भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 64 से 67 तक का अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा  63 तक का अध्ययन  किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है।  तो यह आप के लिए लाभकारी होगा ।  यदि आपने यह धाराएं  नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।

धारा 64

इस धारा के अनुसार  इसमे दस्तावेजों का प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना बताया गया है। दस्तावेजो  के द्वारा एतस्मिन् पश्चात् वर्णित अवस्थाओं के सिवाय प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित करनी होंगी।

धारा 65

इस धारा के अनुसार अंतर्गत उन आकस्मिकताओं का उल्लेख मिलता है।  जहाँ  पर द्वितीयक साक्ष्य दिए जाने की अनुमति दी गयी है।इसके अंतर्गत उन अवस्थाओं/परिस्थितियों का वर्णन  मिलता है।  जिनके अंतर्गत जब भी कोई मामला इस प्रकार आए तो वहां द्वितीयक साक्ष्य दिया जा सकता है।

उदाहरण —

जब कोई  मूल दस्तावेज उस व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में है।  जिसके खिलाफ उसे साबित करने की मांग की जाती है । या यह कि मूल, उसके अस्तित्व, स्थिति या विषय-वस्तु को उस व्यक्ति द्वारा स्वीकार कर लिया गया है।  जिसके खिलाफ वह दस्तावेज साबित होने की मांग करता है । या वह मूल खो गया है या नष्ट हो गया है या जब मूल जंगम नहीं है आदि।तब द्वितीयक साक्ष दिया जाता है।

वह अवस्थाएँ जिनमें दस्तावेजों के संबंध में द्वितीयिक साक्ष्य दिया जा सकेगा वह  किसी दस्तावेज के अस्तित्व, दशा या अंतर्वस्तु का द्वितीयिक साक्ष्य के अनुसार निम्नलिखित अवस्थाओं में दिया जा सकेगा-

(क) जबकि यह दर्शित कर दिया जाए या फिर ऐसा प्रतीत होता हो कि मूल ऐसे व्यक्ति के कब्जे में या शक्त्यधीन हैं।  जिसके विरुद्ध उस दस्तावेज का साबित किया जाना है।  अथवा जो न्यायालय कि आदेशिका की पहुँच के बाहर हैं।  या उसे ऐसी आदेशिका के अध्यधीन नहीं हैं जो उसे पेश करने के लिए वैध रूप से न्यायालय के द्वारा आबद्ध है।  अथवा  जबकि ऐसा व्यक्ति धारा 66 में वर्णित सूचना के पश्चात उसे पेश नहीं करता हैं ।

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(ख) जब कि मूल के अस्तित्व,उस  दशा या अंतर्वस्तु को उस व्यक्ति के द्वारा जिसके विरुद्ध उसे साबित किया जाना है । या उसके हित प्रतिनिधि द्वारा लिखित रूप में स्वीकृत किया जाना साबित कर दिया हैं।

 (ग) जब कि मूल नष्ट हो गया है। या फिर खो गया है।  अथवा जबकि उसकी अंतर्वस्तु का साक्ष्य देने की प्रस्थापना करने वाला पक्षकार अपने स्वयं के व्यतिक्रम या उपेक्षा अनुद्रभुत अन्य किसी अन्य कारण से उसे युक्तियुक्त समय में पेश नहीं कर सकता।

 (घ) जबकि मूल इस प्रकृति का है कि उसे आसानी से स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

 (ङ) जब कि मूल धारा 74 के अर्थ के अंतर्गत एक लोक दस्तावेज है।

 (च) जब कि मूल ऐसा दस्तावेज़ है। जिस  कि जिसकी प्रमाणित प्रति का साक्ष्य में दिया जाना इस अधिनियम द्वारा या भारत में प्रवृत किसी अन्य विधि द्वारा अनुज्ञात है।

 (छ) जब कि मूल ऐसे अनेक लेखाओ या अन्य दस्तावेजो से गठित है।  जिनकी न्यायालय में सुविधापूर्वक परीक्षा नहीं की जा सकती और वह तथ्य जिसे साबित किया जाना है तथा यह  संपूर्ण संग्रह का साधारण परिणाम है|

अवस्थाओं (क), (ग) और (घ) में दस्तावेजों की अंतर्वस्तु का कोई भी द्वितीयिक साक्ष्य ग्राहा है, अवस्था (ख) में यह लिखित स्वीकृति ग्राहा हैं, अवस्था (ड) या (च) में दस्तावेज की प्रमाणित प्रति ग्राहा हैं, किन्तु अन्य किसी भी प्रकार का द्वितीयिक साक्ष्य ग्राहा नहीं माना गया है।  अवस्था (छ) में दस्तावेजों के साधारण परिणाम का साक्ष्य किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया जा सकेगा जिसने उनकी परीक्षा की है और जो ऐसे दस्तावेजों की परीक्षा करने में कुशल है|

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धारा 66

इस धारा के अनुसार धारा 65के  खण्ड (क) में निर्दिष्ट दस्तावेजों की जो की  अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य तब तक न दिया जा सकेगा जब तक ऐसे द्वितीयक साक्ष्य देने की प्रस्थापना करने वाले पक्षकार ने उस पक्षकार को जिसके कब्जे में या शक्त्यधीन वह दस्तावेज है या उसके अटर्नी या प्लीडर को उस मामले मे उसे पेश करने के लिए ऐसी सूचना जैसी कि विधि द्वारा विहित है । और यदि विधि द्वारा कोई सूचना विहित नहीं हो तो ऐसी सूचना, जैसी न्यायालय मामले की परिस्थितियों के अधीन युक्तियुक्त समझता है।  जब तक न दे दी गयी हो।

(1) जबकि साबित की जाने वाली दस्तावेज स्वयं एक सूचना है।

(2) जबकि प्रतिपक्षी को मामले की प्रकृति से यह जानना ही होगा कि उसे पेश करने की उससे अपेक्षा की जाएगी।

(3) जबकि यह प्रतीत होता है या साबित किया जाता है कि प्रतिपक्षी ने मूल पर कब्जा कपट या बल द्वारा अभिप्राप्त कर लिया है।

(4) जबकि मूल प्रतिपक्षी या उसके अभिकर्ता के पास न्यायालय में है।

(5) जबकि प्रतिपक्षी या उसके अभिकर्ता ने उसका खो जाना स्वीकार कर दिया है।

(6) जबकि दस्तावेज पर कब्जा रखने वाला व्यक्ति न्यायालय की आदेशिका की पहुँच के बाहर है।  या फिर  ऐसी आदेशिका के अध्यधीन नहीं है।

धारा 67

इस धारा के अनुसार जिस व्यक्ति के बारे में अभिकथित है । कि उसने पेश की गई दस्तावेज को हस्ताक्षरित किया था । या फिर उसको लिखा था। तो  उस व्यक्ति के हस्ताक्षर और हस्तलेख का साबित किया जाना बताया गया है। इसके अनुसार  यदि कोई दस्तावेज किसी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित या पूर्णतः या भागतः लिखी गई अभिकथित है।  तो ऐसे दशा मे  यह साबित करना होगा कि वह हस्ताक्षर या उस दस्तावेज के उतने का हस्तलेख जितने के बारे में यह अभिकथित है कि वह उस व्यक्ति के हस्तलेख उसमे है। या फिर  उसके हस्तलेख में है।

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