिया गया अपराध जो भारत का नागरिक नहीं है। , भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या विमान पर
किया जाता है। और तब उस अपराध के बारे में उसके विरुद्ध ऐसे कार्यवाही की जा सकती है । मानो वह अपराध भारत के अन्दर उस स्थान में किया गया है जहां वह पाया गया है।
परन्तु इस अध्याय की पूर्ववर्ती धाराओं में से किसी बात के होते हुए भीकिसी ऐसे किसी अपराध की भारत में जांच या उसका विचारण केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं किया जाएगा।
धारा 189
इस धारा के अनुसार भारत के बाहर किए गए अपराधों के बारे में साक्ष्य लेना बताया गया है।
जब किसी ऐसे अपराध की जिस अपराध मे जिसका भारत से बाहर किसी क्षेत्र में किया जाना अभिकथित है। या फिर जहा जांच या विचारण धारा 188 के उपबन्धों के अधीन किया जा रहा है। तब ऐसे दशा मे यदि केन्द्रीय सरकार उचित समझे तो यह निदेश दे सकती है । कि उस क्षेत्र में या उस क्षेत्र के लिए न्यायिक अधिकारी के समक्ष या उस क्षेत्र में या उस क्षेत्र के लिए भारत के राजनयिक या कौंसलीय प्रतिनिधि के समक्ष दिए गए अभिसाक्ष्यों की या पेश किए गए प्रदर्शों की प्रतियों को ऐसी जांच या विचारण करने वाले न्यायालय द्वारा किसी ऐसे मामले में साक्ष्य के रूप में लिया जाएगा जिसमें ऐसा न्यायालय ऐसी किन्हीं बातों के बारे में जिनसे ऐसे अभिसाक्ष्य या प्रदर्श सम्बन्धित हैं साक्ष्य लेने के लिए कमीशन जारी कर सकता है।
धारा 190
इस धारा के अनुसार मजिस्ट्रेटों द्वारा अपराधों का संज्ञान मे लिया जाना बताया गया है ।
(1) इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए यदि कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और उपधारा (2) के अधीन विशेषतया सशक्त किया गया कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेटजो किसी भी अपराध का संज्ञान निम्नलिखित दशाओं में कर सकता है :-
(क) जैसे उन तथ्यों का जिनसे ऐसा अपराध बनता है । उसका परिवाद प्राप्त होने पर ;
(ख) ऐसे तथ्यों के बारे में पुलिस रिपोर्ट पर ;
(ग) पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति से प्राप्त इस इत्तिला पर या स्वयं अपनी इस जानकारी पर कि ऐसा अपराध किया गया है ।
(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे अपराधों का, जिनकी जांच या विचारण करना उसकी क्षमता के अंदर है, उपधारा (1) के अधीन संज्ञान करने के लिए सशक्त कर सकता है ।
धारा 191
इस धारा के अनुसारअभियुक्त के आवेदन पर अन्तरण को बताया गया है।
इसके अनुसार जब मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संज्ञान धारा 190 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अधीन करता है। तब ऐसे दशा मे अभियुक्त को जो कोई साक्ष्य लेने से पहले, उसको इत्तिला दी जाएगी कि वह मामले की किसी अन्य मजिस्ट्रेट से जांच या विचारण कराने का हकदार है। और यदि अभियुक्त, या यदि एक से अधिक अभियुक्त हैं। तो उनमें से कोई, संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष आगे कार्यवाही किए जाने पर आपत्ति करता है तो मामला उस अन्य मजिस्ट्रेट को अंतरित कर दिया जाएगा जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाएगा।
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