(सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 239 से धारा 243 का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 239 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 239

इस धारा के अनुसार अभियुक्त को कब उन्मोचित किया जाएगा यह बताया गया है।

इसमे यदि धारा 173 के अधीन पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ भेजी गई दस्तावेजों पर विचार कर लेने पर और अभियुक्त की ऐसी परीक्षा जो की  यदि कोई हो तो  जैसी मजिस्ट्रेट आवश्यक समझे उस प्रकार से  कर लेने पर और अभियोजन और अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् मजिस्ट्रेट अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को निराधार समझता है तो वह उसे उन्मोचित कर देगा और ऐसा करने के अपने कारण लेखबद्ध करेगा।

धारा 240

इस धारा के अनुसार आरोप विरचित करना बताया गया है।

(1) यदि ऐसे विचार जो की  परीक्षा  यदि कोई हो तो  और सुनवाई कर लेने पर मजिस्ट्रेट की यह राय है।  कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन विचारणीय ऐसा अपराध किया है जिसका विचारण करने के लिए, वह मजिस्ट्रेट सक्षम है और जो उसकी राय में उसके द्वारा पर्याप्त रूप से दंडित किया जा सकता है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।

(2) तब वह आरोप अभियुक्त को पढ़ कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे यह पूछा जाएगा कि क्या वह उस अपराध का, जिसका आरोप लगाया गया है दोषी होने का अभिवाक् करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है।

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धारा 241

इस धारा के अनुसार दोषी होने के अभिवाक् पर दोषसिद्धि  को बताया गया है।  यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट उस अभिवाक् को लेखबद्ध करेगा और उसके आधार पर उसे, स्वविवेकानुसार, दोषसिद्ध कर सकेगा।

धारा 242

इस धारा के अनुसार अभियोजन के लिए साक्ष्य को बताया गया है।
(1) यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इनकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 241 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है तो वह मजिस्ट्रेट साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा।

[परंतु मजिस्ट्रेट अभियुक्त को पुलिस द्वारा अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किए गए साक्षियों के कथन अग्रिम रूप से प्रदाय करेगा।]

(2) मजिस्ट्रेट अभियोजन के आवेदन पर उसके साक्षियों में से किसी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है।

(3) ऐसी नियत तारीख पर मजिस्ट्रेट ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाता है :

परन्तु मजिस्ट्रेट किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा तब तक के लिए, जब तक किसी अन्य साक्षी या साक्षियों की परीक्षा नहीं कर ली जाती है, आस्थगित करने की अनुज्ञा दे सकेगा या किसी साक्षी को अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा के लिए पुनः बुला सकेगा।

धारा 243

इस धारा के अनुसार प्रतिरक्षा का साक्ष्य को बताया गया है।
(1) तब अभियुक्त से अपेक्षा की जाएगी कि वह अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करे और अपना साक्ष्य पेश करें।  और यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो मजिस्ट्रेट उसे अभिलेख में फाइल करेगा।

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(2) यदि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट से आवेदन करता है कि वह परीक्षा या प्रतिपरीक्षा के, या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के प्रयोजन से हाजिर होने के लिए किसी साक्षी को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी करे तो इसे  मजिस्ट्रेट ऐसी आदेशिका जारी करेगा जब तक उसका यह विचार न हो कि ऐसा आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर दिया जाना चाहिए कि वह तंग करने के या विलंब करने के या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के प्रयोजन से किया गया है। और ऐसा कारण उसके द्वारा लेखबद्ध किया जाएगा।

परन्तु जब अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करने के पूर्व अभियुक्त ने किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल चुका है तब ऐसे साक्षी को हाजिर होने के लिए इस धारा के अधीन तब तक विवश नहीं किया जाएगा जब तक मजिस्ट्रेट का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के प्रयोजनों के लिए आवश्यक है।

(3) मजिस्ट्रेट उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने के पूर्व यह अपेक्षा कर सकता है कि विचारण के प्रयोजन के लिए हाजिर होने में उस साक्षी द्वारा किए जाने वाले उचित व्यय न्यायालय में जमा कर दिए जाएं।

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