भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 132 से 137 तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 131   तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।

अनुच्छेद 132

इस अनुच्छेद के अनुसार कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता को बताया गया है।
 भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल तथा  दांडिक या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय के अनुसार  डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी । यदि वह उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134क के अधीन प्रमाणित कर देता है कि उस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है। तो ऐसे दशा मे  जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे दिया गया है।  वहाँ उस मामले में कोई पक्षकार इस आधार पर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा कि पूर्वोक्त किसी प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है।

अनुच्छेद 133

इस अनुच्छेद के अनुसार  उच्च न्यायालयों से सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता को बताया गया है।

 (1) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय के अनुसार  डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी । यदि उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134 क के अधीन प्रमाणित कर देता है कि-

(क) उस मामले में जो निर्धारित है उसमे विधि का व्यापक महत्व का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है।  और
(ख) उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है।

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(2) अनुच्छेद 132 में किसी बात के होते हुए भी कि  उच्चतम न्यायालय में खंड (1) के अधीन अपील करने वाला कोई पक्षकार ऐसी अपील के आधारों में यह आधार भी बता सकेगा।  कि इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है।

(3) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी जो कि  उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के निर्णय के अनुसार  डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में तब तक नहीं होगी जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे।

इसमे निम्न संशोधन किया गया है।

संविधान (तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1972 की धारा 2 के द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 18 के द्वारा (1-8-1979 से) ”यदि उच्च न्यायालय प्रमाणित करे” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

अनुच्छेद 134

इस अनुच्छेद के अनुसार दांडिक विषयों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता को बताया गया है।

(1) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की दांडिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय जो कि  अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी यदि —
(क) उस उच्च न्यायालय ने अपील में किसी अभियुक्त व्यक्ति की दोषमुक्ति के आदेश को उलट दिया है।  और उसको मृत्यु दंडादेश दिया है।  या
(ख) उस उच्च न्यायालय ने अपने प्राधिकार के अधीनस्थ किसी न्यायालय से किसी मामले को विचारण के लिए अपने पास मंगा लिया है । और ऐसे विचार में अभियुक्त व्यक्ति को सिद्धदोष ठहराया है।  और उसको मृत्यु दंडादेश दिया है।  या
(ग) वह उच्च न्यायालय के अनुच्छेद 134 क के अधीन प्रमाणित कर देता है।  कि मामला उच्चतम न्यायालय में अपील किए जाने योग्य है।
(2) संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की दांडिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय के अनुसार  अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील की शर्तों और परी सीमाओं के अधीन रहते हुए जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट की जाएँ उस अनुसार  ग्रहण करने और सुनने की अतिरिक्त शक्ति दे सकेगी।

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इसमे निम्न संशोधन किए गए।

संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 19 द्वारा (1-8-1979 से) ”प्रमाणित करता है” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

अनुच्छेद 135

इस अनुच्छेद के अनुसार विद्यमान विधि के अधीन रहते हुए  फेडरल न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना बताया गया है।

इसके अनुसार जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे । तब तक उच्चतम न्यायालय को भी किसी ऐसे विषय के संबंध में जो कि  जिसको अनुच्छेद 133 या अनुच्छेद 134 के उपबंध लागू नहीं होते हैं। या फिर अधिकारिता और शक्तियाँ होंगी और यदि उस विषय के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी विद्यमान विधि के अधीन अधिकारियों और शक्तियाँ फेडरल न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य थीं।

अनुच्छेद 136

इस अनुच्छेद के अनुसार अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत को बताया गया है।

भारत के संविधान में अनुच्छेद 136 मे  भारत के सर्वोच्च न्यायालय को एक विशेष शक्ति प्रदान करता है। जिसके अनुसार  जो किसी भी मामले या कारण या फिर किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा भारत के क्षेत्र में किसी भी निर्णय या डिक्री या आदेश के खिलाफ अपील करने विशेष अनुमति के लिए विशेष शक्ति प्रदान करता है।यह  विवेकाधीन शक्ति भारत के सर्वोच्च न्यायालय में निहित है। और यह  अदालत अपने विवेकाधिकार से अपील करने के लिए अनुमति देने से इनकार कर सकती है।

अनुच्छेद 137

इस अनुच्छेद के अनुसार  सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों का पुनर्विलोकन करने का अधिकार प्राप्त है।
इस अनुच्छेद के अनुसार यदि सर्वोच्च न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि उसके द्वारा दिए गए निर्णय में किसी पक्ष के प्रति न्याय नहीं हुआ है । तो वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकता है । तथा उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है। इसमे यह कहा गया है कि संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति होगी।

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