भारतीय प्रशासन की विशेषताये क्या है?

विकास के आधार पर हम किसी देश को 2 भाग मे विभाजित कर सकते है। विकसित देश और विकासशील देश । अभी भी भारत विकसित देश बनने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है परंतु अभी विकसित देश बनने के लिए इसको और प्रयास करना पड़ेगा।प्रत्येक देश के प्रशासन की अपनी कुछ मौलिक विशेषताएँ होती है। उनही के  आधार पर उस देश के प्रशासन का संचालन किया जाता है |  औरदेश के विकास मे  प्रशासन की भूमिका अग्रणी है। और इस लिए प्रशासन की विशेषताओ को जानना अति आवश्यक है जिससे की हम समाज के प्रशासन प्रकर्ति ,सामाजिक परिवेश ,साहित्य कला , सन्सक्र्ति ,जनकल्याण और नैतिकता के बारे मे समझ सके।

 भारतीय प्रशासन की भी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार  है जिनका वर्णन निम्नलिखित आधार पर किया जा सकता है।

(1) एकिकृत प्रशासन प्रणाली:-

भारतीय शासन प्रणाली संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था के एकीकृत रूप मे कार्य करती है। तथा यह भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के स्वरूप का निर्धारण करती है | लोक प्रशासन सरकार की तीनों शाखाओं-कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका मे बाटा गया है। जिसके  अध्ययन के विषय के रूप में प्रशासन उन सरकारी प्रयत्नों के प्रत्येक पहलू की परीक्षा करता है जो कानून तथा लोकनीति को क्रियान्वित करने हेतु किए जाते हैं।

(2) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चयन प्रणाली :-

 प्रतिनिधियों के चुनाव के अनेक तरीके हो सकते हैं। और भारत में प्रशासनिक अधिकारियो के चयन का आधार (आरक्षित पदों को छोड़कर ) केवल योग्यता को ही माना गया है।  और इसके  मुल्यांकन तथा परीक्षण हेतु निश्चित पद्यति प्रणाली की व्यवस्था की गयी है | जिसमे सरकारी सेवाओ में भर्ती के लिये लिंग , जाति , धर्म और नस्ल के भेदभाव को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है |

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प्रशासनिक सेवा में निष्पक्ष चयन के लिए संविधान द्वारा ‘संघीय लोक सेवा आयोग’ तथा ‘प्रांतीय लोक सेवा आयोग’का गठन किया गया है।  जो कि  सामान्यतः सरकार आयोग के चयन को स्वीकार करती है । और विशेष परिस्थितियो में जब आयोग  इसको अस्वीकृत करती है तो इसका कारण सहित संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत करती है | राज्य के लोक सेवा आयोग के चयनों में अस्वीकृति होने की स्थिति में राज्य सरकार यह राज्य के विधान मंडल के समक्ष पेश करती है |

(3) आरक्षण व्यवस्था का प्रावधान :-

समाज मे  निर्बल एवं पिछड़े वर्ग के लोगो को प्रशासनिक सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व देने के लिये आरक्षण व्यवस्था का प्रावधान है | संविधान में यह स्पष्ट उल्लेख किया  गया है कि इन वर्गो के सदस्यों को समुचित प्रतिनिधित्व देने में यदि सरकार उनके लिए सेवाओ में आरक्षण का ऐसा कोई विशेष उपबन्ध करती है तो  उसका यह कार्य नागरिको को दी  गई अवसर की समानता की गारंटी के विपरीत नही समझा जायेगा | आज भारत की केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 27% आरक्षण दिया है ।  और विभिन्न राज्य आरक्षणों में वृद्धि के लिए क़ानून बना सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं किया जा सकता। लेकिन राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने 68% आरक्षण का प्रस्ताव रखा है, जिसमें अगड़ी जातियों के लिए 14% आरक्षण भी शामिल है।

(4) प्रशासनिक उद्देश्यों का स्पष्ट वर्णन :-

 भारतीय प्रशासन के पांच उद्देश – न्याय , समानता , बंधुत्व , राष्ट्रीय एकता , ये संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप है | विकास प्रशासन का अर्थ विकास कार्यक्रमों की व्यवस्था  करना है। विकास प्रशासन मे जन सम्पर्क और जन सहयोग का विशेष महत्त्व है।

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(5) संसदीय प्रणाली एवं उत्तरदायी कार्यपालिका का गठन :-

भारतीय प्रशासन का स्वरूप संसदीय है । और जिसमे वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्रिपरिषद् के पास होती है |तथा संसदीय प्रणाली (parliamentary system) लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका अपनी लोकतांत्रिक वैधता विधायिका के माध्यम से प्राप्त करती है और विधायिका के प्रति उत्तरदायी भी  होती है। इस प्रणाली के अनुसार  राज्य का मुखिया (राष्ट्रपति) तथा सरकार का मुखिया (प्रधानमंत्री)  होते हैं।

(6) कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र :-

भारत में कार्यपालिका और न्यायपालिका एक  स्वतंत्र संगठन के रूप मे  है | और  दोनों को अलग माना गया है तथा प्रशासनिक दुरूपयोग पर प्रभावी अंकुश रखने के लिए न्यायपालिका को प्रशासनिक कार्यो की समीक्षा एवं उन पर निर्णय देने का पूर्ण अधिकार है इसके अनुसार  संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र को अलग अलग बनाया गया है जिसमे कि  कानून बनाना विधायिका का काम है। और इसे लागू करना कार्यपालिका का और विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के संविधान सम्मत होने या न होने की जाँच करना न्यायपालिका का काम है।

(7) जनता के प्रति जवाबदेही:-

भारत में प्रशासन को जनता के प्रति जवाबदेहीमाना  गया है | यस संवैधानिक आकांक्षा के अनुकूल है | प्रत्येक प्रशासनिक विभगो के शीर्ष पर एक विभागीय मंत्री बैठा  होता है जो मंत्रिमंडल का सदस्य होने के नाते सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है | लोकतन्त्र में प्रशासन जनता के प्रति उत्तरदायी होता है । और यही संसदीय व्यवस्था में शासन अप्रत्यक्ष रूप से जनता के प्रति उत्तरदायी होता है । उसकी जवाबदेही जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के प्रति होती है ।

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(8) शक्तियों का विकेंद्रीकरण :-

समाज मे  समस्त स्तरों पर शक्तियों का विकेंद्रीकरण भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की एक अन्य प्रमुख विशेषता है जो संविधान में घोषित लोकतान्त्रिक स्वरूपों को प्रदर्शित करता है।  विकेन्द्रीकरण  कार्यों, शक्तियों, लोगों को या चीजों को केंद्रीय स्थान या प्राधिकारी से हटाकर पुनः विभाजित करने की प्रक्रिया को कहते हैं। विकेन्द्रीकरण का अर्थ अलग अलग क्षेत्र मे अलग अलग होता है। तथा  इसको लागू करने के तरीकों के अनुसार यह  भिन्न हो सकता है।

(9) प्रशासनिक निष्पक्षता पर बल :-

भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषता मे से एक  प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियो की निष्पक्षता भी  है | जिसमे  प्रशासनतंत्र सरकार की नीतियों को बिना किसी दलील के बिना निष्ठा पूर्वक क्रियान्वित करता है | तथा प्रशासन की राजनीतिक निष्पक्षता भारत की संवैधानिक व्यवस्था द्वारा ही निर्धारित की गयी है।समस्त विश्व मे यह सर्व स्वीकृत तथ्य  है कि आर्थिक और सामाजिक दोनों के स्थायी विकास के लिए सुशासन अनिवार्य है ।और  सुशासन में तीन अनिवार्य पहलुओं पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रशासन की प्रतिक्रियाशीलता पर बल दिया गया है । और यही एक विकासशील देश का प्रशासनिक प्रगति का कारण है। 

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