सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 87 से धारा 92 का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 86   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी। और पढ़ने के बाद हमें अपना कमेंट अवश्य दीजिये.

धारा 87 –

इस धारा के अनुसार विदेशी शासकों का वादो के रूप मे पक्षकारों के रूप मे अभियान को बताया गया है। जिसके अनुसार विदेशी राज्य का शासक अपने देश के अनुसार वाद ला सकता है। विदेशी राजदूत के प्रति वाद संचित करता है तो केंद्र सरकार के अनुसार ही वाद लाया जा सकता है।
हर न्यायालय इस तथ्य का न्यायिक अवधारणा करेगा की –
कोई राज्य केंद्र सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त है की नही।
कोई राज्य अधिपति के रूप मे केंद्र सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त है की नही।

धारा 88-

इस धारा के अनुसार अन्तराभिवाची वाद को बताया गया है। यह वाद वादी और प्रतिवादी के बीच मे न होकर यह प्रतिवादी के बीच मे होता है । यह 2 प्रतिवादी के बीच होता है। यह चल और अचल संपत्ति को लेकर होता है की इसमे असली हकदार कौन होता है।

उदाहरण –

संजय नाम का व्यक्ति राजेश से 10000 रुयये उधार लेता है और अगस्त 2022 तक वापस करने को बोलता है पर उससे पहले राजेश की मृतु हो जाती है उससे पहले अमित और सुमित उसके पास आता है और कहता है की मै इसका असली हकदार हु । क्योकि मै राजेश का असली वारिश हु और सुमित कहता है असली हकदार मै हु । अब संजय को इसके लिए न्याय्यलय जाना पड़ता है की सच मे असली वरिष कौन है।

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धारा 88 मे इस प्रकार की शर्तें बताई गयी है कब कोई व्यक्ति अन्तराभिवाची वाद कर सकता है।

जब कोई वाद किसी पैसे या संपत्ति को लेकर 2 या 2 से अधिक लोंगों के बीच विवाद का कारण बन रहा हो। कोई चल या अचल संपत्ति पर 2 या 2 सी धिक लोग उसपर हक़ जाता रहे हो। जिसके पास वह पैसे हो उसका उसमे कोई रुचि न हो ।

कोई नौकर अपने मालिक के खिलाफ अन्तराभिवाची वाद नही कर सकता है। ‘
कोई मकान मालिक के खिलाफ किरायेदार अन्तराभिवाची वाद नही कर सकता है । इसको छोड़कर कोई अन्य व्यक्ति जिसका उस प्रॉपर्टी पर कोई रुचि नहीं है अन्तराभिवाची वाद दायर कर सकता है।

धारा 89-

इस  धारा के अनुसार न्यायालय के बाहर विवादों के निपटारे को बताया गया है।

इस धारा के अनुसार यदि कोई वाद चल रहा होता है और न्यायालय को ऐसा लगता है की समझौते का पक्ष हो सकता है और दोनों पक्षो के बीच समझौता हो सकता है तो पक्षहकारो के मध्य टीका टिपपड़ी के लिए निबंधन तैयार करता है और पक्षहकारो को उसके लिए तैयार करता है। पक्षकार टीका टिपपड़ी प्राप्त करने के बाद न्याय्यलय संभव समझौते के अनुसार  निबंधन फिर से तैयार करेगा और उन्हे माध्यस्थम ।सुलह । बीच बचाव । न्यायिक समझौते के लिए निर्दिष्ट करता है।

इन चार तरीके से समझौता कराया जाता है। लोक अदालत के लिए एक समय निर्धारित होगा और वहा पर समझौता कराया जाता है और यदि वहा समझौता हो जाता है तो अच्छा है नही तो वापस न्याय्यलय मे आना होता है यह ऑर्डर 10 मे बताया गया है।

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धारा 90 –

इस धारा के अनुसार यह न्यायालय की राय के लिए कथन करने की शक्ति को बताया गया है।

इस धारा के अनुसार पक्षकार न्यायालय के राय के लिए किसी मामले मे कथन करने के लिए लिखित करार कर लेता है। वहा पर न्याय्यलय की राय व्यक्त की जाती है वह विधिक रीति से विचार करके अवधारणा दी जाती है।

धारा 91-

इस धारा के अनुसार लोक न्यूसेंस और लोक पर दुष्प्रभाव डालने वाले कारक को बताया गया है।
इसके अनुसार  लोक न्यूसेंस जो कोई ऐसा कार्य करता है। या  फिर किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है। जिससे लोक को या जनसाधारण को जो आसपास में रहते हों या आसपास की संपत्ति पर अधिभोग रखते हों। या फिर  कोई सामान्य क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो या जिसमें उन व्यक्तियों का जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े, क्षति, बाधा, संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यम्भावी होता है। ।
कोई सामान्य न्यूसेंस इस आधार पर माफी योग्य नहीं है, कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है।उसको 200 रुपये तक जुर्माना दिया जा सकता है और फिर भी लोक न्यूसेंस बंद नहीं होता है तो 6 माह तक का कारावास दिया जा सकता है।

इसके लिए वाद दायर करने के लिए अधिवक्ता या 2 या 2 से अधिक व्यक्ति न्यायालय के सहमति से वाद दायर कर सकते है जिसके लिए यह जरूरी नही है की उनको ज्यादा नुकसान हुआ है।

इस धारा की कोई वाद वाद के किसी ऐसे अधिकार को परिसीमित नहीं करेगी जिसका अस्तित्व इस उपबंधों से स्वतंत्र है वह यह प्रभाव नहीं डालेगी।

धारा 92-

इस धारा के अनुसार लोक पूर्त कार्य को बताया गया है।

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इस धारा के अनुसार जहा पूर्त या धार्मिक कार्य के प्रयोजन के लिए किसी अभिव्यक्ती या न्याय के प्रशासन के लिए न्यायालय के निर्देश की आवश्यकता होती है तो वहा निम्न व्यक्ति के द्वारा वाद दायर किया जा सकता है।

महाधिवक्ता के द्वारा
2 या 2 से अधिक व्यक्ति के द्वारा  या न्यास मे हित रखने वाले व्यक्ति के द्वारा न्यायालय के सहमति से वाद दायर कर सकते है।

निम्न डिक्री के लिए वाद दायर किया जा सकता है।

किसी न्यासी को हटाने की डिक्री के लिए
नए न्यासी के नियुक्ति के लिए डिक्री के लिए
न्यासी मे संपत्ति के हित के लिए डिक्री के लिए
लेखा जोखा की जांच के लिए डिक्री के लिए
डिक्री के न्यास संपत्ति के प्रयोजन के लिए आवंटन के लिए डिक्री पारित करने के लिए
योजना संबंधित डिक्री के लिए
न्यास के प्रावधान के लिए डिक्री के लिए  न्यायालय की सहमति से वाद दायर कर सकते है।

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