कंपनी क्या है। कंपनी की परिभाषा और कंपनी के लक्षण क्या हैं? पार्टनर्शिप और कंपनी तथा फ़र्म मे क्या अंतर हैं।

कंपनी क्या है- Company दो शब्दो से मिल कर बना हैं come + panish जिसका अर्थ होता हैं साथ मे बैठ कर खाना जब 2 या 2 से अधिक लोग एक साथ मिलकर खाना कहते हैं बात करते हैं तो वह कंपनी कहलाती हैं पर आज इसका मतलब थोड़ा सा अलग हो गया हैं। आज के समय मे जब 2 या 2 से अधिक लोग एक साथ पूंजी लगाते  हैं और उससे कोई व्योशाय करते हैं और उससे प्राप्त लाभ को आपस मे बाँट लेते हैं तो वह कंपनी कहलाती हैं

Section2(20) of companies act 2013-

It means a company formed and registered under this act 2013 or any of the previous companies laws.

सेक्शन 2(20) के अनुसार- ऐसी कंपनी जो कंपनी एक्ट 2013 के के अंतर्गत रजिसटर्ड हुई हो या फिर उससे पहले बनी हो इसके अंतर्गत आती हैं।

justice lindey के अनुसार-

कंपनी लोंगों का एक समूह हैं।

इसमे लोग अपने अपने धन को एक समलित स्टॉक के लिए एकत्रित करते हैं।

लोगो से एकत्रित धन जो की कंपनी की पूंजी कहलाती हैं।

वह लोग जो कंपनी के लिए धन एकत्रित करते हैं कंपनी के मेम्बर कहलाते हैं।

पूंजी का उपयोग किसी बिज़नेस के लिए करते हैं।

बिज़नेस से प्राप्त लाभ को आपस मे बाँट लेते हैं।

जिस अनुपात मे लोग पूंजी लगाते हैं उसे शेयर कहते हैं।

शेयर हमेशा transferable होता हैं।

CHARACTERISTICS OF A COMPANY –

Separate legal entity-

लॉ की नजर मे कंपनी एक  लीगल पर्सन होती हैं

कंपनी के अपने खुद के हक और दायित्व होते हैं।

इस पर एक case law भी हैं –

Salmon v salmon & co. Ltd

See Also  सेक्रेटरियल स्टैंडर्ड 1 के अनुसार BOARD MEETING (बोर्ड मीटिंग) क्या होता है? इसका प्रोसैस क्या है?

Perpetual succession –

कंपनी की लाइफ उसके मेम्बर्स पर निर्भर नही करती हैं।

कंपनी के मेम्बर्स बदलते रहते हैं पर कंपनी नही बदलती।

किसी मेम्बर्स की डैथ,insolvency से कंपनी पर कोई प्रभाव नही पड़ता हैं।

Common seal-

कंपनी की अपनी common seal होती हैं जिसको कंपनी का signature कहते हैं।

जिस डॉकयुमेंट मे कंपनी की सील हो तो वह कंपनी द्वारा साइन किया हुआ माना जाएगा।

Transferability of share-

कंपनी एक्ट 2013 सेक्शन 42 के अनुसार-

शेयर movable property होते हैं।

शेयर आर्टिकल के अनुसार ट्रान्सफर किए जा सकते हैं।

पब्लिक कंपनी मे शेयर पूर्णता transferable होते हैं।

प्राइवेट कंपनी मे ये आर्टिकल के अनुसार restricted होते हैं।

Separation of ownership from management-

कंपनी के रोज के बिज़नेस मे मेम्बर्स नही रहते हैं।

कंपनी का मैनेजमेंट मेम्बर्स द्वारा चुने गए board of director के हाथ मे होता हैं ।

Board of director ही कंपनी को सुचारु रूप से चलाते हैं। ये मेम्बर्स के द्वारा ही चुने और निकाले जाते हैं।

Separate property-

कंपनी के पास अपनी खुद की संपत्ति होती हैं।

मेम्बर्स कंपनी की संपत्ति के मालिक या अधिकारी नही होते हैं।

मेम्बर्स का कंपनी की संपत्ति मे कोई इन्टरेस्ट नही होता हैं।

Advantage of company –

कॉर्पोरेट पर्स्नालिटी

लिमिटेड लाईबिलिटी

पर्पैचुअल सक्सेस्न

ट्रांसफेरेबल शेयर

सेपेरेट प्रॉपर्टी

Case law on whether a company is citizen or not-

State trading corporation of India v. commercial tax officer-

इस केस के अनुसार भारतीय संविधान मे लिखित citizenship एक्ट के अनुसार कंपनी एक लीगल पर्सन हैं परन्तु कंपनी सिटिज़न नही हैं।

R.C Cooper vs U.O.I –

See Also  इंकम टैक्स एक्ट 1962 के अनुसार आमदनी के पाँच स्रोत FIVE HEAD OF INCOME AS PER INCOME TAX ACT 1962

इसके अनुसार कंपनी के सभी मेम्बर्स सिटिज़न होते हैं पर कंपनी सिटिज़न नही होती हैं क्योकि कंपनी और मेम्बर्स दोनों अलग अलग होते हैं कंपनी के मेम्बर्स शादी कर सकते हैं पर कंपनी शादी नही कर सकती ।

Bannet coleman & company ltd –

सुप्रीम कोर्ट ने कहा हैं कि कंपनी सिटिज़न नही हैं पर उसको सभी ऐसे लाभ मिलते हैं जो कि कंपनी के मेम्बर्स को मिलते हैं। कंपनी के पास अपने मेम्बर्स के जरिये सभी अधिकार प्राप्त करने का हक हैं।

कंपनी और पार्टनर्शिप मे अंतर- आईये जानते हैं कंपनी और पार्टनर्शिप मे क्या अंतर होता हैं।

पार्टनरशिप                                

जब 2 या 2 से अधिक लोग मिलकर किसी बिज़नेस को पूंजी के अनुपात मे लाभ हानि को आपस मे बांटने के लिए तैयार होते हैं तो वह पार्टनरशिप कहलाती हैं।

यह इंडियन पार्टनरशिप एक्ट 1932 के अंतर्गत आती हैं।

इसका registration voluntary होता हैं।

इसमे कम से कम 2 व्यक्ति होते हैं।

इसमे अधिकतम पार्टनर 100 हो सकते हैं।

इसकी ऑडिट जरूरी नही होती हैं।

इसकी liability असीमित होती हैं।

इसकी अपनी कोई पहचान नही होती हैं।

यह एक प्रकार की म्यूचुअल agency हैं।

कंपनी –

इसमे कई लोग जब पूंजी इकट्ठा कर बिज़नेस मे लगाते हैं और लाभ हानि प्राप्त करते हैं तो वह कंपनी होती हैं।

यह कंपनी एक्ट 2013 के अंतर्गत आती हैं।

इसका registration mandatory यानि की जरूरी होता हैं।

इसमे प्राइवेट कंपनी मे कम से कम 2 और पब्लिक कंपनी मे 7 और वन पर्सन कंपनी मे 1 व्यक्ति होते हैं।

See Also  रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी क्या होता है? All about Registrar of Companies

इसमे अधिकतम मेम्बर्स कि कोई सीमा नही होती हैं।

इसकी ऑडिट जरूरी होती हैं।

इसकी liability limited यानि की  सीमित होती हैं।

इसका अपना अस्तित्व होता हैं।

यह म्यूचुअल agency नही हैं।

इसकी अपनी खुद की पहचान होती हैं।

इसका documentation जरूरी होता हैं।

फ़र्म और कंपनी मे अंतर-

फ़र्म और कंपनी मे निम्नलिखित अंतर हैं ।

फ़र्म अस्तित्व मे तभी आती हैं जब उसका registration हो जाए या फिर पार्टनर के बीच मे एग्रीमेंट हो जाए। कंपनी incorporation के बाद अस्तित्व मे आ जाती हैं।

मेम्बर्स के मरने या इनसोलवेंट होने पर फ़र्म मे प्रभाव पड़ता हैं जबकि कंपनी मे मेम्बर्स के मरने ,इनसोलवेंट होने पर कोई प्रभाव नही पड़ता ।

फ़र्म के मेम्बर्स अपने शेयर किसी को ट्रान्सफर कर सकते हैं पर वह फ़र्म का पार्टनर नही कहलाएगा जबकि वह लाभ हानि प्राप्त कर सकता हैं। वही कंपनी के मेम्बर्स यदि अपना शेयर ट्रान्सफर करते हैं तो वह व्यक्ति जिसके नाम शेयर ट्रान्सफर हो रहा हैं वह कंपनी का मेम्बर बन जाता हैं।

फ़र्म का मैनेजमेंट पार्टनर करते हैं। जबकि कंपनी का मैनेजमेंट director करते हैं।

फ़र्म मे मेम्बर्स के बीच समझौता निजी प्रपत्र हैं। जबकि कंपनी के बीच मेम्बर्स का समझौता सार्वजनिक हैं।

कंपनी के दायित्व सीमित होते हैं, जबकि फ़र्म के असीमित होते हैं।

फ़र्म के मेम्बर्स फ़र्म को बेच या खरीद सकते हैं जबकि कंपनी मे मेम्बर्स ऐसा नही कर सकते हैं।

फ़र्म के मेम्बर्स बिना किसी के सहमति के अपना हिस्सा बेच सकते हैं जबकि कंपनी मे बिना सबकी सहमति के कोई मेम्बर्स अपना हिस्सा नही बेच सकता।

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