दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 122 और 123 का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 121  तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 122

इस धारा के अनुसार प्रतिभूति देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास को बताया गया है।

(1) (क) यदि कोई व्यक्ति जिसे धारा 106 या धारा 117 के अधीन प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया है। जिसके अनुसार ऐसी प्रतिभूति  जो की उस तारीख को या उस तारीख के पहले  या फिर  जिसको वह अवधि जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति दी जानी है। यदि उस धारा की   प्रारंभ होती है। और यह  नहीं देता है।  तो वह इसमें इसके पश्चात् ठीक उस धारा के अनुसार बताए गए धारा  के सिवाय कारागार में भेज दिया जाएगा । और  यदि वह पहले से ही कारागार में है तो वह कारागार में तब तक बंद  रखा जाएगा जब तक ऐसी अवधि समाप्त न हो जाए।  या जब तक ऐसी अवधि के भीतर वह उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को प्रतिभूति दे दे जिसने उसकी अपेक्षा करने वाला आदेश दिया गया था ।

(ख) यदि किसी व्यक्ति द्वारा धारा 117 के अधीन मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसरण में परिशांति बनाए रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या प्रतिभूति  रहित बंधपत्र निष्पादित कर दिए जाने के बाद मे उसके बारे में ऐसे मजिस्ट्रेट या उसके पद-उत्तरवर्ती को समाधानप्रद रूप में यह साबित कर दिया जाता है । कि उसने बंधपत्र का भंग किया है।  तो उस मजिस्ट्रेट या पद-उत्तरवर्ती के  सबूत के आधारों को लेखबद्ध करने के पश्चात् आदेश कर सकता है।  कि उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए । और  उसकी बंधपत्र की अवधि की समाप्ति तक कारागार में निरुद्ध रखा जाए तथा ऐसा आदेश ऐसे किसी अन्य दंड या समपहरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा जिससे कि उक्त विधि के अनुसार दायित्वाधीन हो।

(2) जब मैजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को 1 साल से अधिक समय के लिए प्रतिभूति रखने के लिए कहता है ।  तब यदि ऐसा व्यक्ति यथापूर्वोक्त प्रतिभूति नहीं देता है तो वह मजिस्ट्रेट यह निदेश देते हुए वारंट जारी करेगा कि सेशन न्यायालय का आदेश होने तक वह व्यक्ति कारागार में निरुद्ध रखा जाए और वह कार्यवाही सुविधानुसार शीघ्र ऐसे न्यायालय के समक्ष रखी जाएगी।

(3) ऐसा न्यायालय ऐसी कार्यवाही की परीक्षा करने के और उस मजिस्ट्रेट से किसी और सूचना  या साक्ष्य की जिसे वह आवश्यक समझे और अपेक्षा करने के पश्चात् और संबद्ध व्यक्ति को सुने जाने का उचित अवसर देने के पश्चात् मामले में ऐसे आदेश पारित कर सकता है जो वह ठीक समझता है।

See Also  ऐसे कौन कौन से कार्य हैं जहां कॉपीराइट लागू होता हैं। ऐसे कार्यो का भी वर्णन करे जहां कॉपीराइट लागू नही होता हैं।

परंतु वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए कोई व्यक्ति प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित किया जाता है। उसको  तीन वर्ष से अधिक की न होगी।

(4) यदि एक ही कार्यवाही में 2 या 2 से अधिक व्यक्ति से प्रतिभूति मांगी गयी है । जिनमें से किसी एक के बारे में कार्यवाही सेशन न्यायालय को उपधारा (2) के अधीन निर्देशित की गई है।  तो ऐसे निर्देश में ऐसे व्यक्तियों में से किसी एक व्यक्ति जिसे प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया है,। उसका मामला शामिल किया जाएगा और उपधारा (2) और (3) के उपबंध उस दशा में ऐसे अन्य व्यक्ति के मामले को भी इस बात के सिवाय लागू होंगे कि वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए वह कारावासित किया जा सकता है।  उस अवधि से अधिक न होगी जिसके लिए प्रतिभूति देने के लिए उसे आदेश दिया गया था।

(5) सेशन न्यायाधीश उपधारा (2) या उपधारा (4) के अधीन उसके समक्ष रखी गई किसी कार्यवाही को अपने अनुसार  अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश को अंतरित कर सकता है।  और ऐसे अंतरण पर ऐसा अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश ऐसी कार्यवाही के बारे में इस धारा के अधीन सेशन न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

(6) यदि प्रतिभूति जेल के भारसाधक अधिकारी को निविदत्त की जाती है तो वह उस मामले को उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को जिसने आदेश किया उसको  तत्काल निर्देशित करेगा और ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट के आदेशों की प्रतीक्षा करेगा।

(7) परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के कारण यदि  कारावास  दिया जाता है तो यह  सादा होगा।

(8) सदाचार के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के कारण  यदि कारावास दिया जाता है तो  जहां कार्यवाही धारा 108 के अधीन की गई है।  वहां सादा  कारावास होगा।  और जहां कार्यवाही धारा 109 या धारा 110 के अधीन की गई है । वहां  मामले में न्यायालय या मजिस्ट्रेट निदेश दे उस अनुसार  कठिन या सादा होगा।

धारा 123

इस धारा के अनुसार  यदि प्रतिभूति देने में असफलता के कारण कारावासित व्यक्तियों को छोड़ने की शक्ति को बताया गया है ।
(1)  जिसके अनुसार जब कभी  धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा बताए गए  किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटट यह सलाह देते है कि कोई व्यक्ति जो इस अध्याय के अधीन प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित है।  समाज या किसी अन्य व्यक्ति को परिसंकट में डाले बिना छोड़ा जा सकता है।  तब वह ऐसे व्यक्ति के उन्मोचित किए जाने का आदेश दे सकता है ।

See Also  भारतीय दंड संहिता धारा 275 से 283 तक का विस्तृत अध्ययन

(2)इस धारा के अनुसार  जब कभी कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित किया गया हो । तब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय या फिर  जहां आदेश किसी अन्य न्यायालय द्वारा किया गया है वहां  पर धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटट प्रतिभूति की रकम को या प्रतिभुओं की संख्या को या उस समय को जिसके लिए प्रतिभूति की अपेक्षा की गई है । उसको  कम करते हुए आदेश दे सकता है ।

(3) उपधारा (1) के अधीन आदेश ऐसे व्यक्ति का उन्मोचन या तो शर्तों के बिना या किसी ऐसे शर्त पर  जिन्हें वह व्यक्ति स्वीकार करता है उसको  निदिष्ट कर सकता है।

परंतु अधिरोपित की गई कोई शर्त उस अवधि की समाप्ति  प्रवृत्त न रहेगी जिसके लिए प्रतिभूति देने का आदेश दिया गया है ।

(4) राज्य सरकार उन शर्तों को विहित कर सकती है जिन पर सशर्त उन्मोचन किया जा सकता है ।

(5) यदि कोई शर्त जिस पर ऐसा कोई व्यक्ति उन्मोचित किया गया है। उसको  1[धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटट की राय मे  जिसने उन्मोचन का आदेश दिया था।  याफिर  उसके उत्तरवर्ती की राय में पूरी नहीं की गई है।  तो वह उस आदेश को रद्द कर सकता है ।

(6) जब उन्मोचन का सशर्त आदेश उपधारा (5) के अधीन रद्द कर दिया जाता है।  तब ऐसा व्यक्ति किसी पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है । और फिर 1[धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटट के समक्ष पेश किया जाएगा ।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 231 से धारा 235 का विस्तृत अध्ययन

(7) उस दशा के सिवाय जिसमें ऐसा व्यक्ति मूल आदेश के निबंधनों के अनुसार उस अवधि के शेष भाग के लिए जिसके लिए उसे प्रथम बार कारागार मे डाला गया हो । या निरुद्ध किए जाने का आदेश दिया गया था और ऐसा भाग उस अवधि के बराबर समझा जाएगा जो उन्मोचन की शर्तों के भंग होने की तारीख और उस तारीख के बीच की है जिसको यह ऐसे सशर्त उन्मोचन के अभाव में छोड़े जाने का हकदार होता प्रतिभूति दे देता है।  1[धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटट उस व्यक्ति को ऐसा शेष भाग भुगतने के लिए कारागार भेज सकता है ।

(8) उपधारा (7) के अधीन यदि किसी व्यक्ति को  कारागार भेजा गया  है तो ऐसा व्यक्ति ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट को जिसने ऐसा आदेश किया था । या उसके उत्तरवर्ती को पूर्वोक्त शेष भाग के लिए मूल आदेश के निबंधनों के अनुसार प्रतिभूति देने पर धारा 122 के उपबंधों के अधीन रहते हुए किसी भी समय छोड़ा जा सकता है ।

(9) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय परिशांति कायम रखने के लिए या सदाचार के लिए बंधपत्र को जो उसके द्वारा किए गए किसी आदेश से इस अध्याय के अधीन निष्पादित किया गया है उसके लिए  पर्याप्त कारणों सहित  जो अभिलिखित किए जाएंग उस अनुसार किसी समय भी रद्द कर सकता है।  और जहां ऐसा बंधपत्र 1[धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटट के या उसके जिले के किसी न्यायालय के आदेश के अधीन निष्पादित किया गया है वहां वह उसे ऐसे रद्द कर सकता है ।

(10) कोई प्रतिभू जो किसी अन्य व्यक्ति के शांतिमय आचरण या सदाचार के लिए इस अध्याय के अधीन बंधपत्र के निष्पादित करने के लिए आदिष्ट है।  ऐसा आदेश करने वाले न्यायालय से बंधपत्र को रद्द करने के लिए किसी भी समय आवेदन कर सकता है।  और ऐसा आवेदन किए जाने पर न्यायालय यह अपेक्षा करते हुए कि वह व्यक्ति जिसके लिए ऐसा प्रतिभू आबद्ध है।  हाजिर हो या उसके समक्ष लाया जाए समन या वारंट जो भी वह ठीक समझे उसको  जारी करेगा ।

Leave a Comment