कार्यपालिका का अर्थ-
सरकार के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं |
कार्यपालिका
विधायिका
न्यायपालिका
विधायिका कानून बनाती हैं |
कार्यपालिका इन कानून को लागू करती हैं |
न्यायपालिका का कार्य समीक्षा करना होता हैं|
कार्यपालिका का अर्थ व्यक्तियों के समूह से हैं जो कानून को लागू करते हैं और संगठन बनाते हैं |
राजनीतिक कार्यपालिका
इसमे सरकार, नेता ,प्रधानमंत्री आदि आते हैं |
स्थायी कार्य पालिका –
जो सरकार द्वरा चुने हुए व्यक्ति जो कार्य को करते हैं | इनको इस सब्जेक्ट का वेशेस ज्ञान होता है इसके अनुसार ये कार्य करता हैं | ये सरकारी कर्मचारी होता हैं | और इन्हे टेक्निकल नॉलेज होती हैं |
ये 2 प्रकार से हो सकती हैं |
केंद्र स्तर पर
राज्य स्तर पर
केंद्र स्तर पर रास्टपति ,प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद आते हैं |
राज्य स्तर पर मुख्य मंत्री ,गवर्नर, मंत्रिपरिषद आते हैं |
इसकी शक्तिया रास्टपति पर निहित होती हैं |
केन्द की शक्ति रास्टपति के पास होती हैं |
कार्यपालिका सामूहिक रूप मे
कार्यपालिका एकिक्रत रूप मे
लोकसभा मे जिसको बहुमत मिलता हैं वही प्रधानमंत्री बनाता हैं और विधायिका के प्रति जिम्मेदार होता हैं |
जहा संसदीय व्यवस्था होती हैं वहा प्रधानमंत्री प्रमुख होता हैं |
कार्यपालिका मे अनुच्छेद 52 से अनुछेद 73 तक समिल हैं। कार्यपालिका का अर्थ उस समूह से हैं जो कायदे कानून को संगठित तरीके से लागू करते हैं। राजनीतिक इच्छा का वास्तविक संचालन अनेक देशों में प्रशासकीय अंगों द्वारा ही किया जाता है। इसलिए अनेक विद्वानों द्वारा कार्यपालिका को अलग पहचान देने के लिए राजनीतिक कार्यपालिका ही कहा जाने लगा हैं । इसके बिना सरकार अपंग है। इसके निर्माण या चुनाव के तरीके भी सभी देशों में अलग अलग हैं। सीमित अर्थ में तो राज्य के प्रधान तथा उसके मन्त्रीमण्डल को ही कार्यपालिका कहा जाता है। व्यापक अर्थ में कार्यपालिका के अन्तर्गत नीति मे प्रशासकीय अंग भी शामिल हो जाते हैं
कार्यपालिका को इस प्रकार परिभाषित किया गया हैं।
मेक्रिडीस के अनुसार – “राजनीतिक कार्यपालिका, राजनीतिक समाज के शासन के लिए औपचारिक उत्तरदायित्व निभाने वाली संस्थागत व्यवस्थाएं हैं।”
गार्नर के अनुसार- “व्यापक तथा सामूहिक अर्थ में कार्यपालिका के अन्तर्गत वे सभी अधिकारी, राज्य कर्मचारी तथा एजेन्सियां आ जाती हैं जिनका कार्य राज्य की इच्छा को, जिसे विधानमण्डल ने प्रकट कानून का रूप दे दिया है, कार्य रूप में परिणत करना है।”
जवाहरलाल नेहरू के अनुसार- लोकतन्त्र मात्र राजनीतिक सामाजिक क्षेत्र मे जनमानस के अवसर के समानता मे विचार अंतर्निहित हो।
राष्ट्रपति को उसके कार्यों में सहायता करने और सलाह देने के लिये प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद होती है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और वह प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती । मंत्रिपरिषद में कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और राज्य मंत्री होते हैं।
1972 में केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 13 जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया गया कि भारत में संसद नहीं बल्कि संविधान सर्वोच्च है। इस सिद्धांत के तहत संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र को स्पस्ट कर दी गयी । कानून बनाना विधायिका का काम है इन तीनों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये यह ज़रूरी है
इससे संबन्धित अन्य वाद इस प्रकार हैं।
डी. सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य, 1987-
इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय मे कहा कि अध्यादेश जारी करने के लिए कार्यपालिका की विधायी शक्ति असाधारण परिस्थितियों में उपयोग की जानी चाहिए। न कि विधि बनाने की शक्ति के विकल्प के रूप में। यह एक ऐसे मामले की जांच से सम्बंधित था जहां राज्य सरकार द्वारा कुल 259 अध्यादेशों और उनमें से कुछ को समय-समय पर पुनः जारी कर रखा था।
गोलकनाथ परिवार ने यह भी तर्क दिया कि उनकी ज़मीन का अधिग्रहण संविधान द्वारा दिए गए क़ानून के समक्ष समानता और क़ानून के समान संरक्षण के मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ़ ठहरता है।
राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका-
आज राज्यों में अपराध वृद्धि हो जाने के कारण कार्यपालिका प्रशासन के साथ जुड़ गई है। आज कार्यपालिका के सभी कार्य प्रशासनिक अधिकारियों पर नौकरशाही द्वारा ही किए जाते हैं। इससे प्रशासकीय और राजनीतिक कार्यपालिका का अन्तर मिट गया है। लेकिन राजनीति विज्ञान में इनका अलग-अलग प्रयोग किया गया हैं। लोकतन्त्रीय देशों में तो सारे राजनीतिक निर्णय तथा सर्वोच्च प्रशासनिक निर्णय मुख्य कार्यपालक या मन्त्रीमण्डल द्वारा ही लिए जाते हैं।जिसको राजनीतिक कार्यपालिका कहा जाता है। इसका स्वरूप अस्थायी होता है। निश्चित अवधि के बाद चुनावों के बाद नई कार्यपालिका अस्तित्व में आ जाती हैवही दूसरी तरफ प्रशासन के अधिकारी स्थायी रूप से अपने पद पर रिटायरमेन्ट की अवधि तक रहते हैं। उन्हें अपने पद पर रहने के लिए राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता नहीं होती। इनका कार्य राजनीतिक कार्यपालिका के निर्णयों को कार्यरूप देना है। यह कार्यपालिका स्थायी कार्यपालिका कहलाती है। इसका स्वरूप स्थायी है। आज के लोकतन्त्रीय देशों में ये दोनों कार्यपालिकाएं इस तरह से एक हो गयी कि इनमें अन्तर करना कठिन हो गया है।