विधि का यह सिद्धांत जिसके अनुसार किसी व्यक्ति को उसके लापरवाही पूर्वक कार्यों से कार्य होने वाली हानि के लिए उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि किसी भी कृत्य के परिणामों की सीमा नहीं होती है वह केवल उन्हीं परिणामों के लिए उत्तरदाई होगा जो उसके द्वारा किए गए कार्यों से सीधे संबंधित हो।
हम यह कह सकते हैं कि अपकृत्य विधि के अनुसार कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नुकसानी का वाद केवल तभी ला सकता है जब ऐसे कार्यों से कार्य क्षति उस कार्यों का सीधा या फिर प्रत्यक्ष परिणाम हो।
हम यह भी कह सकते हैं कि अपकृत्य से कार्य क्षति का उस अपकृत्य से सीधा संबंध होना चाहिए यदि कृत्य और क्षती में सीधा संबंध नहीं है तो ऐसे कृत्य के लिए नुकसान का वाद नहीं लाया जा सकता है।
जैसे कि एक मामले में वादी ने एक स्थान विशेष पर जाने के लिए अपने और अपने परिजनों के रेल टिकट खरीदे तथा रेल कर्मियों की गलती के कारण एक गलत गाड़ी बिछड़ गए जिससे वह गंतव्य तक नहीं पहुंच सके और उन्हें टीटी के द्वारा रेलगाड़ी से उतारना पड़ा उस स्थान पर उन्हें ना ठहरने की व्यवस्था मिली और ना वाहन की जिसकी वजह से उन्हें 4 किलोमीटर पैदल चल कर के अपने स्थान पर पहुंचना पड़ा जिसका परिणाम यह हुआ कि वादी की पत्नी बीमार हो गई और उसके उपचार पर बहुत सा धन व्यय करना पड़ा वादी ने प्रतिवादी यानी कि रेलवे के विरुद्ध नुकसान का वाद दायर किया और यह वाद वादी तथा परिजनों की असुविधा तथा वादी की पत्नी की बीमारी पर हुए खर्चे पर आधारित था न्यायालय के तर्क को स्वीकार कर लिया लेकिन बीमारी के तर को नकार दिया न्यायालय ने कहा कि वादी को असुविधा प्रतिवादी के कृत्य का सीधा परिणाम है लेकिन बीमारी सीधा परिणाम नहीं है बीमारी प्रतिवादी के कृतिका दूरस्थ परिणाम था क्योंकि पैदल चलने से कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए आवश्यक नहीं है और इस बात का पूर्वानुमान भी नहीं लगाया जा सकता है।
ऐसे ही एक मामला मुन्सिपल बोर्ड खेड़ी बनाम रामभरोसे का है। इस मामले में रामभरोसे ने मुंसिपल बोर्ड पर यह आरोप लगाया कि उसके द्वारा सरदार तेज सिंह को राम भरोसे के मकान के पास चक्की लगाने की अनुमति दिए जाने से उसके मकान को भारी हानि पहुंची है इसलिए वह बोर्ड से क्षतिपूर्ति पाने का हकदार है इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए वादी को नुकसान पाने का हकदार नहीं माना कि वादी के मकान को कार्य क्षति मुंसिपल बोर्ड द्वारा प्रदत अनुज्ञप्ति का सीधा परिणाम नहीं था क्योंकि चक्की तेज सिंह चलाता था बोर्ड नहीं।
यह दोनों ही मामले क्षति की दूरदर्शिता के सिद्धांत को स्पष्ट करती है इससे यह स्पष्ट होता है कि कोई भी व्यक्ति अपने कृत्य के तत्कालीन परिणामों का परिकल्पना हीं कर सकता है लेकिन दुरस्त परिणामों का नहीं।
यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। या इससे संबन्धित कोई और सुझाव आप हमे देना चाहते है। तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।
हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है। कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो आप उससे संबन्धित जानकारी भी ले सकते है।