(सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 261 से 265 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 260 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 261

इस धारा के अनुसार उच्च न्यायालय किसी ऐसे मजिस्ट्रेट को जिसमें द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियां निहित हैं। उसको  किसी ऐसे अपराध का जो केवल जुर्माने से या जुर्माने सहित या रहित छह मास से अधिक के कारावास से दंडनीय है । और उसे किसी अपराध के दुप्रेरण या ऐसे किसी अपराध को करने के प्रयत्न का संक्षेपतः विचारणीय करने की शक्ति प्रदान कर सकता है।

धारा 262

इस धारा के अनुसार संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया–

(1) इस अध्याय के अधीन विचार में इसके पश्चात् इसमें जैसा वर्णित है उसके सिवाय, इस संहिता में समन-मामलों के विवरण के लिए विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा।
(2) तीन माह से अधिक की अवधि के लिए कारावास का कोई दण्डादेश इस अध्याय के अधीन किसी दोषसिद्धि के मामले में न दिया जाएगा।

धारा 263  

इस धारा के अनुसार संक्षिप्त विवरण के रिकॉर्ड को बताया गया है । जिसके अनुसार  संक्षिप्त विवरण के सभी रिकॉर्ड लेखबद्ध किए जाएंगे। सामान्यतः कुछ बातें है जैसे अपराध का क्रमांक, अभियुक्त का पता नाम इत्यादि सभी बातों को एक कैसे फॉर्मेट में लेखबद्ध किया जाएगा जैसा फॉर्मेट राज्य सरकार निहित करती है।

धारा 264

इस धारा के अनुसार संक्षिप्त मामलों के अंतर्गत निर्णय दिया जाता है। यदि मामले में अभियुक्त दोषी होने का अभिवाक नहीं करता है अपराध स्वीकार नहीं करता है तो मजिस्ट्रेट साक्ष्य लेता है। साक्ष्य लेने के बाद साक्ष्य के सारांश तथा अपने निष्कर्ष के कारणों का उल्लेख निर्णय में करेगा। इस धारा का उद्देश्य मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध अपील की दशा में अपील न्यायालय को सूचित जानकारी उपलब्ध कराना है। कोई भी मजिस्ट्रेट जो अपना निर्णय देगा अपने निष्कर्ष का उल्लेख करें एवं उसके कारणों को लेखबद्ध करेगा।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 331  तथा धारा 335  का विस्तृत अध्ययन

धारा 265

इस धारा के अनुसार अभिलेख और निर्णय की भाषा को बताया गया है।

(1) ऐसा प्रत्येक अभिलेख और निर्णय न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा।
(2) उच्च न्यायालय संक्षेपतः: विचारणीय करने के लिए सशक्त किए गए किसी मजिस्ट्रेट को प्राधिकृत कर सकता है कि वह पूर्वोक्त अभिलेख या निर्णय या दोनों उस अधिकारी से तैयार कराए जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इन निमित्त नियुक्त किया गया है और इस प्रकार तैयार किया गया अभिलेख या निर्णय ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा।

  उम्मीद करती  हूँ । आपको  यह समझ में आया होगा।  अगर आपको  ये आपको पसंद आया तो इसे social media पर  अपने friends, relative, family मे ज़रूर share करें।  जिससे सभी को  इसकी जानकारी मिल सके।और कई लोग इसका लाभ उठा सके।

यदि आप इससे संबंधित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमें कुछ जोड़ना चाहते है। या इससे संबन्धित कोई और सुझाव आप हमे देना चाहते है।  तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है।  कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो उसके लिए भी आप उससे संबंधित जानकारी भी ले सकते है।

Leave a Comment