आपातकालीन प्रावधान या फिर वित्तीय आपातकाल (भारतीय संविधान अनुच्छेद 360) Article 360 Constitution of India

भारत में आपातकालीन स्थिति शासन की अवधि को संदर्भित करती है जो कि भारत के संविधान अनुच्छेद 352 से लेकर के 307 के तहत लगभग 18 भाग में निहित है इन विशेष आपातकालीन प्रावधान को संकट की स्थिति के दौरान भारत के राष्ट्रपति के द्वारा घोषित किया जाता है।

आपातकाल शब्द सामान्य रूप से ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें की त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता होती है। आपातकाल एक ऐसा परिदृश्य है जिसमें की शासन प्रणाली विफल हो गई हो और तुरंत ही कार्यवाही की जरूरत है ताकि समय बद्ध तरीके से समस्या का समाधान करने के लिए सही प्रक्रिया का पालन किया जा सके।

अनुच्छेद 360 के अनुसार भारत में संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थितियां बताई गई हैं और उनमें से मुख्य है वित्तीय आपातकाल। भारतीय संविधान कुछ परिस्थितियों में आर्थिक नुकसान की संभावना को स्वीकार करता है ऐसी घटना की स्थिति में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360 जो कि देश में वित्तीय आपातकाल लगाने की अनुमति प्रदान करता है।

भारतीय संविधान अनुच्छेद 360 के अनुसार राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं यदि उन्हें ऐसा लगता है कि भारत के किसी भी क्षेत्र में किसी भी हिस्से में कहीं पर भी वितरित खतरे में है तो देश में एक ऐसा परिदृश्य यदि सामने आता है जो कि आर्थिक संकट की ओर ले जा रहा है ऐसी दशा में भारत के राष्ट्रपति समस्या का समाधान के लिए आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं जिसको की वित्तीय आपातकाल की स्थितियों की न्यायिक समीक्षा यानी कि जुडिशल रिव्यु कहा जा सकता है जो कि 44 में संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा संशोधित किया गया था।

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भारतीय संविधान अनुच्छेद 360 सबसेक्शन दो के अनुसार वित्तीय आपातकाल की घोषणा संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके जारी होने के 2 महीने के अंदर इसकी पुष्टि की जानी चाहिए होती है।

एक वित्तीय आपातकाल यदि संसद के दोनों सदनों के द्वारा अनुमोदित किया जाता है तो इसे निरस्त किए जाने तक यह अनिश्चितकाल तक प्रभाव में बना रहता है इसमें दो बातें होती है ।

इसको जारी रखने के लिए बार-बार संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।

वित्तीय आपातकाल का कार्य किसी समय सीमा के अधीन नहीं होता है।

संसद के द्वारा आपातकाल की स्थिति को मंजूरी देने के बाद में संघ जो कि देश के वित्तीय मामलों का पूर्ण नियंत्रण करता है तथा केंद्र सरकार किसी भी राज्य को वित्तीय निर्देश प्रदान करती है और राष्ट्रपति राज्यों से पूछ सकते हैं।

सरकारी कर्मचारियों के सभी या किसी भी वर्ग के वेतन और लाखों में कटौती करने के लिए।

किसी भी राज्य या फिर विधानमंडल के द्वारा अधिनियम किए जाने के द्वारा संसद के द्वारा विचार के लिए संविधान विधेयक को सुरक्षित रखने के लिए।

सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों सहित केंद्र सरकार के अधिकारियों के वेतन और भक्तों को कम करने के लिए।

भारतीय संविधान के तहत आपातकालीन स्थितियां निम्न है।

राष्ट्रीय आपातकाल

राज्य आपातकाल या फिर राष्ट्रपति शासन

वित्तीय आपातकाल 

वित्तीय आपातकाल के इन प्रावधानों को संविधान के सम्मान को बनाए रखने के इरादे से बनाया गया है यह एक संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा करना तथा उसका विनाश होने से बचाए रखना सत्ता द्वारा संचय का लक्ष्य पूर्ण करना।

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भारत में यह कानून कभी लागू नहीं हुआ भारत ने 1991 में एक गंभीर वित्तीय संकट से गुजरने और 1965 में एक ही समय में भुखमरी और युद्ध दोनों से लड़ने के बावजूद इन प्रावधानों का उपयोग करने का प्रयास भी नहीं किया।

वित्तीय आपातकाल की घोषणा राष्ट्र की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है इसलिए भारत संघ के संघीय ढांचे की रक्षा के लिए राष्ट्रपति को संघीय प्रमुख के रूप में आपातकालीन शक्तियां दी जाती है।

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