प्रस्थापनाओं की संसूचना, प्रस्थापनाओं का प्रतिग्रहण तथा प्रतिस्थापनाओं तथा प्रतिग्रहणों का प्रतिसंहरण को हम इस प्रकार कह सकते है कि प्रस्थापनाओं की संरचना का अर्थ होता है प्रस्थापना करने वाले से है। प्रतिग्रहण करने वाले या प्रतिसंहरण करने वाले से मतलब पक्षकार के किसी ऐसे कार्य या लोप से हुआ समझा जाता है। प्रतिसंहरण का सामान्य सा अर्थ है रद्द करना अर्थात जब कोई प्रस्ताव और स्वीकृति को रद्द कर दिया जाता है।
जिसके द्वारा वह ऐसी प्रतिस्थापना, प्रतिग्रहण या प्रतिसंहरण को संसूचित करने का आशय रखता हो या उसे संसूचित करने का प्रयास करता है।
यहा पर हम कह सकते है कि प्रस्थापना की संसूचना तब संपूर्ण हो जाती है। जब वह प्रस्थापना उस व्यक्ति के ज्ञान में आ जाती है जिसे वह की गई है।अर्थात जब सूचना उस व्यक्ति तक पहुच जाती है जिसको हम सूचना देना चाहते है। तब तक संसूचना को सम्पूर्ण माना जाता है।
प्रतिग्रहण की संसूचना –
प्रस्थापक के विरुद्ध तब सम्पूर्ण हो जाती है जब वह उसके प्रति इस प्रकार पारेषण के अनुक्रम में कर दी जाती है। कि वह प्रतिगृहीता की शक्ति के बाहर हो जाए। इसका अर्थ यह है कि जब सूचना भेजने वाले व्यक्ति द्वारा सूचना को भेज दिया जाता है और वह सूचना प्राप्त कर्ता के पास पहुचने वाला होता है तो यह माना जाता है कि सूचना भेजने वाले कि शक्ति से बाहर है और वह सूचना भेज दी गयी है।
प्रतिगृहीता के विरुद्ध तब सम्पूर्ण हो जाती है। जब वह प्रस्थापक के ज्ञान में आती है।जब सूचना प्राप्तकर्ता को मिल जाती है तो वह सम्पूर्ण हो जाती है।
प्रतिसंहरण की संसूचना –
उसे करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध तब सम्पूर्ण मानी जाती है। जब वह व्यक्ति के प्रति जिसको सूचना भेजा गया होअर्थात इस प्रकार पारेषण के अनुक्रम में कर दी जाती है। कि वह उस व्यक्ति की शक्ति के बाहर हो जाए जो सूचना को करता है। और उस व्यक्ति के विरुद्ध हो जिससे प्रतिसंहरण किया गया है। तब सूचना सम्पूर्ण हो जाती है। जब वह उसके ज्ञान में आती है।
अर्थात प्रतिसंहरण कि संसूचना तब होगी जब भेजने वाला व्यक्ति सूचना को भेज दिया है अब वह उसको वापस नही ले सकता और सूचना प्राप्त कर्ता के पास जब तक वह पहुच न जाये तब तक सम्पूर्ण नही माना जाएगा।
उदाहरण –
(क) जीवन ने संजय को अपने पुत्र के द्वारा उसकी संपत्ति को खरीदने के लिए एक निश्चित राशि लिख कर पत्र भेजा कि वह उसके संपत्ति को खरीदना चाहता है यह सम्पूर्ण तब माना जाएगा जब यह पत्र संजय तक पहुच जाएगा।
(ख) जीवन की प्रस्थापना का संजय डाक से भेजे गए पत्र को प्रतिग्रहण करता है।
प्रतिग्रहण की संसूचना –
(क) जीवन के विरुद्ध तब सम्पूर्ण हो जाती है जब पत्र डाक में डाल दिया जाता है;
(ख) के विरुद्ध तब सम्पूर्ण हो जाती है जब संजय को पत्र प्राप्त होता है।
(ग) जीवन अपनी प्रस्थापना का प्रतिसंहरण तार द्वारा करता है।
जीवन के विरुद्ध प्रतिसंहरण तब सम्पूर्ण हो जाता है जब तार प्रेषित किया जाता है।
संजय के विरुद्ध प्रतिसंहरण तब सम्पूर्ण हो जाता है जब संजय को तार प्राप्त होता है।
जीवन अपने प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण तार द्वारा करता है। संजय का प्रतिसंहरण जीवन के विरुद्ध तब सम्पूर्ण हो जाता | है जब तार प्रेषित किया जाता है और संजय के विरुद्ध तब, जब तार उसके पास पहुँचता है।
प्रस्थापनाओं की प्रतिग्रहण-
किसी भी संविदा के लिए यह आवश्यक है कि प्रस्थापना के प्रतिग्रहण की सूचना प्रस्तावक को दी जानी चाहिए। इस अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत जब भी कभी किसी पक्षकार के द्वारा प्रस्ताव किया जाता है तो इस प्रस्ताव की सूचना जिस व्यक्ति से प्रस्ताव किया गया है उस व्यक्ति को प्राप्त होना आवश्यक होता है तब ही विद्यमान संविदा का सृजन होगा।
प्रतिग्रहण में अनुचित या अनावश्यक रूप से विलम्ब इसका एक अच्छा उदाहरण है।
उदाहरण –
प्रस्थापना करता है कि राम ,जिया को एक निश्चित तिथि तक अमुक धनराशि अग्रिम के रूप में देगा।
प्रतिसंहरण-
संविदा के अनुसार प्रतिसंहरण का सामान्य अर्थ होता है रद्द करना अर्थात अपने द्वारा किया गया प्रस्ताव या फिर स्वीकृति को रद्द करना होता है। इसमे प्रश्न यह भी उठता है कि क्या कोई भी प्रस्ताव या स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है? रद्द करने की समय अवधि क्या हो सकती है।
संविदा अधिनियम 1872 धारा 5 के अंतर्गत इसका उत्तर हमे प्राप्त होता है। इस धारा के अनुसार कोई भी प्रस्थापना उसके प्रतिग्रहण की सूचना प्रस्थापक के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने के पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण की जा सकेगी किंतु उसके बाद मे उसको रद्द नही किया जा सकता है।
इस अधिनियम के अंतर्गत प्रस्ताव और स्वीकृति दोनों के प्रतिसंहरण की व्यवस्था कि गयी है। जिसके अनुसार प्रस्ताव करने वाले को अपने प्रस्ताव को रद्द करने का भी अधिकार दिया गया है । और स्वीकृति करने वाले को अपनी स्वीकृति रद्द करने का भी अधिकार दिया गया है पर यह अधिकार सीमाओं के अंतर्गत बांधा गया है।
ऐसा नहीं है कि किसी भी प्रस्ताव को कभी भी किसी भी समय रद्द किया जा सकता है और किसी व्यक्ति को कभी भी रद्द किया जा सकता है। इसके लिए समय अवधि दी गई है और इसके लिए तर्क बताए गए हैं जिसके आधार पर ही प्रस्ताव और स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है।
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