जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 106 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 107
इस धारा के अनुसार अन्य दशाओं में परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति के बारे मे बताया गया है।
इस धारा के अनुसार कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है की ऐसा संभव है कि कोई व्यक्ति परिशांति भंग करेगा। या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा । या कोई ऐसा सदोष कार्य करेगा जिससे परिशांति भंग हो सकती है। या फिर लोक प्रशांति विक्षुब्ध हो सकती है। तब यदि उसके अनुसार कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह् ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है । कि वह कारण दर्शित करे कि एक वर्ष से अधिक जितनी मजिस्ट्रेट निर्धारित करना ठीक समझे। परिशांति कायम रखने के लिए उसे प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए।
इस धारा के अनुसार अधीन रहते हुए यदि किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब की जा सकती है। जब या तो वह स्थान जहाँ परिशांति भंग या विक्षोभ की आशंका है। उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर आता है या फिर ऐसी अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति आता है जो ऐसी अधिकारिता के अलावा यह हो सकता है की परिशांति भंग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या यथा पूर्वोक्त कोई सदोष कार्य करेगा।
धारा 108
इस धारा के अनुसार राज द्रोह से संबन्धित बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना मिलती है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है जो ऐसी अधिकारिता के अंदर या बाहर या तो मौखिक रूप से या लिखित रूप से या फिर किसी अन्य रूप से निम्नलिखित बातें इस आशय से फैलाता है । या फिर इसको फैलाने का प्रयत्न करता है । या फैलाने का दुप्रेरण करता है। अर्थात्
ऐसा कुछ जिसका प्रकाशन भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 124क या धारा 153क या धारा 153ख या धारा 295क के अधीन दंडनीय माना गया है। अथवा
किसी न्यायाधीश के द्वारा जो अपने स्थापित पद पर या अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा है। या कार्य करने का तात्पर्य रखता है। या फिर इससे संबन्धित कोई बात जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन आपराधिक अभित्रास या मानहानि की कोटि में आती है। अथवा
भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 292 के तहत वर्णित धारा मे यदि कोई अश्लील वस्तु विक्रय के लिए बनाता है या फिर उत्पादित करताहै । या फिर प्रकाशित करता या रखता है। या फिर आयात करता है। या फिर निर्यात करता है। प्रवण करता है। विक्रय करता है। या फिर भाड़े पर देता है। और उसको वितरित करता है। और सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है। या किसी अन्य प्रकार से परिचालित करता है।
तब उस मजिस्ट्रेट के अनुसार कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है । तब वह मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से जिसमे इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है। कि वह कारण बताए कि एक वर्ष से अधिक कितने अवधि के लिए जितनी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझते है। उसे अपने सदाचार के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए।
इस धारा के अननुसार प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 (1867 का 25) में दिए गए नियमों के अधीन रजिस्ट्रीकृत करना और उनके अनुरूप संपादित तथा मुद्रित और प्रकाशित किसी प्रकाशन में अंतर्विष्ट किसी बात के बारे में कोई कार्यवाही ऐसे प्रकाशन के संपादक स्वत्वधारी मुद्रक या प्रकाशक के विरुद्ध राज्य सरकार के या फिर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए किसी अधिकारी के आदेश से या उसके प्राधिकार के अधीन ही की जाएगी अन्यथा नहीं।
धारा 109
इस धारा के अनुसारसंदिग्ध व्यक्ति से सदाचार के लिए बॉंड भरवाया जा सकता है। इसके अनुसार जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह सूचना मिलती है । कि कोई अनजान व्यक्ति उसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर अपनी पहचान एवं उपस्थिति छुपाने के लिए सावधानिया बरत रहा है एवं विश्वास है। कि वह किसी गंभीर अपराध को अंजाम दे सकता है। तब ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट ऐसे किसी व्यक्ति को न्यायालय में बुलाकर एक वर्ष से कम का जमानत बन्ध-पत्र ले सकते है। मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति से अपेक्षा करेगा कि वह ऐसे कोई को अंजाम नहीं देगा और यदि वह बंधपत्र का उल्लंघन करता है तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
इस धारा के अनुसार संदिग्ध व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जिसकी पहचान संदेह प्रद होती है। अर्थात शक के तहत होती है। जो जाना पहचाना नहीं होता है। और कोई व्यक्ति किसी जगह में अपनी पहचान छुपाकर रहता है। वह एक संदिग्ध व्यक्ति हो सकता है।
धारा 110
इस धारा के अनुसार मुख्य रूप से कुख्यात अपराधकर्मियों जो जेल से जमानत पर छूटे हुए है तथा उनके द्वारा शांति व्यवस्था भंग किए जाने की संभावना बनी रहती है। इसके तहत एसडीओ को प्रस्ताव समर्पित किया जाता है। जहां इन्हें बांड डाउन किया जाता है। इसके अनुसार मुख्य रूप से कुख्यात अपराधकर्मियों जो जेल से जमानत पर छूटे है तथा उनके द्वारा शांति व्यवस्था भंग किए जाने की संभावना बनी रहने पर इस दफा का प्रयोग होता है। इसके तहत एसडीओ को प्रस्ताव समर्पित किया जाता है। जहां इन्हें बांड डाउन किया जाता है।
इस धारा के अनुसार जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट जिसके अंतर्गत (नायब तहसीलदार, तहसीलदार, SDM, DM(कलेक्टर) )को यह सूचना मिलती है कि उसकी अधिकारिता के अंदर ऐसा व्यक्ति छुपा हुआ है जो कि लुटेरा ,गृहभेदक, चोर, नकली दस्तावेज तैयार करने वालाया चुराई संपत्ति को क्रय-विक्रय करने वाला या चोरों को संरक्षण एवं चोरी की संपत्ति को छुपाने वालाया व्यपहरण-अपहरण,उद्दापन, छल, रिष्टि,सिक्को और सरकारी स्टाम्पों का कुटकरण करने वालाव्यक्ति है । या फिर वह निम्न अधिनियम से संबंधित कोई भी अपराध मे शामिल हो जैसे –
ओषधि और प्रसाधन सामग्री एक्ट,1940।
विदेशी मुद्रा विनियमन एक्ट,1973।
कर्मचारी भविष्य निधि एक्ट,1952।
खाद्द अपमिश्रण निवारण एक्ट,1954।
आवश्यक वस्तु एक्ट,1955।
अस्पृश्यता एक्ट,1955।
सीमा शुल्क एक्ट,1962।
विदेशी विषयक एक्ट,1946।
ऐसा भयंकर व्यक्ति अर्थात वह व्यक्ति जो अत्यधिक उतावला हो या फिर लापरवाह हो अथवा अपने कार्य के परिणामो को कोई मान्यता नहीं देता है।
इस प्रकार के अपराधी को सदाचार बनाने के लिए कार्यपालक मजिस्ट्रेट न्यायालय में बुलाकर कर अधिकतम तीन वर्ष की अवधि तक जमानत बन्ध पत्र की मांग कर सकता है।
यदि आपको इन को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।