“संरक्षक” क्या होता है। यह कितने प्रकार का होता है ?”नैसर्गिक संरक्षक” की शक्तियां क्या है?

“संरक्षक” से वह  अभिप्राय है जिस व्यक्ति की   देखरेख में किसी अप्राप्तवय का शरीर या उसकी सम्पति या उसकी शरीर और संपत्ति दोनों हों और इसके अन्तर्गत आते हैं । जैसे —

   (i) नैसर्गिक संरक्षक,

   (ii) अप्राप्तवय के पिता या माता की विल द्वारा नियुक्त संरक्षक,

   (iii) न्यायालय द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक, तथा

   (iv) किसी प्रतिपाल्य अधिकरण से सम्बन्ध रखने वाली किसी अधिनियमिति के द्वारा या अधीन संरक्षक की हैसियत में कार्य करने के लिए सशक्त व्यक्ति;

 “नैसर्गिक संरक्षक” से अभिप्रेत है धारा 6 में वर्णित संरक्षकों में से कोई भी संरक्षक से है ।

हिन्दू अप्राप्तवय के नैसर्गिक संरक्षक –  हिन्दू अप्राप्तवय के नैसर्गिक संरक्षक अप्राप्तवय के शरीर के बारे में और (अविभक्त कुटुम्ब की सम्पत्ति में उसके अविभक्त हित को छोड़कर) उसकी सम्पति के बारे में भी, निम्नलिखित हैं –

(क) किसी लड़के या अविवाहिता लड़की की दशा में पिता और उसके पश्चात् माता; परन्तु जिस अप्राप्तवय ने पाँच वर्ष की आयु पूरी न कर ली हो उसकी अभिरक्षा मामूली तौर पर माता के हाथ में होगी;

(ख) अधर्मज लड़के तथा अधर्मज अविवाहिता लड़की की दशा में माता और उसके पश्चात् पिता;

(ग) विवाहिता लड़की की दशा में पति ;

    परन्तु जो भी व्यक्ति यदि  —

   (क) वह हिन्दू नहीं रह गया है; या

   (ख) वह वानप्रस्थ या यति या संन्यासी होकर संसार को पूर्णत: और अन्तिम रूप से त्याग चुका है, तो इस धारा के उपबन्धों के अधीन अप्राप्तवय के नैसर्गिक संरक्षक के रूप में कार्य करने का हकदार न होगा ।

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स्पष्टीकरण –  इस धारा में ‘पिता’ और ‘माता’ पदों के अन्तर्गत सौतेला पिता और सौतेली माता नहीं आते।

दत्तक पुत्र के नैसर्गिक संरक्षक –  ऐसे दत्तक पुत्र की, जो अप्राप्तवय हो, नैसर्गिक संरक्षकता दत्तक ग्रहण पर दत्तक पिता को और उसके पश्चात् दत्तक माता को संक्रान्त हो जाती है।

 नैसर्गिक संरक्षक की शक्तियाँ  –

(1) इस धारा के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि किसी भी हिन्दू अप्राप्तवय का नैसर्गिक संरक्षक उन सब कार्यों को करने की शक्ति रखता है जो उस अप्राप्तवय के फायदे के लिए या उस अप्राप्तवय की सम्पदा के आपन, संरक्षण या फायदे के लिए आवश्यक या युक्तियुक्त और उचित हों, किन्तु संरक्षक किसी भी दशा में अप्राप्तवय को वैयक्तिक प्रसंविदा के द्वारा आबद्ध नहीं कर सकता।

(2) नैसर्गिक संरक्षक न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना –

   (क) न तो अप्राप्तवय की स्थावर सम्पति के किसी भी भाग को बन्धक या भारित अथवा विक्रय, दान या विनिमय द्वारा या अन्यथा अंतरित करेगा; और

(ख) न ऐसी सम्पति के किसी भी भाग को पाँच वर्ष से अधिक की अवधि के लिए या जिस तारीख की अप्राप्तवय अप्राप्तवयता में प्रवेश करेगा उस तारीख से एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए पट्टे पर देगा।

(3) नैसर्गिक संरक्षक द्वारा उपधारा (1) या उपधारा (2) के उल्लंघन में किया गया स्थावर सम्पत्ति का कोई भी व्ययन, अप्राप्तवय की या उससे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति की प्रेरणा पर शून्यकरणीय होगा।

(4) कोई भी न्यायालय नैसर्गिक संरक्षक की उपधारा (2) में वर्णित कार्यों में से किसी को भी करने की अनुज्ञा न देगा। सिवाय उस दशा में जब कि वह आवश्यक हो या अप्राप्तवय की सुव्यक्त भलाई के लिए हो।

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(5) उपधारा (2) के अधीन न्यायालय की अनुज्ञा अभिप्राप्त करने के आवेदन को और उसके बारे में संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 सर्वथा ऐसे लागू होगा मानो वह आवेदन उस अधिनियम की धारा 29 के अधीन न्यायालय की अनुज्ञा अभिप्राप्त करने के लिए आवेदन हो, और विशिष्टता :-

(क) आवेदन से सम्बन्धित कार्यवाहियां उस अधिनियम के अधीन, उसकी धारा 4-क के अर्थ के भीतर कार्यवाहियां समझी जाएंगी;

(ख) न्यायालय उस प्रक्रिया का अनुपालन करेगा और उसे वे शक्तियां प्राप्त होंगी जो उस अधिनियम की धारा 31 की उपधाराओं (2), (3) और (4) में विनिर्दिष्ट हैं; तथा

(ग) न्यायालय के ऐसे आदेश की अपील, जो नैसर्गिक संरक्षक को इस धारा की उपधारा (2) में वर्णित कार्यों में से किसी भी कार्य को करने की अनुज्ञा देने से इन्कार करे, उस न्यायालय में होगी, जिसमें उस न्यायालय के विनिश्चयों की अपीलें मामूली तौर पर होती हैं।

(6) इस धारा में ‘न्यायालय’ से वह नगर सिविल न्यायालय या ऐसा जिला न्यायालय या संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 की धारा 4क के अधीन सशक्त ऐसा न्यायालय अभिप्रेत है, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वह स्थावर सम्पति जिसके बारे में आवेदन किया गया है, स्थित हो और जहां कि स्थावर सम्पत्ति में ऐसे एक से अधिक न्यायालयों की अधिकारिता के भीतर स्थित हो वहां वह न्यायालय अभिप्रेत है, जिसकी स्थानीय सीमाओं की अधिकारिता के भीतर उस संपत्ति का कोई भी प्रभाग स्थित हो।

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