हिन्दू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act)1955 के अनुसार हिन्दू कौन हैं ,हिन्दू विवाह के लिए कौन कौन सी शर्ते होती हैं।

हिन्दू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act)- हिन्दू कौन हैं इसका सटीक जबाब किसी के पास भी नही हैं । अधिकांश लोग मानते हैं कि हिन्दू धर्म एक जीवन शैली है और उस जीवन शैली को कोई भी, कभी भी, कहीं भी अपना सकता है। उच्चतम न्यायालय ने बहुत पहले माना था कि हिन्दू धर्म एक जीवन शैली है। हिन्दू धर्म किसी एक पुस्तक अथवा गुरु तक सीमित नहीं है। इसमें एक ईश्वर को मानने वाले अद्वेतवादी और अनेक ईश्वरों को मानने वाले द्वेतवादी, साकार या निराकार ईश्वर को मानने वाले अथवा ईश्वर को न मानने वाले नास्तिक भी हिन्दू हो सकते हैं

हिन्दू को परिभाषित करते हुए गायत्री परिवार ने लिखा हैं की –

हिन्दू उसको कहते हैं जो भारतवर्ष को अपना मात्रभूमि,पित्रभूमि और धर्म भूमि मानता हो।

मात्र भूमि यानि जन्मदाता की भूमि ,जो इसको जन्मदायनी मानता हो।

पित्र भूमि यानि पित्रो की भूमि जो इसको अपने प्रयत्नो की भूमि मानता हो।

धर्म भूमि यानि तीर्थों की भूमि जो इसको तीर्थ भूमि मानता हो वह हिन्दू हैं।

हिन्दूओं का मानना है कि हिन्दू धर्म विश्व के सबसे पुराने धर्मो मे से एक हे। यह धर्म सत्य , अहिन्सा,दया, जातीय शुद्धता का संस्कार सिखाता हे। हिन्दू धर्म को सनातन, वैदिक या आर्य धर्म भी कहते हैं। हिन्दू एक अप्रभंश शब्द है। 12वीं शदी के आसपास नागवंश की लिपि जो अब देवनागरी नाम से प्रसिद्ध है में लिपिबद्ध ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु का उल्लेख मिलता है। सिंधु शब्द का अर्थ नदी या जलराशि होता है इसी आधार पर एक नदी का नाम सिंधु नदी रखा गया जिससे इरानियों द्वारा सिन्धु को हिन्दू कहा गया।

 आये अब हम जानते हैं हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार हिन्दू कौन हैं। और यह अधिनियम किस पर लागू होता हैं।

 यह अधिनियम हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 कहा जाता हैं।

 इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है और यह उन राज्यक्षेत्रों में, जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, अधिवसित उन हिन्दुओं को भी लागू है जो इन राज्यक्षेत्रों के बाहर हों ।

अधिनियम को लागू करना-

 ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास के अनुसार, जिसके अन्तर्गत शैव, लिंगायत अथवा ब्राह्मो समाज, प्रार्थनासमाज या आर्यसमाज के अनुयागी भी आते हैं. धर्म से  हिन्दू हो;

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ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो धर्मतः जैन, बौद्ध या सिक्ख हो।

ऐसा कोई व्यक्ति जो हिन्दू धर्म मे पाला गया हो ,या उसके माँ,बाप हिन्दू हो या फिर, कोई भी अपने आप से या  धर्मज जो उस जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुंब के सदस्य के रूप में पला हो जिसका वह माता या पिता सदस्य है  अथवा पहले था जो अब इस दुनिया मे नही हैं।

इसमे ऐसा व्यक्ति भी आता हैं जो की हिंदू, बौद्ध, जैन या सिक्ख धर्म में संपरिवर्तित या प्रतिसंपरिवर्तित हो गया हो

ऐसे किसी भी अन्य व्यक्ति जो उन राज्यक्षेत्रों में, जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, बशा हुआ हो और धर्मतः मुस्लिम, क्रिश्चियन, पारसी या यहूदी न हो, जब तक कि यह साबित न कर दिय जाए कि यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो ऐसा कोई भी व्यक्ति उस समय उपलबद  किसी भी बात के बारे में हिन्दू विधि या उस विधि के भागरूप किसी रूढ़ि या प्रथा द्वारा शासित न होता । यहा रूढ़ि” और प्रथा”  शब्द पद ऐसे किसी भी नियम का ज्ञान कराते हैं जिसने दीर्घकाल तक निरन्तर और एकरूपता से अनुपालित किए जाने के कारण किसी स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुंब के हिन्दुओं में विधि का बल अभिप्राप्त कर लिया हो।

हिन्दू विवाह की शर्ते-

दो हिन्दुओं के बीच विवाह उस सूरत में अनुष्ठित किया जा सकेगा जिसमें कि निम्न शर्ते पूरी की जाती हों–

(1) दोनों पक्षकारों में से किसी का पति या पत्नी विवाह के समय जीवित नहीं है- हिन्दू वैध विवाह मे दोनों मे से किसी व्यक्ति का पति या पत्नी जीवित न हो ,यदि दोनों मे से किसी का पति या पत्नी जीवित हैं फिर भी वह दूसरा विवाह कर रहा हैं तो वह विवाह शून्य माना जाएगा

(ii) विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई पक्षकार चित्त विकृति के परिणामस्वरूप विधिमान्य सम्मति देने में असमर्थ न हो यानि की दोनों मे से कोई भी पागल या ऐसे विकलांगता मे न हो जो की विधि द्वारा विवाह के नियम को समझ नही सकता हो।

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 विधिमान्य सम्मति देने में समर्थ होने पर भी इस प्रकार के या इस हद तक मानसिक विकार से ग्रस्त न हो कि वह विवाह और सन्तानोत्पति के अयोग्य हो अर्थात ऐसा विवाह शून्य माना जाएगा जिसमे दोनों पक्ष मे से कोई संतान उत्पन्न नही कर सकता हो। या फिर  उसे उन्मत्तता का दौरा बार-बार पड़ता हो।

(iii) वर ने 21 वर्ष की आयु और वधू ने 18 वर्ष की आयु विवाह के समय पूरी कर ली होनी चाहिए।

(iv) जब कि उन दोनों में से प्रत्येक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो, तब पक्षकार खुद के नातेदारी की डिग्रियों के भीतर नहीं होने चाहिए। यहाँ नातेदारी के प्रमुख दो प्रकार हैं :-

रक्त सम्बंधी नातेदार – ये समान रक्त के कारण एक दूसरे से संबंधित होते हैं। जैसे- माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, चाचा-बुआ, नाना-नानी, मामा आदि।

विवाह सम्बंधी नातेदार – ये वैवाहिक सम्बंध के कारण एक दूसरे से सम्बंधित होते हैं। जैसे- पत्नी या पति के माता-पिता, भाई-बहन, भाइयों की पत्नी या बहनों के पति आदि।

(v) जब तक कि उनमें से प्रत्येक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो तब पक्षकार एक-दूसरे के सपिण्ड नहीं हैं।यहा सपिंड से मतलब होता हैं  माता या पिता के द्वारा 5 वी तथा 7 पीढ़ी तक के खुद से उत्पन्न वंशज से हैं।

आये अब हम जानते हैं इससे संबन्धित case law –

हिन्दू विवाह कानून के तहत न्यूनतम आयु सीमा का उल्लंघन करके की गयी शादी रद्द करने योग्य होती है वह निष्प्रभावी नहीं  मानी जाएगी – (पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट)

न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल ने कहा, “हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि यदि उम्र के प्रतिबंधों को दरकिनार करके शादी की जाती है तो वह निष्प्रभावी किये जाने योग्य होती है। हालांकि दोनों में से किसी पक्ष ने इस विवाह को समाप्त करने की अर्जी नहीं दी है। दरअसल, दोनों पक्ष अपनी शादी को पंजीकृत करने का अनुरोध कर रहे हैं। कानून की नजर में यह शादी वैध है और इसके पंजीकरण पर कोई प्रतिबंध नहीं है।”इस मामले के  अनुसार दोनों याचिकाकर्ताओं ने 2015 में एक-दसूरे से शादी कर ली थी। उस वक्त दुल्हे की उम्र हिन्दू विवाह कानून की धारा 5(3) के तहत शादी की न्यूनतम कानूनी उम (21 वर्ष) से कम थी। विवाह पंजीकरण की अर्जी 2019 में तब दाखिल की गयी थी, जब वर-वधु शादी की वैध उम्र हासिल कर चुके थे। कोर्ट ने कहा कि दोनों में से किसी भी पक्ष ने शादी को समाप्त करने का अनुरोध नहीं किया था, इसलिए अधिकारियों को विवाह का पंजीकरण करना चाहिए था। बेंच ने याचिकाकर्ताओं की इन दलीलों से सहमति जतायी कि यदि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी विवाह को निरस्त करने का अनुरोध नहीं किया है तो विवाह के पंजीकरण में कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है। इसी तरह से  भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 376A की वैधता को दी गई थी चुनौती, तेलंगाना हाईकोर्ट ने खार‌िज की जनहित याचिका बेंच ने कहा कि इस संबंध में ‘बलजीत कौर बोपराई बनाम पंजाब सरकार एवं अन्य  के मामले में कानून का निर्धारण हो चुका है, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि वर, वधु दोनों के बालिग होने की स्थिति में विवाह का पंजीकरण स्वीकार करना होगा। कोर्ट ने विवाह पंजीकरण पर जोर देते हुए कहा था, “विवाह पंजीकरण के समय दोनों पक्षों के 21 साल की उम्र पूरी करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि शादी के परिणामस्वरूप हुए बच्चे की कस्टडी और बच्चों के अधिकार के मामले में ये साक्ष्यपरक महत्व रखते हैँ।” गोद लेने से जैविक पिता के साथ रिश्ता खत्म नहीं होताः मद्रास हाईकोर्ट गौरतलब है कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत धारा 5(3) का उल्लंघन किसी शादी को निष्प्रभावी घोषित करने की शर्त नहीं है। वास्तव में, बाल विवाह निरोधक कानून के तहत भी नाबालिगों के बीच हुई शादी को अवैध घोषित नहीं किया जाता। बाल विवाह निरोधक कानून की धारा तीन के तहत भी यदि दुल्हा दुल्हन नाबालिग हैं तो भी शादी केवल निष्प्रभावी करने योग्य है।

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