(सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 294 से धारा 299  तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 294  तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 294

इस धारा मे कुछ दस्तावेजों का औपचारिक सबूत आवश्यक न होना बताया गया है। जिसके अनुसार
(1) जहां अभियोजन या अभियुक्त द्वारा किसी न्यायालय के समक्ष कोई दस्तावेज फाइल की गई है वहां ऐसी प्रत्येक दस्तावेज की विशिष्टियाँ एक सूची में सम्मिलित की जाएंगी और यथास्थिति, अभियोजन या अभियुक्त अथवा अभियोजन या अभियुक्त के प्लीडर से, यदि कोई हों, ऐसी प्रत्येक दस्तावेज का असली होना स्वीकार या इंकार करने की अपेक्षा की जाएगी।
(2) कुछ ऐसे  दस्तावेजों की सूची ऐसे प्ररूप में होगी जो राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाए।
(3) जहाँ किसी दस्तावेज का असली होना विवादग्रस्त नहीं है । तो वहाँ ऐसी दस्तावेज उस व्यक्ति के जिसके द्वारा उसका हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, हस्ताक्षर के सबूत के बिना इस संहिता के अधीन किसी जाँच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य में पढ़ी जा सकेगी ।
परन्तु न्यायालय, स्वविवेकानुसार, यह अपेक्षा कर सकता है कि ऐसे हस्ताक्षर साबित किए जाएं।

धारा 295

इस धारा के अनुसार लोक सेवकों के आचरण के सबूत के बारे में शपथ-पत्र को बताया गया है।
जब किसी न्यायालय में इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के दौरान कोई आवेदन किया जाता है और उसमें किसी लोक सेवक के बारे में अभिकथन किए जाते हैं तब आवेदक आवेदन में अभिकथित तथ्यों का शपथपत्र द्वारा साक्ष्य दे सकता है और यदि न्यायालय ठीक समझे तो वह आदेश दे सकता है कि ऐसे तथ्यों से संबंधित साक्ष्य इस प्रकार दिया जाए।

See Also  दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 138 से 143 तक का विस्तृत अध्ययन

धारा 296

इस धारा के अनुसार शपथ-पत्र पर औपचारिक साक्ष्य को बताया गया है।
(1) किसी भी व्यक्ति का ऐसा साक्ष्य जो औपचारिक है शपथपत्र द्वारा दिया जा सकता है और सब न्यायसंगत अपराधों के अधीन रहते हुए, इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य में पढ़ा जा सकता है।
(2) यदि न्यायालय ठीक समझे तो वह किसी व्यक्ति को समन कर सकता है और उसके शपथपत्र में अन्तर्विष्ट तथ्यों के बारे में उसकी परीक्षा कर सकता है किन्तु अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पर ऐसा करेगा।

धारा 297

इस धारा के अनुसार प्राधिकारी जिनके समक्ष शपथ पत्र पर शपथ ग्रहण किया जा सकेगा उसके बारे मे बताया गया है।

(1) इस संहिता के अधीन किसी न्यायालय के समक्ष उपयोग में लाए जाने वाले शपथ पत्र पर शपथ ग्रह्ण या प्रतिज्ञान निम्नलिखित के समक्ष किया जा सकता है

‘[(क) कोई न्यायाधीश या कोई न्यायिक या कार्यपालक मजिस्ट्रेट ; अथवा];

(ख) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा नियुक्त कोई शपथ कमिश्नर ; अथवा

(ग) नोटरी अधिनियम, 1952 (1952 का 53) के अधीन नियुक्त कोई नोटरी।

(2) शपथपत्र ऐसे तथ्यों तक, जिन्हें अभिसाक्षी स्वयं अपनी जानकारी से साबित करने के लिए समर्थ है और ऐसे तथ्यों तक जिनके सत्य होने का विश्वास करने के लिए उसके पास उचित आधार है. सीमित होंगे और उसमें उनका कथन अलग-अलग होगा तथा विश्वास के आधारों की दशा में अभिसाक्षी ऐसे विश्वास के आधारों का स्पष्ट कथन करेगा।

(3) न्यायालय शपथपत्र में किसी कलंकात्मक और विसंगत बात के काटे जाने या संशोधित किए जाने का आदेश दे सकेगा।

See Also  दंड प्रक्रिया संहिता धारा 16 से 22 तक का अध्ययन

धारा 298

इस धारा के अनुसार पूर्व दोषसिद्धि या दोषमुक्ति कैसे साबित की जाए बताया गया है।
पूर्व दोषसिद्धि या दोषमुक्ति को, इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में, किसी अन्य ऐसे ढंग के अतिरिक्त, जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा उपबंधित है,-
(क) ऐसे उद्धरण द्वारा, जिसका उस न्यायालय के, जिसमें ऐसी दोषसिद्धि या दोषमुक्ति हुई, अभिलेखों को अभिरक्षा में रखने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित उस दण्डादेश या आदेश की प्रतिलिपि होना है, अथवा
(ख) दोषसिद्धि की दशा में, या तो ऐसे प्रमाणपत्र द्वारा, जो उस जेल के भारसाधक अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित है जिसमें दण्ड या उसका कोई भाग भोगा गया या सुपुर्दगी के उस वारंट को पेश करके, जिसके अधीन दंड भोगा गया था,
और इन दशाओं में से प्रत्येक में इस बात के साक्ष्य के साथ कि अभियुक्त व्यक्ति वही व्यक्ति है जो ऐसे दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया गया, साबित किया जा सकेगा।

धारा 299

इस धारा के अनुसार पूर्व दोषसिद्धि या दोषमुक्ति कैसे साबित की जाए इस बारे बारे मे बताया गया है।

(1) यदि यह साबित कर दिया जाता है कि अभियुक्त व्यक्ति फरार हो गया है और उसके तुरन्त गिरफ्तार किए जाने की कोई सम्भावना नहीं है तो उस अपराध के लिए, जिसका परिवाद किया गया है, उस व्यक्ति का विचारण करने के लिए या विचारण के लिए सुपुर्द करने के लिए सक्षम] न्यायालय अभियोजन की ओर से पेश किए गए साक्षियों की (यदि कोई हो), उसकी अनुपस्थिति में परीक्षा कर सकता है और उनका अभिसाक्ष्य अभिलिखित कर सकता है और ऐसा कोई अभिसाक्ष्य उस व्यक्ति के गिरफ्तार होने पर, उस अपराध की जांच या विचारण में, जिसका उस पर आरोप है, उसके विरुद्ध साक्ष्य में दिया जा सकता है यदि अभिसाक्षी मर गया है, या साक्ष्य देने के लिए असमर्थ है, या मिल नहीं सकता है या उसकी हाजिरी इतने बिलम्ब, व्यय या असुविधा के बिना, जितनी कि मामले की परिस्थितियों में अनुचित होगी, नहीं कराई जा सकती है।

See Also  मोटर यान अधिनियम के अनुसार दावा न्यायाधिकरण Claim tribunal under motor vehicle act

(2) यदि यह प्रतीत होता है कि मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय कोई अपराध किसी अज्ञात व्यक्ति या किन्हीं अज्ञात व्यक्तियों द्वारा किया गया है तो उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश निदेश दे सकता है कि कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जांच करे और किन्हीं साक्षियों की जो अपराध के बारे में साक्ष्य दे सकते हों, परीक्षा करे और ऐसे लिया गया कोई अभिसाक्ष्य, किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जिस पर अपराध का तत्पश्चात् अभियोग लगाया जाता है, साक्ष्य में दिया जा सकता है यदि अभिसाक्षी मर जाता है या साक्ष्य देने के लिए असमर्थ हो जाता है या भारत की सीमाओं से परे है।

Leave a Comment