सामान्यत: किसी भी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति, पैतृक संपत्ति कहलाती है.”पैतृक संपत्ति के अलावा जो कमाई गई संपत्ति होती है उसमें व्यक्ति की पत्नी, उसके बच्चों का हक़ तो होता है ही साथ ही अगर व्यक्ति के माता-पिता भी जीविका के लिए अपने बेटे पर निर्भर थे तो उन्हें भी इसमें हिस्सा मिलेगा.”
“अगर माता-पिता को हिस्सा नहीं चाहिए तो कोई भी उत्तराधिकारी उनका हिस्सा लेकर उनकी ज़िम्मेदारी उठा सकता है.”
हालांकि सीआरपीसी (सिविल प्रक्रिया संहिता) के सेक्शन 125 में मेंटेनेन्स का जिक्र है. जिसके तहत किसी व्यक्ति पर निर्भर उसकी पत्नी, माता-पिता और बच्चे उससे अपने गुज़ारे का दावा क़ानूनन कर सकते हैं.
बच्चा जन्म के साथ ही पिता की पैतृक संपत्ति का अधिकारी हो जाता है.
संपत्ति दो तरह की होती है. एक वो जो ख़ुद से अर्जित की गई हो और दूसरी जो विरासत में मिली हो.
अपनी कमाई से खड़ी गई संपत्ति स्वर्जित कही जाती है, जबकि विरासत में मिली प्रॉपर्टी पैतृक संपत्ति कहलाती है.दिल्ली हाई कोर्ट ने हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत फ़ैसला सुनाया.
कोर्ट ने कहा क्योंकि अभी मृतक की पत्नी ज़िंदा हैं तो उनका और मृतक की बेटी का भी संपत्ति में समान रूप से हक़ बनता है.
साथ ही कोर्ट ने बेटे पर एक लाख रुपए का हर्जाना भी लगाया क्योंकि इस केस की वजह से मां को आर्थिक नुकसान और मानसिक तनाव उठाना पड़ा. कोर्ट ने कहा कि बेटे का दावा ही ग़लत है.
मान लीजिए कि X के तीन बेटे – X1, X2, और X3 थे। अगर X ने पैतृक संपत्ति को तीनों बेटों के बीच बराबर-बराबर बांटा, तो ऐसी संपत्ति विभाजित संपत्ति कहलाती है। अगर ऐसा होता है तो पैतृक संपत्ति से संबंधित कोई भी नियम लागू नहीं होगा।
यह नियम 2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित किया गया था और कहा गया था कि कोई भी संपत्ति जिसे पहले विभाजित किया गया था, वह अब परिवारिक / पैतृक संपत्ति नहीं होगी।
बच्चों को पैतृक संपत्ति का एक-एक तिहाई मिलेगा और उनके बच्चों और पत्नी को बराबर-बराबर हिस्सा मिलेगा.
हालांकि मुस्लिम समुदाय में ऐसा नहीं है. इस समुदाय में पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार तब तक दूसरे को नहीं मिलता जब तक अंतिम पीढ़ी का शख़्स जीवित हो.
ऐसी प्रॉपर्टी स्वर्जित होती है और संपत्ति का मालिक चाहे तो अपने जीवनकाल में या फिर वसीयत के ज़रिए मरने के बाद किसी को भी अपनी प्रॉपर्टी दे सकता है.
“पैतृक संपत्ति के अलावा जो कमाई गई संपत्ति होती है उसमें व्यक्ति की पत्नी, उसके बच्चों का हक़ तो होता है ही साथ ही अगर व्यक्ति के माता-पिता भी जीविका के लिए अपने बेटे पर निर्भर थे तो उन्हें भी इसमें हिस्सा मिलेगा.”
“अगर माता-पिता को हिस्सा नहीं चाहिए तो कोई भी उत्तराधिकारी उनका हिस्सा लेकर उनकी ज़िम्मेदारी उठा सकता है.”
हालांकि सीआरपीसी (सिविल प्रक्रिया संहिता) के सेक्शन 125 में मेंटेनेन्स का जिक्र है. जिसके तहत किसी व्यक्ति पर निर्भर उसकी पत्नी, माता-पिता और बच्चे उससे अपने गुज़ारे का दावा क़ानूनन कर सकते हैं.
पैतृक संपत्ति पर दावा करने की समय सीमा लगभग 12 वर्ष है। हालांकि, अगर दावे में देरी का कारण वैध है, तो अदालत इसे स्वीकार कर सकती है और आपके अनुरोध को स्वीकार कर सकती है।
अगर आप अपनी पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) को बेचने से रोकने के लिए दीवानी मुकदमा करना चाहते हैं, तो ऐसा बिक्री अवधि के तीन साल के भीतर करना होगा।
भारत में पैतृक संपत्ति कानून हैं, और ये कानून विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए अलग-अलग हैं।
व्यक्ति का धर्म
हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध,
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
ईसाई धर्म
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम
इस्लाम
शरीयत – मुस्लिम पर्सनल लॉ