भारत का संविधान: संघ और उसके क्षेत्र (Union and its territory)

संघ और उसके क्षेत्र (Union and its territory)- भारतीय संविधान 26 नवम्बर  1949 को पारित किया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।  संविधान का फाइनल ड्राफ्ट तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे। आए दिन नए राज्यो की मांग होती रहती हैं जैसे की आपको पता होगा 2014 मे नया राज्य तेलंगाना बनाया गया |  201 मे उत्तराखंड ,झारखंड आदि बने और अभी भी निरंतर राज्यो की मांग होती रहती हैं जैसे पूर्वञ्चल आदि |

भारतीय लोकतन्त्र के पास क्षेत्र को लेकर हमेशा तनाव चलता रहता हैं और यह बड़ी चुनौती हैं | हमेशा किसी राज्य को विशेस दर्जा हासिल करना चाहते है और क्षेत्रवाद की भावना चलती रहती हैं |

जैसे बिहार राज्य हमेशा अलग स्टेट का दर्जा चाहती हैं |

संघ के अंतर्गत परिभाषा तथा भाग 1 जिसमे अनुछेद 1 से 4 तक वर्णित हैं  तथा राज्यो के पुनर्गठन की बात की जा रही हैं |

आर्टिक्ल 1 मे भी राज्यो की सूची दी गयी हैं | इसमे लिखा हैं की भारत राज्यो का संघ होता हैं | इसमे एक देश के 2 नाम क्यो हैं और इसमे यूनियन का प्रयोग क्यो हुआ हैं | इसका मतलब शक्तियों के विभाजन से हैं |

भारत मे जब constitution बन रहा था तो नाम को लेकर कन्फ़्युशन था की क्या लिखा जाए | दूसरे देश मे भारत की पहचान इंडिया के नाम से हुई थी और भारत को इंडिया के नाम से प्रयोग होता था अनंतता यह निष्कर्ष निकाला गया की दोनों नाम रखा जाए |

इसी तरह भाषा को लेकर भी विवाद किया गया सभी ने अपनी भाषा को नेशनल language बनाने को कहा आता नेशनल language न बना कर हिन्दी को official language बनाया गया |

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अब हम जानते हैं यूनियन का प्रयोग क्यो हुआ | यूनियन का मतलब हम अपने आप से जुड़े हैं और अब हम अलग नही होंगे और अलग होने का अब कोई chance नही हैं | जब राज्यो का केंद्र के साथ मिलने और न मिलने का संशय था तो इसलिए यह रखा की या तो विलय किया जाये या न किया जाये विलय राज्य फिर अलग नही होगा |

इसमे कोई एग्रीमेंट नही होता हैं |

इसमे स्टेट और सेंट्रल दोनों आपस मे जुड़े होते रहते हैं | और भारत का यूनियन एक संगठन हैं |

यह कई राज्यो मे विभाजित होता हैं पर राज्यो को अलग होने का कोई प्रावधान नही हैं |

यह एक देश एक इकाई के रूप मे कार्य करता हैं |

भारतीय क्षेत्र को 3 भाग मे बांटा गया हैं |

राज्यो का क्षेत्र यानि भारत के जो भी राज्य हैं इनका क्षेत्र

संघ का क्षेत्र जो केंद्र के अधीन हैं

यदि भारत के राज्य किसी क्षेत्र को अधिग्रहित करते हैं |

कुछ राज्यो को विशेस स्टेटस दिया गया हैं जैसे महारास्ट , गोवा , कर्नाटक आदि अनेक हैं |

इसी प्रकार 5वी और 6वी शैड्यूल के अनुसार कोई राज्य व्यवस्था की जा सकती हैं |

Artice 2 – इसमे केंद्र को शक्ति प्रदान की गयी हैं | राज्यो को प्रवेश और उनकी स्थापना पार्लियामेंट द्वरा किया जाएगा |

आर्टिक्ल 3 – संसद कानून बनाकर निम्न कार्य कर सकती हैं |

नए राज्यो का परिवर्तन

नए राज्यो का निर्माण

राज्य की सीमा को बदल सकती |

नाम मे परिवर्तन कर सकती |

क्षेत्र मे विस्तार

आर्टिक्ल 4 – इसमे आर्टिक्ल 368 के अनुसार संविधान मे संशोधन करने वाली कानून नही हैं |

उपर दी  गयी किसी प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।क्या पार्लियामेंट किसी भाग को दूसरे देश को दे सकती हैं जी हा पार्लियामेंट को यह अधिकार हैं की भारतीय संघ को किसी को दे सकती हैं नयायालय साधारण रूप से ऐसा नही कर सकती इसके लिए संविधान संसोधन करना होगा | सुप्रीम कोर्ट ने कहा की सीमा निर्धारण के लिए संविधान संसोधन की अवश्यता नही हैं | कार्य पालिका भी ऐसे निर्णय ले सकती हैं | और भावी सरकार भी इसपर निर्णय ले सकती हैं |

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1969 मे सुप्रीम कोर्ट ने कार्य पालिका को शक्ति मिली की विवादित फैशले ले सके इसका मतलब ये नही की किसी क्षेत्र को वेदेश को सौप दिया जाये | सभी के लिए समर्थन चाहिए होता हैं |

यहा संप्रभुता का मतलब हैं की गवर्नमेंट कोई भी फैशला ले सकती हैं |

2015 मे 100व संविधान संशोधन हुआ | जिसमे बांग्लादेश को बाउंडरी को लेकर बहुत विवाद हुआ और सीमा को ठीक करने के लिए कुछ क्षेत्र बांग्लादेश को दिया गयाऔर  उनका कुछ क्षेत्र हमे मिला |

स्वतन्त्रता के समय 508 राज्य हमे मिले पहली बार भाषा के आधार पर विलय हुआ 1912 मे बिहार , उड़ीसा आदि भाषा के आधार पर अलग हुए थे |

सुरू से ही राज्यो का पुनर्गठन मे भाषा का आधार बना रहा |

सभी भाषा के आधार पर राज्यो का पुनर्गठन गलत था परंतु यही हुआ |

Commission ने कई बार यह संदेश दिया की भाषा के आधार पर राज्यो का गठन अनुचित हैं |

मामला रुका नही कई लोग अनशन भी किया और यही कारण था की भाषा के आधार पर राज्यो का गठन हुआ |

फजल आली 1956 मे राज्य पुनर्गठन आयोग पारित हुआ | नए राज्य गठन हुआ |

इसके बाद राज्य और संघ राज्य बने |

संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित

संविधान (पैंतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा (1-3-1975 से) अंतःस्थापित।

संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची मे संशोधन

 

अनुच्छेद 368 के अनुसार –

इस संविधान में जो बाते उलेख की गयी हो उसके बाद भी  संसद अपनी संविधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन इस अनुच्छेद में बताए गए  प्रक्रिया के अनुसार कर सकेगी।

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इस संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुरःस्थापित करके ही किया जा सकेगा।  और तब वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जो विधेयक को अपनी अनुमति देगा और तब संविधान उस विधेयक के निबंधनों के अनुसार संशोधित हो जाएगा ।

परंतु यदि ऐसा संशोधन–

अनुच्छेद 54, अनुच्छेद 55, अनुच्छेद 73, अनुच्छेद 162 या अनुच्छेद 241 में, या

सातवीं अनुसूची की किसी सूची में, या

संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में, या

इस अनुच्छेद के उपबंधों में,

कोई परिवर्तन करने के लिए  किए गए है तो ऐसे संशोधन के लिए उपबंध करने वाला विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किए जाने के लिए विधायिका की शक्तिया जरूरी हैं |

कुछ राज्यो मे भी परिवर्तन हुआ जैसे उत्तर प्रदेश , मईशूर ,दिल्ली आदि का नाम बदला गया |

उतरांचल से उत्तरखंड नाम बदल गया

अभी हाल मे उड़ीशा के नाम मे बदलाव हुआ हैं |

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