जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 35 तक का अध्ययन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 36 –
इस धारा के अनुसार मानचित्रों तथा चार्टों और रेखांकों के कथनों की सुसंगति को बताया गया है जिसके अनुसार विवाद्यक तथ्यों या सुसंगत तथ्यों के ऐसे कथन जो प्रकाशित मानचित्रों तथा चार्टों में जो लोक विक्रय के लिए साधारणतः प्रस्थापित किए जाते हैं । अथवा केन्द्रीय सरकार या फिर किसी राज्य-सरकार के
द्वारा प्राधिकार के अधीन बनाए गए मानचित्रों या रेखांकों में किए गए हैं। ऐसे विषयों के बारे में जो ऐसे मानचित्रोंतथा चार्टों और रेखांकों में प्रायः रूपित या कथित होते हैं। ऐसे तथ्य सुसंगत तथ्य होते हैं।
धारा 37 –
इस धारा के अनुसार कोई ऐसा अधिनियमों या अधिसूचनाओं में अन्तर्विष्ट लोकप्रकृति के तथ्य के बारे में कथन की सुसंगति को बताया गया है। इसके अनुसार न्यायालय को किसी लोकप्रकृति के तथ्य के अस्तित्व के बारे में राय जाननी है तब यूनाइटेड किंगडम की पार्लियामेन्ट के ऐक्ट में किसी केन्द्रीय अधिनियम, प्रान्तीय अधिनियम या फिर राज्य अधिनियम में या फिर शासकीय राजपत्र में प्रकाशित किसी सरकारी अधिसूचना या क्राउन रिप्रेजेन्टेटिव द्वारा दी गई अधिसूचना में या फिर लन्दन गजट या हिज नैजेस्टी के किसी डामिनियन, उपनिवेशन या कब्जाधीन क्षेत्र का सरकारी राजपत्र तात्पर्यित होने वाले किसी मुद्रित पत्र में अन्पर्विष्ट परिवर्णन में जो किया गया वह सुसंगत तथ्य होता है।
धारा 38 –
इस धारा के अनुसार विधि की पुस्ताकों में अन्तर्विष्ट किसी विधि के कथनों की सुसंगति को बताया गया है । इसके अनुसार जब किसी न्यायालय को किसी दोष की विधि के बारे में राय रखनी है। तब ऐसी विधि का कोई भी कथन जो कथन ऐसी किसी पुस्तक में अन्तर्विष्ट है । या फॉर जो ऐसे देश की सरकार के प्राधिकार के अधीन मुद्रित या प्रकाशित और ऐसी किसी विधि को अन्तर्विष्ट करने वाली तात्पर्यित है। और ऐसे देश के न्यायालयों के किसी विनिर्णय की कोई रिपोर्ट आदि है । जो ऐसी व्यवस्थाओं की रिपोर्ट से तात्पर्यित होना वाली किसी पुस्तक में अन्तर्विष्ट हैतो वह सुसंगत है।
धारा 39-
इस धारा के अनुसार जबकोई कथन किसी बातचीतसे संबन्धित या फिर दस्तावेज से संबन्धित या इलेक्ट्रानिक अभिलेख, पुस्तक अथवा पत्रों या कागज-पत्रों की आवली का भाग हो तब ऐसे स्थित मे क्या साक्ष्य दिया जाए यह बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जब कोई कथनऐसा होता है । जिसका साक्ष्य दिया जाता है। तो वह किसी बृहत्तर कथन का बातचीत का भाग है या किसी एकल दस्तावेज का भाग है। या फिर किसी ऐसी दस्तावेज में अन्तर्विष्ट है। जो किसी पुस्तक का अथवा पत्रों या कागज-पत्रों की संसक्त आवली का भाग है। या इलैक्ट्राॅनिक अभिलेख के भाग में अंतर्विष्ट है। तब उस कथन के अनुसार बातचीत, दस्तावेज, इलेक्ट्रानिक अभिलेख, पुस्तक अथवा पत्रों या कागज-पत्रों की आवली के उतने का ही न कि उतने से अधिक काजो साक्ष्य दिया जाएगाउस अनुसार जितना न्यायालय उस की प्रकृति और प्रभाव को तथा उन परिस्थितियों को जिनके अधीन वह किया गया था उसको न्याय्यलय पूर्णतः समझने के लिए उस विशिष्ट मामले में आवष्यक विचार करता है।
धारा 40 –
इस धारा के अनुसार द्वितीय वाद या विचारण के वारणार्थ पूर्व निर्णय सुसंगत हैं बताया गया है।
इस धारा के अनुसार किसी ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री का अस्तित्व जो किसी न्यायालय को किसी वाद के संज्ञान से या कोई विचारण करने से विधि द्वारा निवारित करता है। तो वह सुसंगत तथ्य है । जब उस स्थित मे जब प्रश्न यह किया गया हो की ऐसे न्यायालय को ऐसे वाद का संज्ञान या ऐसा विचारण करना चाहिए।
धारा 41 –
इस धारा के अनुसार प्रोबेट इत्यादि विषय से संबन्धित अधिकारिता के किन्हीं निर्णयों की सुसंगति को बताया गया है।
इसके अनुसार किसी सक्षम न्यायालय के प्रोबेट-विषयक या फिर विवाहविषयकया नावधिकरण-विषयक या दिवाला-विषयक आदि से संबन्धित अधिकारिता के प्रयोग में दिया हुआ अन्तिम निर्णय, आदेश और डिक्री जो किसी व्यक्ति को या फिर कोई विधिक हैसियत प्रदान करती है या ले लेती है।
या जो सर्वतः न कि किसी विनिर्दिष्ट व्यक्ति के विरुद्ध किसी व्यक्ति को ऐसी किसी हैसियत का हकदार या किसी विनिर्दिष्ट चीज का हकदार घोषित करती है। तब वह सुसंगत होती हैं।
जब कि किसी ऐसी विधिक हैसियत या किसी ऐसी चीज पर किसी ऐसे व्यक्ति के हक का अस्तित्व सुसंगत है। ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री इस बात का निश्चायक सबूत है कि कोई विधिक हैसियत जो वह प्रदत्त करती है। उस समय प्रोद्भूत हुई जब ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री परिवर्तन में आयी होती है। कि कोई विधिक हैसियत के अनुसार जिसके लिए वह किसी व्यक्ति को हकदार घोषित करती है। तो उस व्यक्ति को उस समय प्रोद्भूत हुई जो समय ऐसे निर्णय या आदेश या डिक्री के द्वारा घोषित किया गया है कि उस समय यह उस व्यक्ति को प्रोद्भूत हुईहो या फिर कोई विधिक हैसियत जिसे वह किसी ऐसे व्यक्ति से ले लेती है। उस समय खत्म हुई जो समय ऐसे निर्णय या आदेश या डिक्री के द्वारा घोषित है कि उस समय से वह हैसियत खत्म हो गई थी । या खत्म हो जानी चाहिए।
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