कुछ समय पहले जब विवाहित महिलाओं के पास कभी परिवार द्वारा मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताडि़त किया जाता था तब उस दशा में उनको अपना बचाव करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क मे वो अपनी शिकायत को दर्ज करा सकती थीं ।
इसको दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में वर्ष 1983 में हुए संशोधन के बाद इस धारा 498-क को जोड़ा गया। यह एक गैर-जमानती धारा है, जिसके अंतर्गत प्रतिवादियों की गिरफ्तारी तो हो सकती है पर पीडि़त महिला को भरण-पोषण अथवा निवास जैसी सुविधा दिये जाने का प्रावधान शामिल नहीं है। इसी को संदर्भित करते हुए और इसकी आवश्यकता को देखते हुए घरेलू हिंसा (अधिनियम) कानून 2005 लाया गया ।
घरेलू हिंसा क्या होता है।
कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला और बच्चे (जो की 18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन के संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहना पड़े। ऐसे स्थित मे इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है।
यह निम्न श्रेणी मे आता है। जिसमे निम्न को शामिल किया गया है।
शारीरिक (मार-पीट, थप्पड़ मारना, डाँटना, दाँत काटना, ठोकर मारना, अंग को नुक्सान पहुंचाने संबंधी, स्वास्थ्य को हानि)
मानसिक ( चरित्र, आचरण पर दोष, अपमानित, लड़का न होने पर प्रताड़ित, नौकरी छोड़ने या करने के लिए दबाव, आत्महत्या का डर देना,घर से बाहर निकाल देना)
शाब्दिक या भावनात्मक (गाली-गलोच, अपमानित)
लैंगिक ( बलात्कार, जबरदस्ती संबंध बनाना, अश्लील सामग्री या साहित्य देखने को मजबूर करना,अपमानित लैंगिक व्यवहार, बालकों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार)
आर्थिक ( दहेज़ की मांग, महंगी वस्तु की मांग, सम्पति की मांग, आपको या आपके बच्चे के खर्च के लिए आर्थिक सहायता न देना ,रोजगार न करने देना या मुश्किल पैदा करना ,आय-वेतन आपसे ले लेना, संपत्ति से बेदखल करना आदि को शामिल किया गया है। )
इसके अंतर्गत एकल या संयुक्त परिवार की किसी भी महिला जो की माँ, बेटी बहन, विधवा औरत, कुँवारी लड़की, यहां तक कि लिव इन संबंधों या अवैध शादी संबंधों में रहने वाली महिला चाहे वो एक ही घर में रह रहे हों या नहीं यदि वह कार्यस्थल पर काम करती महिला) बच्चे (गोद लिए, सौतेले, रिश्तेदारों के, संयुक्त परिवार से किसी भी संबंध मे हो सकता है।
इस अधिनियम से महिलाओं की सुरक्षा तथा घरेलू रिश्तों में महिलाओं को हिंसा से बचाने के उद्देश्य से यह सांसद द्वारा बनाया गया एक कानून है। इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण का अधिनियम, 2005 भी है |
यह एक ऐसा कानून है। जिसमे शिकायत करते ही पीड़ित को उस अन्याय की व्यवस्था से बाहर निकाल कर सुरक्षित किए जाने का प्रयास किया जाता है। इस कानून को भारत की संसद द्वारा 13 सितम्बर 2005 में स्वीकृत किया गया था । और यह 26 अक्टूबर 2006 को लागू किया गया |
इस घरेलू हिंसा अधिनियम में शिकायत फॉर्म 1 में दी गई रिपोर्ट अनुसार कर सकते है | उसमें पीड़िता/पीड़ित का नाम, आयु, पता, फोन नंबर, बच्चों की जानकारी,घरेलु हिंसा की घटना के बारे में पूरी जानकारी तथा संबंधित दस्तावेज़ लगा कर, उस पर हस्ताक्षर करने के बाद यह प्रार्थना पत्र प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को जमा करवानी पड़ती है । और जिसकी एक-एक प्रति अपने पास, स्थानीय पुलिस थाने, सुरक्षा अधिकारी या सेवा सहायक को भी देनी पड़ती है।
मजिस्ट्रेट, पीड़ित के घर की, कार्यस्थल की स्थानीय सीमा या दोषी व्यक्ति के घर की/दफ्तर की स्थानीय सीमा से हो सकता है या जहां हिंसा हुई उस क्षेत्र की सीमा में भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। परन्तु इस संबंधित मजिस्ट्रेट कहीं के भी हों पर उनके आदेश पूरे भारत की सीमा के अंदर हर जगह मान्य होंगे ।
इस शिकायत को पीड़ित/पीड़िता स्वयं, उसके संबंधी या पड़ोसी, राज्य द्वारा नियुक्त सुरक्षा अधिकारी, सेवा सहायक कोई भी इसकी शिकायत स्वयं संबंधित दफ्तर में जाकर, संबंधित दफ्तर या अधिकारी की ई.मेलके जरिये या फिर जारी किए गए फोन नंबर पर भी दे सकता है।
मजिस्ट्रेट इसमे निम्न आदेश दे सकते हैं ।
सरंक्षण (प्रोटैक्शन) आदेश
अभिरक्षा (कस्टडी) आदेश
निवास आदेश
आर्थिक आदेश
प्रतिकर (कम्पनसेटरी )आदेश
सुरक्षा अधिकारी की नियुक्ति
सलाहकार समिति बनाने के आदेश
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