जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 93 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 94-
इस धारा के अनुसार हत्या और मृत्यु से दंडनीय उन अपराधियों को जो राज्य के विरुद्ध है। उनको छोड़कर कोई बात अपराध नहीं है। और जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए ऐसी धमकियों से विवश किया गया हो जिनसे उस बात को करते समय उसको युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो गई हो कि अन्यथा परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो सकती है।
परन्तु यह तब जबकि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति ने अपनी ही इच्छा से या तत्काल मॄत्यु से कम अपनी अपहानि की युक्तियुक्त आशंका से अपने को उस स्थिति में न डाला हो। ऐसे स्थित मे जिसमें कि वह ऐसी मजबूरी के अधीन पड़ गया है ।
इससे स्पस्ट होता है की वह व्यक्ति जो स्वयं अपनी इच्छा से या पीटे जाने की धमकी के कारण डाकुओं की टोली में उनके शील को जानते हुए सम्मिलित हो जाता है। इस आधार पर ही इस अपवाद का फायदा उठाने का हकदार नहीं कि वह अपने साथियों द्वारा ऐसी बात करने के लिए विवश किया गया था जो विधना अपराध है ।
इससे स्पस्ट होता है की यदि डाकुओं की एक टोली द्वारा अभिगृहीत और तत्काल मृत्यु धमकी द्वारा किसी बात के करने के लिए जो विधना अपराध है। यदि उसको विवश किया गया व्यक्ति उदाहरणार्थ, एक लोहार, जो अपने औजार लेकर एक गॄह का द्वारा तोड़ने को विवश किया जाता है। तो जिससे डाकू उसमें प्रवेश कर सकें और उसे लूट सकें इस अपवाद का फायदा उठाने के लिए हकदार है ।
धारा 95 –
इस धारा मे प्रकाशनों के द्वारा समपहृत होने की घोषणा करने और उनके लिए तलाशी-वारंट जारी करने की शक्ति को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जहां राज्य सरकार को प्रतीत होता है कि-
किसी समाचार-पत्र या पुस्तक में या फिर
किसी दस्तावेज में चाहे वह कहीं भी मुद्रित हुई हो वहा पर कोई ऐसी बात अंतर्विष्ट है जिसका प्रकाशन भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 124क या धारा 153क या धारा 153ख या धारा 292 या धारा 293 या धारा 295क के अधीन दंडनीय है।
ऐसे राज्य सरकार ऐसी बात अंतर्विष्ट करने वाले समाचार-पत्र के अंक की प्रत्येक प्रति का तथा ऐसी पुस्तक या अन्य दस्तावेज की प्रत्येक प्रति का सरकार के पक्ष में समपहरण कर लिए जाने की घोषणा करता हो वह अपनी राय के आधारों का कथन करते हुए, अधिसूचना द्वारा कर सकती है।
और तब भारत में, जहाँ भी वह मिले कोई भी पुलिस अधिकारी उसे अभिगृहीत कर सकता है और कोई मजिस्ट्रेट, उप-निरीक्षक से निम्न पंक्ति के किसी पुलिस अधिकारी को किसी किसी ऐसे परिसर में जहां ऐसे किसी अंक की कोई प्रति या ऐसी कोई पुस्तक या अन्य दस्तावेज है। या उसके होने का उचित संदेह है। उसको प्रवेश करने और उसके लिए तलाशी लेने के लिए वारंट द्वारा प्राधिकृत कर सकता है।
इस धारा में यह बताया गया है कि “समाचार-पत्र” और “पुस्तक के वे ही अर्थ होंगे जो प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 (1867 का 25) में हैं।
इसमे “दस्तावेज” के अंतर्गत रंगचित्र रेखाचित्र या फोटोचित्र या अन्य दृश्यरूपण भी शामिल हैं।
धारा 96-
इस धारा मे प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें बताया गया है।
इस धारा के अनुसार कोई बात अपराध नहीं है। जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है |
धारा 97-
इस धारा मे सदोष परिरुद्ध व्यक्तियों के लिए तलाशी को बताया गया है।
इसके अनुसार यदि किसी जिला मजिस्ट्रेटया उपखंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण है । कि कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में परिरुद्ध है। जिनमें वह परिरोध अपराध की कोटि में आता है।
तो वह तलाशी-वारंट जारी कर सकता है और वह व्यक्ति जिसको ऐसा वारंट निदिष्ट किया जाता है। ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति के लिए तलाशी ले सकता है। और ऐसी तलाशी इस प्रकार ली जाएगी और यदि वह व्यक्ति मिल जाता है । तो उसे तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाया जाएगा जो ऐसा आदेश करेगा जैसा उस मामले की परिस्थितियों में उचित प्रतीत हो।
धारा 98-
इस धारा के अनुसार ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकॄतचित्त हो उसको बताया गया है। जब कोई कार्य जो अन्यथा कोई अपराध होताहै। या फिर उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपनया समझ की परिपक्वता के अभाव और चित्तविकॄति या मत्तता के कारण या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण वही अपराध नहीं है। तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है। जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता ।
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उदाहरण –
राम पागलपन के असर में श्याम को जान से मारने का प्रयत्न करता है । राम किसी अपराध का दोषी नहीं है । किन्तु श्याम को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है। जो वह श्याम के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता है।
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