विधि शास्त्र के अनुसार दायित्व और कर्तव्य क्या होता है? कर्तव्य के प्रकार कौन कौन से है?

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे विधिशास्त्र संबन्धित कई पोस्ट का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की पोस्ट समझने मे आसानी होगी।

यहा पर दायित्व का सीधा सम्बन्ध किसी व्यक्ति द्वारा किये गए अपकार अथवा विधि के उल्लंघन से है। यहाँ परविधि शास्त्र दायित्व को एक प्रकार का ‘न्याय बंधन ‘ मानता है।इसके अनुसार जब कभी मनुष्य किसी विधिक कर्तव्य का पालन करने में असमर्थ सिद्ध होता है तब उसके दायित्व की उत्पत्ति होती है।  सामंड ने दायित्व को इस प्रकार बताया है कि yah एक ऐसा बंधन है जो अपकृत्य करने वाले तथा उसके द्वारा किये गए अपकार के उपचार के बीच मे उपस्थित होता है।

दायित्व को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया गया है। 

सिविल दायित्व –

इसयह दायित्व मे दीवानी मामलो की कार्यवाही होती है। जिसमे प्रतिवादी के विरुद्ध कार्यवाही करते हुए वादी के जिस अधिकार का उल्लंघन हुआ है। उस अधिकार का प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाता है।

आपराधिक दायित्व-

इस आपराधिक मामलो मे इसकेअंतर्गत किये गए अपराध के लिए अपराधी को दण्डित करने से सम्बंधित कार्यवाही की जाती है।और यहआपराधिक दायित्व कहलाती है।

उपचारात्मक दायित्व-

जब कभी किसी कानून का निर्माण होता है। तो उसके साथ कुछ कर्तव्यों का भी निर्माण होता है। इसके साथ ही कर्तव्यों का उसी प्रकार से पालन न होने की दशा में क्षतिपूर्ति का प्रावधान भी उस कानून के अंतर्गत किया जाता है।

उपचारित दायित्व की वजह से ही अपकारी कानून जो कि (गलत कृत्य करने वाला) कानून के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के किये बाध्य होता है। उपचारित दायित्व के अंतर्गत राज्य अपनी प्रभुत शक्ति का इस्तेमाल करके कानून का विनिर्दिष्ट प्रवर्तन करने में सक्षम होता है।

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कर्तव्य –

हम यह कह सकते है की अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक होते है। जहा पर अधिकार होता है वहा पर कर्तव्य भी होता है। अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से इस प्रकार जुड़े हुए होते है की एक दूसरे के बिना इसकी कल्पना नही की जा सकती है। कोई व्यक्ति अपने हित के लिए अपनी इच्छा के अनुसार कई कार्य करता है। और कुछ कार्य नहीं भी करता है। वह अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करना या न करने को कर्तव्य नहीं कहा जा सकता है। कर्तव्यों का अर्थ उन कार्य से है जो व्यक्ति अपने हित के लिए न करके किसी और के लिए निश्चित नैतिक सिद्धांतों और कानूनों के आधार पर करता है।

समाज के नैतिक सिद्धांत और राज्य के कानून व्यक्ति के लिए कुछकार्य करने के लिए या फिर न करने के लिए निश्चित करते हैं। इन निश्चित कार्यों के अनुपालन को कर्तव्य कहा जाता है । यह कहा जा सकता है की कि कुछ कार्यों का अनुपालन व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर नहीं होती। लेकिन व्यक्ति को इन कार्यों का पालन करना आवश्यक होता है।

सामंड ने कर्तव्य को इस प्रकार बताया है कि –

यह एक ऐसा बन्धनकारी कार्य होता है। जिसका विरोधी शब्द ‘अपकार’ है। जो की दूसरे शब्दों में कर्तव्य-भंग होने पर अपकार उत्पन्न होता है।

पैटन के अनुसार –

इस शब्द से वह बोध होता है कि व्यक्ति किसी कार्य को अपनी इच्छा, अनिच्छा या केवल बाह्य दबाव के कारण नहीं करता है अपितु आंतरिक नैतिक प्ररेणा के ही कारण करता है।

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रोमन दार्शनिक के एपिक्टेटस (Epictetus) के अनुसार-

यह सभी नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने हितों को दूसरों के हितों से बिल्कुल अलग न समझे।

अगर हम कर्तव्य को बाटते है तो निम्न प्रकार से बाटेंगे ।
नैतिक कर्तव्य
कानूनी कर्तव्य

नैतिक कर्तव्य

नैतिक कर्तव्यों से मतलब उन कर्तव्यों से है । जिनके पीछे कोई कानूनी शक्ति नहीं होती।यह बाध्यकारी नही होते है। वह कर्तव्य जिनकी अगर हम उल्लंघन करते है तो ऐसा करने से राज्य के किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होती और जिनकी पालन कराने के लिए बाध्य नही कर सकता है। वह नैतिक कर्तव्य होते हैं।
उदाहरण- प्रत्येक युवा का कर्तव्य है कि वह अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करे और यह स्वैच्छिक होता है।

कानूनी कर्तव्य

कानूनी कर्तव्य से मतलब उस कर्तव्य से है जिनके पीछे राज्य के कानून की शक्ति हैं। हम कह सकते है की वह कर्तव्य जिनकी उल्लंघना होने से राज्य के किसी कानून का उल्लंघन होता है और जिनकी पालन करने के लिए राज्य के कोर्ट मे जाया जा सकता है। वह कानूनी कर्तव्य होते हैं। जो व्यक्ति अपने कानूनी कर्तव्यों का पालन नहीं करता उसे राज्य द्वारा दंडित किया जा सकता है। उदाहरण के लिएयदि राज्य द्वारा लगाया जाने वाले टैक्स को सरकारी खजाने में जमा करवाना एक नागरिक का कानूनी कर्तव्य है।और यदि कोई उसकी चोरी करता है तो यह दंडनीय है।

इसके अलावा भी कर्तव्य के कई प्रकार बताए गए है।
सकारात्मक कर्तव्य
नकारात्मक कर्तव्य
प्राथमिक कर्तव्य
द्वितीयक कर्तव्य
सापेछ कर्तव्य
निरपेच्छ कर्तव्य

यदि आपको इन को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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