जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 57 तक का अध्ययन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 58
इस धारा के अनुसार स्वीकृत तथ्यों को साबित करना आवश्यक नहीं है। यह बताया गया है।
इस धारा के अनुसार किसी भी ऐसे तथ्य को जिसकी किसी कार्यवाही में साबित करना आवश्यक नहीं है। जिसे उस कार्यवाही के पक्षकार या फिर उनके अभिकर्ता सुनवाई पर स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाते हैं। या फिर जिसे वे सुनवाई के पूर्व किसी स्वहस्ताक्षरित लेख द्वारा स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाते हैं। या जिसके बारे में अभिवचन संबंधी किसी तत्समय प्रवृत्त नियम के अधीन यह समझ लिया जाता है कि उन्होंने उसे अपने अभिवचनों द्वारा स्वीकार कर लिया है ।
परन्तु इस धारा के अनुसार न्यायालय स्वीकृत तथ्यों का ऐसी स्वीकृतियों के द्वारा साबित किए जाने से अन्यथा साबित किया जाना अपने विवेकानुसार अपेक्षित कर सकेगा।
धारा 59
इस धारा के अनुसार मौखिक साक्ष्य द्वारा तथ्यों का साबित किया जाना बताया गया है । इस धारा के अनुसारर दस्तावेजों या इलेक्ट्रानिक अभिलेखों की अन्तर्वस्तु के सिवाय सभी तथ्य मौखिक साक्ष्य द्वारा साबित किए जा सकते है।
धारा 60
इस धारा के अनुसार मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष होना चाहिए यह बताया गया है । इसके अनुसार मौखिक साक्ष्य जो की समस्त अवस्थाओं में चाहे वे कैसी ही हो प्रत्यक्ष ही होता है। हम कह सकते है की यदि वह किसी देख जा सकने वाले तथ्य के बारे में है तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसे देखाहै। और यदि वह किसी सुने ना सकने वाले तथ्य के बारे में कहा गया है । तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने सुनाहै।
यदि वह किसी ऐसे तथ्य के बारे में है जिसका किसी अन्य इन्द्रिय द्वारा या किसी अन्य रीति से बोध हो सकता है । तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसका बोध इस इन्द्रिय द्वारा या उस रीति से उसका बोध किया है। यदि वह किसी राय के या उन आधारों के, जिन पर राय धारित है। तो इसके बारे में है।तो उस दशा मे वह उस व्यक्ति का ही साक्ष्य होगा जो वह राय उन आधारों पर धारण करता है।
परन्तु विशेषज्ञों की रायें जो सामान्यतः विक्रय के लिए प्रस्थापित की जाने वाली किसी पुस्तक में अभिव्यक्त है। और वे आधार जिन पर ऐसी रायें धारित करती है की यदि रचयिता मर गया है या वह तिमल नहीं सकात है। या वह साक्ष्य देने के लिए असमर्थ हो गया है या उसे इपने विलम्ब या व्यय के बिना जितना न्यायालय अयुक्तियुक्त समझता है। तो साक्षी के रूप में बुलाया नहीं जा सकता है। तो ऐसी पुस्तकों को पेश करके साबित किए जा सकेंगे। परन्तु यह भी कि यदि मौखिक साक्ष्य दस्तावेज से भिन्न किसी भौतिक चीज के अस्तित्व या दशा के बारे में है। तो न्यायालय जैसे ठीक समझे ऐसी भौतिक चीज का अपने निरीक्षणार्थ पेश किया जाना अपेक्षित कर सकेगा।
धारा 61
इस धारा के अनुसार दस्तावेजों की अन्र्तवस्तु का सबूत के बारे मे बताया गया है। इसके अनुसार दस्तावेजों की अन्पर्वस्तु या तो प्राथमिक या द्वितीयक साक्ष्य द्वारा साबित जा सकेगी।
धारा 62
इस धारा के अनुसार प्राथमिक साक्ष्य के बारे मे बताया गया है। इस धारा के अनुसार प्राथमिक साक्ष्य के न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई दस्तावेज स्वष्ं अभिप्रेत है। यह बताया गया है।
स्पष्टीकरण 1 – जहां पर कोई दस्तावेज कई मूल प्रतियों में निष्पादित है। वहां हर एक मूल प्रति उस दस्तावेज का प्राथमिक साक्ष्य माना जाता है।जहां कि कोई दस्तावेज प्रतिलेख में निष्पादित है । और हर एक प्रतिलेख पक्षकारों में से केवल एक पक्षकार या कुछ पक्षकारों द्वारा निष्पादित किया गया है। तो वहां हर एक प्रतिलेख उन पक्षकारों के विरुद्धजिस पर जिन्होंने उसका निष्पादन किया है तो वह प्रथमिका साक्ष्य है।
स्पष्टीकरण 2 – जहां कि अनेक दस्तावेजें एकरूपात्मक प्रक्रिया द्वारा बनाई गई हैं। उनमे से कुछ जैसा कि मुद्रण, शिलामुद्रण या फोटो-चित्रण में होता है। तो वहां उनमें से हर एक शेष सब कि अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य होता है। किन्तु जहां कि वे सब किसी सामसन्य मुल की प्रतियां है । तो वहां वे मुल की अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य नहीं है।
उदाहरण –
यह बताया जाता है कि एक ही समय एक ही मूल से मुद्रित अनेक प्लेकार्ड किसी व्यक्ति के कब्जे में रखे हैं। इन प्लेकार्डों में से कोई भी एक अन्य किसी की भी अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है , किन्तु उनमें से कोई भी मूल की अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य नहीं है।
धारा 63
इस धारा के अनुसार द्वितीयक साक्ष्य को बताया गया है। इस धारा के अनुसार द्वितीयक साक्ष्य से अभिप्रेत यह है की और उसके अन्तर्गत निम्न आते हैं-
(1) एतस्मिन्प्श्चात अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन दी हुई प्रमाणित प्रतियां
(2) मूल से ऐसी यान्त्रिक प्रक्रियाओं के अनुसार जो प्रक्रियाएं स्वयं ही प्रति का शुद्धता सुनिश्चित करती हैं। या फिर बनाई गई प्रतियां तथा ऐसी प्रतियों से तुलना की हुई प्रतिलिपिया।
(3) मूल से बनाई गई या तुलना की गई प्रतियां।
(4) उन पक्षकारों के विरुद्ध जिन्होंने उन्हें निष्पादित नहीं किया है। उन से संबन्धित दस्तावेनों के प्रतिलेख।
(5) किसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु का उस व्यक्ति द्वारा, जिसने खुद से उसे देखा है, दिया हुआ मौखिक वृत्तान्त।
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