जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 137 तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
अनुच्छेद 138
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय अधिकारिता की वृद्धि को बताया गया है।
(1) उच्चतम न्यायालय को संघ सूची के विषयों में से किसी भी विषय के संबंध में ऐसी अधिकारिता अतिरिक्त और शक्तियां होंगी। जो कि संसद विधि द्वारा प्रदान की जाती है।
(2) यदि संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अधिकारिता और शक्तियों के प्रयोग का उपबंध करती है। तो ऐसे स्थित मे उच्चतम न्यायालय को किसी विषय के संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारी और शक्तियाँ होंगी । जो कि भारत सरकार और किसी राज्य की सरकार विशेष करार द्वारा प्रदान करती है।
अनुच्छेद 139
इस अनुच्छेद के अनुसार रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना बताया गया है।
इसके अनुसार संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय के अनुच्छेद 32 के खंड (2) में वर्णित प्रयोजनों से भिन्न किन्हीं प्रयोजनों के लिए ऐसे निर्देश और आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं। या फिर उनमें से कोई निकालने की शक्ति प्रदान कर सकेगी ।
अनुच्छेद 140
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय की आनुषंगिक शक्तियां को बताया गया है।
इस अनुच्छेद के अनुसार संसद के नियमानुसार विधि द्वारा शकटिया उच्चतम न्यायालय को ऐसी अनुपूरक शक्तियां प्रदान करने के लिए उपबंध कर सकेगी जो इस संविधान के उपबंधों में से किसी से असंगत न हों। और जो उस न्यायालय को इस संविधान द्वारा या इसके अधीन प्रदत्त अधिकारिता का अधिक प्रभावी रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत होता हो।
अनुच्छेद 141
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना बताया गया है।
इसके अनुसार उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होगी।
अनुच्छेद 142
इस अनुच्छेद के अनुसार सुप्रीम कोर्ट किसी मामले में फैसला सुनाते समय संवैधानिक प्रावधानों के दायरे में रहते हुए ऐसा आदेश दे सकता है। जो कि किसी व्यक्ति को न्याय देने के लिए जरूरी हो। यह कहा जा सकता है कि किसी खास मामले में न्याय की प्रक्रिया को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कर सकता है।
इसके तहत अदालत फैसले में ऐसे निर्देश को शामिल कर सकती है। जो कि उसके सामने चल रहे किसी मामले को पूरा करने के लिये जरूरी हों। साथ ही कोर्ट किसी व्यक्ति की मौजूदगी और किसी दस्तावेज की जांच के लिए भी आदेश दे सकता है। कोर्ट अवमानना और सजा को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाने का निर्देश भी दे सकता है। शीर्ष अदालत का आदेश तब तक प्रभावी रहता है। जब तक उस मामले में कोई अन्य कानून लागू नहीं किया जाता
निम्न वाद मे इसका प्रयोग किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने के मामले को 2017 में रायबरेली से लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रांसफर करने के लिए भी अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया था। इस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत अन्य आरोपी थे। और अब इसी से जुड़े अयोध्या जमीन विवाद मामले में यह धारा का प्रयोग किया गया है।
इससे पहले भोपाल गैस त्रासदी मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पीड़ितों के लिए मुआवजे के ऐलान के बाद भी इसका इस्तेमाल किया था। तथा जेपी समूह और घर खरीदने वालों के केस और एक शादी के मामले में भी कोर्ट इसका इस्तेमाल कर चुका है।अयोध्या की विवादित जमीन पर निर्मोही अखाड़ा की दावेदारी खारिज करने के बाद कोर्ट ने विशिष्ट शक्तियों के तौर पर अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया।इसके अनुसार इसमे 5 जजों की बेंच ने कहा- विवादित जमीन से कई सालों के जुड़ाव और निर्मोही अखाड़े की सक्रिय भूमिका को देखते हुए उसे उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 143
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति को बताया गया है।
इसके अनुसार यदि किसी भी समय राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत होता है कि विधि या तनय का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है । या उत्पन्न होने की संभावना है। जो कि ऐसी प्रकृति का और उसके व्यापक महत्व का है। कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है। तो उस दशा मे वह उस प्रश्न को विचार करने के लिए उस न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा । और वह न्यायालय ऐसी सुनवाई के पश्चात जो वह ठीक समझता है उस अनुसार राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा।
राष्ट्रपति अनुच्छेद 312 के अनुसार परन्तुक में किसी बात के होते हुए भी जब इस प्रकार के विवाद को जो कि इसमे वर्णित है। उसको राय देने के लिए उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा। और उच्चतम न्यायालय ऐसी किसी भी सुनवाई के पश्चात जो वह ठीक समझता है। वह राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगा।
अनुच्छेद 144
इस अनुच्छेद के अनुसार पदाधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय की सहायता को बताया गया है।
इसके अनुसार भारत के राज्यक्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे।
इसमे निम्न संशोधन किया गया ।
विधियों की सांविधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों के निपटारे के बारे में विशेष उपबंध । संविधान (तैंतालीस वां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 5 द्वारा (13-4-1978 से) निरस्त किया गया ।
42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 की धारा 25 द्वारा (12-1977 से) अंतःस्थापित किया गया ।
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