न्याय प्रणाली पर सोशल मीडिया का व्यापक प्रभाव
सोशल मीडिया आज के समय में इंटरनेट का एक अभिन्न अंग है जो की दुनिया में एक अब से अधिक लोगों के द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है जहां पर यह एक ऑनलाइन मंच प्रदान करता है वहीं पर उपयोगकर्ता को यह एक सार्वजनिक प्रोफाइल और सार्वजनिक रूप से वेबसाइट बनाने तथा लोगों के साथ सहभागिता करने की अनुमति भी देता है।
सोशल नेटवर्किंग का उपयोग अपने विचारों को साझा करने तथा पहचान के लोगों तथा अजनबी से बात करने के लिए भी किया जा रहा है उदाहरण के लिए अगर हम बात करें तो जैसा की फेसबुक ट्विटर आदि प्रक्रिया में वेबसाइट पर उपलब्ध उपयोगकर्ता की निजी सूचनाओं भी सजा हो जाती हैं यह प्रक्रिया सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित होती है जहां पर प्रकार से इसमें सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है और इस तरीके लल जहां जहां विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है वही पर तकनीकी निर्भरता नहीं समझ नेटवर्किंग स्थल को खतरों के प्रति सुभेद किया जाता है।
सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव
सोशल मीडिया दुनिया से जुड़ने का एक माध्यम बन गया है वहीं पर यह बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है जिसने की विश्व में संचार को एक नया आयाम प्रदान किया है।
सोशल मीडिया जहां पर एक आवाज बन गया है उन लोगों की जो की सामाजिक लोगों से थोड़ा सा अलग है और जिनकी आवाज को दबा दिया जाता है।
आज के समय में सोशल मीडिया कई व्यवसाईयों के लिए व्यवसाय का एक अच्छा साधन तो कई व्यक्तियों के लिए यह नौकरी का एक रूप है।
सोशल मीडिया के साथ ही साथ कई प्रकार के रोजगार उपलब्ध हुए हैं।
का उपयोग आज क्लास नागरिकों के बीच में जागरुकता फैलाने के लिए भी हो रही है।
इसके अलावा कुछ अन्य बातें भी हैं जो कि सोशल मीडिया पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
कम्युनिटी से जुड़ना
सोशल मीडिया जहां पर एक और वकीलों और जजों को एक दूसरे से जुड़े रहने में सक्षम बनाता है वहीं पर यह सामाजिक गतिशीलता और समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों को बेहतर समझ के लिए भी जिम्मेदार बनाता है।
कानूनी जागरूकता फैलाना
यह कानूनी जागरुकता के लिए शक्तिशाली करके रूप में कार्य कर रहा है जिसे कि कानूनी जानकारी आम जनता के लिए अधिक सुलभ हो सकती है।
सूचना तक न्याय संगत पहुंच
सोशल मीडिया भौगोलिक सुदूरता के बावजूद सूचना तक सुविधाजनक और न्याय संगत पहुंच सुनिश्चित करता है।
ई सुनवाई और लाइव स्ट्रीमिंग
सोशल मीडिया ने ई सुनवाई और अदालती कार्यवाही को लाइव स्ट्रीमिंग की शुरुआत की है जिससे कि देश में लोगों तक पारदर्शिता और पहुंच को बढ़ावा मिल पाएगा।
सोशल मीडिया का दुरुपयोग
जहां पर बात की जाए सोशल मीडिया पर ज्यादातर वह सामग्री है जो धार्मिक भावनाओं एवं राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान का निषेध करने वाले कानून का उल्लंघन कर रही थी इस अल्प अवधि में बड़ी संख्या में आपत्तिजनक सामग्री का पाया जाना यह दर्शाता है की सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी हो रहा है।
जहां पर यह एक और लोगों में जागरूकता फैलाने का काम कर रहा है वहीं पर दूसरी ओर यह ऐतिहासिक तथ्यों को भी तोड़ मनोर करके जनता को पेश कर रहा है यह केवल ऐतिहासिक घटनाओं को अलग रूप नहीं दे रहा है बल्कि आजादी के सूत्रधार रहे नेताओं के बारे में भी गलत जानकारी साझा कर रहा है।
अगर हम बात करें विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचनाओं का प्रचार प्रसार बहुत तेजी से उभर रहा है यकीन यह केवल देश की प्रगति में रुकावट है बल्कि यह आवश्यक है कि अगर इसका ध्यान ना रखा गया तो यह भविष्य में एक खतरनाक परिणाम भी सामने आ सकता है इसको पूरी तरीके से रोकने का प्रयास करना चाहिए।
सोशल मीडिया ने समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ने का अवसर प्रदान किया है आंकड़ों की बात करें तो वर्तमान में भारत में तकरीबन ३५० मिलियन सोशल मीडिया यूजर है २०१९ के सर्वे के अनुसार भारतीय उपयोगकर्ता औसत २.4 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं।
सोशल मीडिया अपने आलोचना के कारण भी चर्चा में हमेशा बना रहता है मीडिया भूमिकासोशल मीडिया अपने आलोचना के कारण भी चर्चा में हमेशा बना रहता है मीडिया की भूमिका जहां एक और सामाजिक समरसता को बिगड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने के लिए हो रही है।
भारत में नीति निर्माता के समक्ष सोशल मीडिया के दुरुपयोग को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती बन गई है और लोगों के द्वारा इस और गंभीरता से विचार भी किया जा रहा है।
सोशल मीडिया पर ट्रायल कानूनी पैसे और कम्युनिटी मेंबर के मन में नकारात्मक और पूर्वाग्रहित आख्यान पैदा कर सकता है जो कि अक्सर आया फिर अधूरी या गलत जानकारी पर आधारित होती है।
कानूनी पदाधिकारी को तथ्यों की सीमित जानकारी वाले व्यक्तियों से अत्यधिक रोलिंग और आलोचना का सामना करना पड़ सकता है इससे समाज में एक अनुचित सार्वजनिक राय बन सकती है।
अनजाने में सोशल मीडिया का प्रभाव न्यायाधीश की निर्णय लेने की प्रक्रिया में पूर्वाग्रह ला सकता है क्योंकि वह सार्वजनिक भावनाओं के साथ जुड़ने के लिए एक दबाव भी महसूस कर सकते हैं। अगर हम उदाहरण की बात करें तो ज्ञान व्यापी मस्जिद मामले में सोशल मीडिया ने इस मामले को लेकर के सांप्रदायिक समस्या पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी अलग-अलग घटकों ने अलग-अलग व्याख्या की थी जिससे कि न्यायाधीश को धमकियों और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इसका दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम है।
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