विधि के अंतर्गत दंड के सिद्धान्त और अभिवचन

जैसा की आप सभी जानते है समाज मे कानून बनाने वालो और कानून को तोड़ने वाले दोनो ही प्रकार के लोग रहते है जहाँ एक और कानून को बनाना कठिन होता है। वही दूसरी ओर कानून बनते ही कानून की कमियाँ और उसको तोड़ने का उपाय ढूंढ लिया जाता है।

जहाँ कानून को बनाने वाले कानून की सभी बारीकियो को समझते है और उसका प्रभाव समाज पर कैसा होगा सोचकर कानून बनाते है वही दूसरी ओर कानून को तोड़ने वाले भी बारीकियो को खोजते है और उसका फायदा कानून को तोड़ने मे लेते है। 

कानून निर्माताओं के पास हमेशा यह समस्या बनी रहती है कि वह कानून तोड़ने वालो को क्या दंड दिया जाए और कैसे इसी का समाधान खोजते हुए सिविल प्रक्रिया संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता का निर्माण हुआ। 

संपूर्ण विश्व मे दंड प्रक्रिया का मूल्यांकन करने के लिए इसका विकास हुआ है। 

दंड के सिद्धान्त-

दंड के निम्न लिखित सिद्धान्त होते हैं। 

निवारक सिद्धांत-

इस सिद्धांत मे अपराध को व्यर्थ सिद्ध करना होता है। इसका उद्देश्य अपराधियों को सबक मिल सके। इसका मुख्य सिद्धांत निवारक सिद्धांत है की अपराध अपराधियों के लिए गलत सौदा है। 

निरोधक सिद्धांत-

इसका मुख्य उद्देश्य अपराधी को दंड देना है जिससे दूसरे लोग अपराध करने से डरे। इसमे अपराधी को विकलांग या निरोध बना देने की प्रक्रिया है। जिससे लोगो मे भय उत्पन्न हो सके। और हर कोई अपराध से डरे। 

इसमे निम्न को शामिल किया जाता है। 

इसके अनुसार अपराधियों को दंड देने का प्रावधान है जिससे अपराध के प्रति भय उत्पन हो। 

अपराधियों को अपराध के अनुसार उनपर जुर्माना लगा दिया जाए। 

अपराधियों को अपराध करने से रोकने के लिए उसको निस्क्रीय कर दिया जाए या अपंग बना दिया जाए जिससे वो अपराध न कर सके। 

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अपराधियों को अच्छी शिक्षा दी जाए जिससे वह सुधर सके। 

क्षतिपूर्ति का सिद्धांत –

समाज मे अपराध का सबसे बड़ा कारण होता है लोभ जहा लोभ होता है वहा अपराध की संभावना अधिक होती है। इसका मुख्य उद्देश्य भविष्य मे होने वाले अपराध से रक्षा करना होता है। और अपराधी को क्षतिपूर्ति प्रदान करना होता है। जो अपराध की वजह से उसका नुकसान हुआ था उसकी भरपाई हो जाती है और अपराधी जितना लूटा था वह वापस करा दिया जाये और सजा भी दिया जाये तो वह अपराध के प्रति डरेगा। और अपराध समाप्त हो जाएगा।

सुधारात्मक सिद्धांत –

इसके अनुसार अपराधी के चरित्र को सुढ्रन बनाना होता है जिससे उसके मस्तिष्क मे अपराध के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाये और वह अच्छे समाज की स्थापना करे। इसका उद्देश्य इसके चरित्र को मजबूत करना होता जिससे वह आत्म निरीक्षण कर सके। और उसको सही गलत का अनुभव हो सके तथा खुद को नियंत्रित कर सके।

इसमे अपराधी को रोज़गार प्रदान करके उसको खुद की ताकत और आत्मनिर्भरता के बारे मे सीख दिया जाता है। और उसको सुधारात्मक तरीका अपनाने का समर्थन करता है। समाज के प्रति उनका नजरिया धीरे धीरे बदलता है और उनको सुधरने का मौका मिलता है जैसे बाल कालयाद गृह मे बच्चों को रख कर उनको अपराध के प्रति सतर्क कर समाज  मे रहने योग्य बनाते है।

प्रतिकारक सिधान्त –

यह सिधान्त बदले का सिधान्त है इसमे अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा दी जाती है जैसे आँख के बदले आँख कान के बदले कान, खून के बदले खून यह इस सिधान्त के अनुसार कार्य करता है इसमे मनुष्य को सुधारा नही जाता है और न ही उसके आपराधिक प्रक्रति को बदल सकते है। इसमे प्रतिकारी सिद्धांत के अनुसार सबको अपनी करनी का फल भोगना पड़ता है। यदि कोई किसी की मृत्यु का जिम्मेदार है तो उसकी भी मृत्यु होनी चाहिये। तभी उसको उचित दंड मिल पायेगा। 

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अभिवचन – 

न्यायालय मे कोई भी वाद दायर करने के लिए अपना पच्छ रखना बहुत आवश्यक होता है। और अपने पच्छ को रखने के लिए जो लिखित दस्तावेज प्रस्तुत किये जाते हैं उसको अभिवचन कहा जाता है। 

पी सी मेघा के अनुसार-

न्यायालय मे कार्यवाही के समय दोनों पच्छो को अपना तर्क रखना होता है तार्किक कार्यवाही के लिए जो व्योरा होता है जो मुकदमे के सुनवाई के लिए आवश्यक होता है। 

अभिवचन मे तथ्यों का उल्लेख होना चाहिए कानून का नही –

अभिवचन 2 रूप मे पाया जाता है एक इसका सकरात्मक पहलू है और दूसरा नकारात्मक पहलू जिसके अनुसार अभिवचन मे तथ्यो का उल्लेख किया गया है। वही नकारात्मक रूप मे यह कानून नही है। 

 अभिवचन मे निम्न को शामिल नही किया जा सकता है।

कानून के प्रावधान

कानून का निर्णय

तथ्यो का निष्कर्ष

मिश्रित कानून

न्याय्यलय तथ्यो के लिए नोटिस देने के लिए बाध्य होता है। यदि न्याय्यलय को पता चल जाये की किसी वाद के लिए पुलिस जिस नियम के तहत याचिका को खारिज किया है वह अमानी है तो न्यायालय ऐसे आदेश को अवैध घोसित कर सकता है।

इसके कुछ अपवाद भी है जो हम आपको बताना चाहते है।

विदेशी कानून

रीति रिवाज

कानूनी तर्क

कानून का अनुमान

प्रतेय्क अभिवचन को वस्तुपरक तथ्यो को ही प्रस्तुत करना चाहिए-

सभी को केवल विधि संग्रह द्वारा दिया गया उत्तर से संबन्धित तथ्य या फिर वस्तुपरक तथ्यो को ही शामिल करना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के अनुसार एकल वस्तुपरक तथ्य यदि काही छुट जाते है तो यह अधूरी कार्यवाही माना जाता है।और दावे का बयान खराब कर दिया जाता है।

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अभिवचन मे केवल वस्तु परक जो अभी वर्तमान अवसथा मे है उसकी बात करनी चाहिए इससे दूसरे पक्ष को आपत्ति नही होती है और वाद अच्छे से सुलह जाता है।

इसके कुछ अपवाद भी है।

स्थाति का पूर्व अनुमान लगाना-

किसी पक्षकार को प्रमाण के लिए पूर्व अनुमान की आवश्यकता नही होती है। उदाहरण के लिए स ने ज को कोचिंग पढ़ाने का वचन दिया और साल भर की फीस ले ली और उसकी रसीद भी स को दे दिया तो ज को अब प्रमाण देने की आवश्यकता नही है की स ने कोचिंग पढ़ाने का वचन दिया था फीस की रशीद इसका सबूत है।

विधि का अनुमान –

अभिवचन मे तथ्यो को सिद्ध करने का कार्य दूसरे पक्ष को होता है। प्रमाण का उत्तरदायित्व दूसरे पक्ष को होता है।

उदाहरण के लिए बिल पर दावा होता है न की उसके लिए वास्तविक दावे का विनिमय पत्र दिया जाता है।

प्रलोभन का मामला-

जैसा की आपको पता होगा जब कोई वाद 2 पक्षो मे होता है तो हम उनका नाम पता व्यवसाय और एक दूसरे से संबंध को पहले ज्ञात करते है यह जरूरी नही है की मुकदमे के लिए इसकी आवश्यकता पड़े परंतु हम इससे वाद का अनुमान लगाने के लिए करते है इसको प्रलोभन का विषय भी कह सकते है।

इस प्रकार हमने आपको इस पोस्ट के माध्यम से कानून विधि के अंतर्गत दंड के प्रकार और अभिवचन को समझाने का प्रयास किया है यदि कोई गलती हुई हो या आप इसमे और कुछ जोड़ना चाहते है या इससे संबंधित आपका कोई सुझाव हो तो आप हमे अवश्य सूचित करे।

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