जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 116 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 117
इस धारा के अनुसार प्रतिभूति देने के आदेश को बताया गया है।
जिसके अनुसार यदि किसी जांच से यह साबित हो जाता है कि यथास्थिति परिशांति कायम रखने के लिए या सदाचार बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति जिसके बारे में वह जांच की गई है। उसकी प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र को निष्पादित किया जाये यह आदेश मजिस्ट्रेट के द्वारा दिया जा सकता है।
परंतु-
यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार से भिन्न प्रकार की या उस रकम से अधिक रकम की या उस अवधि से दीर्घतर अवधि के लिए प्रतिभूति देने के लिए आदिष्ट न किया जाए जो कि धारा 111 के अधीन दिए गए आदेश में शामिल किया गया है।
ऐसे प्रत्येक बंधपत्र की रकम मामले की परिस्थितियों का उस अनुसार ध्यान रख कर नियत की जाएगी जो कि अत्यधिक न होगी।
जब वह व्यक्ति जिसके बारे में जांच की जा रही है। वह अवयस्क है। तब बंधपत्र केवल उसके प्रतिभुओं द्वारा निष्पादित किया जाएगा।
धारा 118
इस धारा के अनुसार उस व्यक्ति का उन्मोचन की बात की गयी है। जिसके विरुद्ध इत्तिला दी गई है।
यदि 116 की जांच पर यह साबित नहीं होता है कि यथास्थिति परिशांति कायम रखने के लिए या सदाचार बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति जिसके बारे में जांच की गई है उसको बंधपत्र निष्पादित करे तो मजिस्ट्रेट उस अभिलेख में उस भाव की प्रविष्टि करें और यदि ऐसा व्यक्ति केवल उस जांच के प्रयोजनों के लिए ही अभिरक्षा में है । तो उस व्यक्ति को छोड़ देगा अथवा यदि ऐसा व्यक्ति अभिरक्षा में नहीं है । तो उसे उन्मोचित कर देगा
धारा 119
इस धारा के अनुसार उस अवधि को बताया गया है जिस अवधि के लिए प्रतिभूति अपेक्षा की गई है। और इसमे उसका प्रारंभ भी बताया गया है।
इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जिसके बारे में प्रतिभूति की अपेक्षा करने वाला आदेश जो कि धारा 106 या धारा 117 के अधीन दिया गया है। और यह आदेश दिए जाने के समय कारावास के लिए दंड दिष्ट है या दंडादेश भुगत रहा है । तो वह अवधि जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति कि आवश्यकता है तो ऐसे दंडादेश के अवसान पर प्रारंभ होगी।
किसी अन्य दशाओं में ऐसी अवधि या फिर ऐसे आदेश की तारीख से प्रारंभ होगी जब तक कि मजिस्ट्रेट पर्याप्त कारण से कोई बाद की तारीख नियत न करे।
धारा 120
इस धारा मे बन्ध पत्र के अंतर्वस्तु को बताया गया है। जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के द्वारा निष्पादित किया जाने वाला बंधपत्र उसको उसी स्थिति मे परिशांति कायम रखने के लिए या सदाचार बनाए रखने के लिए आबद्ध करेगा परंतु यदि बाद मे वह किसी भी दशा मे कारावास से दंडनीय कोई अपराध करता है तो वह बन्ध पत्र को भंग किया हुआ माना जाएगा।
धारा 121
इस धारा मे यह बताया गया है कि प्रतिभुओं को अस्वीकार करने की शक्ति का उपयोग किस प्रकार से किया जाएगा।
इस धारा के अनुसार मजिस्ट्रेट किसे पेश किए गए प्रतिभूति को स्वीकार करने से इनकार कर सकता है। या फिर अपने द्वारा या फिर अपने पूर्ववर्ती द्वारा जो कि इस अध्याय के अधीन पहले स्वीकार किए गए किसी प्रतिभूति को इस आधार पर अस्वीकार कर सकता है। कि ऐसा प्रतिभू बंधपत्र के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है ।
परंतु यदि किसी ऐसे प्रतिभूति को इस प्रकार स्वीकार करने से इनकार करने या उसे स्वीकार करने के पहले वह प्रतिभूति की उपयुक्तता के बारे में या तो स्वयं शपथ पर जांच करेगा या अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेट से ऐसी जांच और उसके बारे में रिपोर्ट करने का आदेश देगा।
मजिस्ट्रेट इसमे जांच करने के पहले प्रतिभूति को और ऐसे व्यक्ति को जिसने वह प्रतिभूति पेश किया है उसको उचित सूचना देगा और जांच करने में अपने सामने दिए गए साक्ष्य के सार को अभिलिखित भी करेगा।
मजिस्ट्रेट को अपने समक्ष या उपधारा (1) के अधीन प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे दिए गए साक्ष्य पर और मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर (यदि कोई हो)तो उस पर विचार करने के पश्चात् समाधान किया जाता है कि वह प्रतिभूति बंधपत्र के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है । तो ऐसे दशा मे वह उस प्रतिभूति को, यथास्थिति स्वीकार करने से इनकार करने का या उसे अस्वीकार करने का आदेश करेगा और ऐसा करने के लिए अपने कारण भी अभिलिखित करेगा ।
परंतु किसी प्रतिभूति को जो पहले स्वीकार किया जा चुका है। और अब अस्वीकार करने का आदेश देने के पहले मजिस्ट्रेट अपना समन या वारंट जिसे वह ठीक समझे उसको जारी करेगा और उस व्यक्ति को, जिसके लिए प्रति भू आबद्ध है उसको अपने समक्ष हाजिर करेगा या बुलवाएगा।
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