दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 103 से 106 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 102   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 103-

इस धारा के अनुसार मजिस्ट्रेट अपनी उपस्थिति में तलाशी ली जाने के लिए निर्देश दे सकता है।
इस धारा के अनुसार कोई मजिस्ट्रेट किसी स्थान की जिसकी तलाश के लिए वह तलाशी वारंट जारी करने के लिए सक्षम है। वह  अपनी उपस्थिति में तलाशी ले सकता है।

धारा 104-

इस धारा के अनुसार न्यायालय की पेश की गई दस्तावेज आदि, को परिबद्ध करने की शक्ति को बताया गया है।
यदि कोई न्यायालय यह ठीक समझता है।  तो वह अपने किसी दस्तावेज या चीज को जो इस संहिता के अधीन उसके समक्ष पेश की गई है। या उसको  परिबद्ध कर सकता है।

धारा 105-

इस धारा मे आदेशिकाओं के बारे में व्यतिकारी व्यवस्था को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जहां उन राज्य क्षेत्रों का कोई न्यायालय जिन पर इस संहिता का विस्तार है। जिसके अनुसार उसको राज्य क्षेत्र माना गया है।

जिसमे किसी अभियुक्त व्यक्ति के नाम किसी समन के बारे मे बताया गया है।

जिसके अनुसार  किसी अभियुक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए किसी वारंट की

अथवा किसी व्यक्ति के नाम यह अपेक्षा करने वाले ऐसे किसी समन की कि वह किसी दस्तावेज या अन्य चीज को जो वह  पेश करे अथवा हाजिर हो और उसे पेश करता है।

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किसी तलाशी-वारंट की जो उस न्यायालय के द्वारा जारी किया गया हो।

ऐसे  राज्य क्षेत्रों के बाहर भारत में किसी राज्य या क्षेत्र के न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के अंदर है। और  वहां वह ऐसे समन या वारंट की तामील या निष्पादन के लिए जो की  दो प्रतियों में हैं और  उस न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के पास डाक द्वारा या अन्यथा भेज सकता है । और जहां खंड (क) या खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी समन की तामील इस प्रकार कर दी गई है । की वहां धारा 68 के उपबंध उस समन के संबंध में ऐसे लागू होंगे ऐसे की  मानो जिस न्यायालय को वह भेजा गया है उसका पीठासीन अधिकारी उक्त राज्य क्षेत्रों में मजिस्ट्रेट है।

 भारत के बाहर किसी ऐसे देश या स्थान में स्थित है। जिसकी स्थित को केंद्रीय सरकार द्वारा दांडिक मामलों के संबंध में समन या वारंट की तामील या निष्पादन के लिए ऐसे देश या स्थान की सरकार की जिससे कि इस धारा में इसके पश्चात् संविदाकारी राज्य कहा गया है।उसके  साथ व्यवस्था की गई है। तथा  वहां वह ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को निर्दिष्ट ऐसे समन या वारंट को दो प्रतियों में ऐसे प्रारूप में और पारेषण के लिए ऐसे प्राधिकारी को भेजेगा जो कि  केंद्रीय सरकार के द्वारा  अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।

जहाँ पर उस  राज्य क्षेत्रों के न्यायालय को-

जिसमे किसी अभियुक्त व्यक्ति के नाम किसी समन के बारे मे बताया गया है।

जिसके अनुसार  किसी अभियुक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए किसी वारंट की

अथवा किसी व्यक्ति के नाम यह अपेक्षा करने वाले ऐसे किसी समन की कि वह किसी दस्तावेज या अन्य चीज को जो वह  पेश करे अथवा हाजिर हो और उसे पेश करता है।

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किसी तलाशी-वारंट की जो उस न्यायालय के द्वारा जारी किया गया हो।
जो निम्नलिखित में से किसी के द्वारा जारी किया गया है ।

उसमे से किसी राज्य क्षेत्रों के बाहर भारत में किसी राज्य या क्षेत्र के न्यायालय के द्वारा

किसी ऐसे  संविदाकारी राज्य का कोई न्यायालय  न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के द्वारा

तामील या निष्पादन के लिए प्राप्त होता है। और  वहां वह उसकी तामील या निष्पादन का पालन करेगा  मानो वह ऐसा समन या वारंट है जो उसे उक्त राज्य क्षेत्रों के किसी अन्य न्यायालय से अपनी स्थानीय अधिकारिता के अंदर तामील या निष्पादन के लिए प्राप्त हुआ है ।
 और जहां पर  गिरफ्तारी का वारंट निष्पादित कर दिया जाता है। तो  वहां गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के बारे में कार्यवाही यथासंभव धारा 80 और 81 द्वारा विहित क्रिया के अनुसार की जाएगी।

तथा  तलाशी वारंट निष्पादित कर दिया जाता है। तो  वहां तलाशी में पाई गई चीजों के बारे में कार्यवाही उस  धारा 101 में विहित प्रक्रिया के अनुसार की जाएगी।

परंतु उस मामले में, जहां संविदाकारी राज्य से प्राप्त समन या तलाशी वारंट का निष्पादन कर दिया गया है। ऐसे मामले मे तलाशी में पेश किए गए दस्तावेज या चीजें या पाई गई चीजें समन या तलाशी वारंट जारी करने वाले न्यायालय की ऐसे प्राधिकारी की मार्फत अग्रेषित की जाएंगी जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।

धारा 106-

इस धारा के अनुसार दोषसिद्धि पर परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति को बताया गया है।
जिसके अनुसार  जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी व्यक्ति को उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध के लिए या फिर ऐसे किसी अपराध के दुप्रेरण के लिए सिद्धदोष ठहराता है । जिसमे  उसकी यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशांति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति ली जाए ऐसे दशा मे  न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दंडादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है । कि वह तीन वर्ष से अधिक समय के लिए  जितनी वह ठीक समझेउतने समय के लिए  परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित उसको बंधपत्र निष्पादित करे।

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