भारत का संविधान अनुच्छेद 221 से 225 तक

जैसा की आप सबको पता ही है कि भारत का संविधान अनुच्छेद 216  से लेकर के 220 तक हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। इस पोस्ट पर हम भारत का संविधान अनुच्छेद 221 से 225 तक आप को बताएंगे अगर आपने इससे पहले के अनुच्छेद नहीं पढ़े हैं तो आप सबसे पहले उन्हें पढ़ ले जिससे कि आपको आगे के अनुच्छेद पढ़ने में आसानी होगी।

अनुच्छेद 221

न्यायाधीशों के वेतन,के बारे मे बताया गया है।

1(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो संसद्, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।

(2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे भत्तों का तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का, जो संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधारित किए जाएं, और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किए जाते हैं तब तक ऐसे भर्तों और अधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा :

परंतु किसी न्यायाधीश के भत्तों में और अनुपस्थिति छुट्टी या पेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 222
इसमे किसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण को बताया गया है।

(1) राष्ट्रपति, इसमे अनुच्छेद 124क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर

 2किसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय  को अंतरण कर सकेगा।

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3[(2) जब कोई न्यायाधीश इस प्रकार अंतरित किया गया है या किया जाता है।  तब वह उस अवधि के दौरान जिसके दौरान वह संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 के प्रारंभ के पश्चात् दूसरे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवा करता है। वह   अपने वेतन के अतिरिक्त ऐसा प्रतिकारात्मक भत्ता, जो संसद् विधि द्वारा अवधारित करे। तथा  जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किया जाता है । तब तक ऐसा प्रतिकारात्मक भत्ता, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा नियत करे, प्राप्त करने का हकदार होगा।

अनुच्छेद 223

कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति-

जब किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति का पद रिक्त हैं या जब ऐसां मुख्य न्यायमूर्ति अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक न्यायाधीश, जिसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

अनुच्छेद 224

अपर और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे मे बताया गया है।

(1 ) यदि किसी उच्च न्यायालय के कार्य में किसी अस्थायी वृद्धि के कारण या उसमें कार्य की बकाया के कारण राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि उस न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को तत्समय बढ़ा देना चाहिए ।

तो राष्ट्रपति, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के परामर्श से, सम्यक् रूप से जो भी  अर्हित व्यक्तियों को दो वर्ष से अनधिक की ऍसी अवधि के लिए जो वह विनिर्दिष्ट करे, उस न्यायालय के अपर न्यायाधीश नियुक्त कर सकेगा।

(2) जब किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न कोई न्यायाधीश अनुपस्थिति के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है या मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में अस्थायी रूप से कार्य करने के लिए नियुक्त किया जाता है । तो राष्ट्रपति, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के परामर्श से, सम्यक् रुप से उस  अर्हित किसी व्यक्ति को तब तक के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य  करने के लिए नियुक्त कर सकेगा जब तक स्थायी न्यायाधीश अपने कर्तव्यों को फिर से नहीं संभाल लेता हैं।

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(3) उच्च न्यायालय के अपर या कार्यकारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कोई व्यक्ति बासठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात् पद धारण नहीं करेगा।
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अनुच्छेद 225
विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता को बताया गया है।

इस संविधान के उपबंधों के  अधीन रहते हुए और इस संविधान द्वारा समुचित विधान-मंडल को प्रदत्त शक्तियों के  आधार पर उसे विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी विद्यमान उच्च न्यायालय की अधिकारिता और उसमें प्रशासित विधि तथा उस  न्यायालय में न्याय प्रशासन के संबंध में उसके न्यायाधीशों की अपनी- अपनी शक्तियां, जिनके अंतर्गत न्यायालय के नियम बनाने की शक्ति तथा उस न्यायालय और उसके  सदस्यों की बैठकों का चाहे वे अकेले बैठे या खंड न्यायालयों में बैठे विनियमन करने की  शक्ति है, वही होंगी जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले थीं

परंतु राजस्व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने में आदिष्ट या किए गए किसी कार्य संबंधी विषय की बाबत उच्च न्यायालयों में से किसी की आरंभिक अधिकारिता का  प्रयोग, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले, जिस किसी निर्णय के अधीन था वह  निर्वाचन ऐसी अधिकारिता के प्रयोग को ऐसे प्रारंभ के पश्चात् लागू नहीं होगा।

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