जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 123 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 126
इस धारा के अनुसार यदि –
यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 125 के अधीन कार्यवाही किसी ऐसे जिले में की जा सकती है। जहां पर –
जहां वह रहता है या फिर जहां उसकी पत्नी निवास करती है। अथवा
जहां उसने अंतिम बार अपनी पत्नी के साथ या अधर्मज संतान की माता के साथ निवास किया हुआ है।
ऐसी कार्यवाही में सब साक्ष्य उस अनुसार ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में जिसके विरुद्ध भरण पोषण के लिए संदाय का आदेश देने की प्रस्थापना है। अथवा जब उसकी वैयक्तिक हाजिरी से अभियुक्ति दे दी गई है। तब उसके प्लीडर की उपस्थिति में लिया जाएगा और उस रीति से अभिलिखित किया जाएगा जो समन मामलों के लिए बताया गया है।
परंतु यदि मजिस्ट्रेट को यह समाधान हो जाए कि ऐसा व्यक्ति जिसके विरुद्ध भरण पोषण के लिए संदाय का आदेश देने की प्रस्थापना है। और वह तामील से जानबूझकर बच रहा है । अथवा न्यायालय में हाजिर होने में जानबूझकर उपेक्षा कर रहा है। तो ऐसे स्थित मे मजिस्ट्रेट मामले को एकपक्षीय रूप में सुनने और अवधारणा करने के लिए अग्रसर हो सकता है। और ऐसे दिया गया कोई आदेश उसकी तारीख से तीन मास के अंदर किए गए आवेदन पर दर्शित अच्छे कारण से ऐसे निबंधनों के अधीन जिनके अंतर्गत विरोधी पक्षकार को खर्चे के संदाय के बारे में ऐसे निबंधन भी हैं। जो मजिस्ट्रेट न्यायोचित और उचित समझें उस अनुसार कार्य किया जा सकता है।
धारा 125 के अधीन आवेदनों पर कार्यवाही करने में न्यायालय को शक्ति होगी कि वह खर्चों के बारे में ऐसा आदेश दे जो न्यायसंगत है।
धारा 127
इस धारा के अनुसार भत्ते में परिवर्तन को बताया गया है।
धारा 125 के अधीन भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता पाने वाले या यथास्थिति अपनी पत्नी, संतान, पिता या माता को भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता देने के लिए धारा 125 के अधीन आदिष्ट किसी व्यक्ति की परिस्थितियों में यदि कोई तब्दील साबित हो जाने पर मजिस्ट्रेट यदि चाहे तो वह भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए भत्ते में परिवर्तन कर सकता है।
जहाँ मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि धारा 125 के अधीन दिया गया कोई आदेश किसी सक्षम सिविल न्यायालय के किसी विनिश्चय के परिणामस्वरूप रद्द या परिवर्तित किया जाना चाहिए वहाँ वह यथास्थिति उस आदेश को उसी अनुसार रद्द कर देगा या परिवर्तित कर देगा।
जहाँ धारा 125 के अधीन कोई आदेश ऐसी स्त्री के पक्ष में दिया गया है । तब जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद प्राप्त कर लिया है । तो वहाँ यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि-
उस स्त्री ने ऐसे विवाह-विच्छेद की तारीख के बाद पुनः विवाह कर लिया है। तो वह इस प्रकार के आदेश को उसके पुनर्विवाह की तारीख से रद्द कर देगा।
उस स्त्री के पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है। और उस स्त्री ने उस आदेश के पूर्व या पश्चात् वह पूरी धनराशि प्राप्त कर ली है । जो की पक्षकारों को लागू किसी रूढ़िजन्य या स्वीय विधि के अधीन ऐसे विवाह-विच्छेद पर देय थी तो वह ऐसे आदेश को –
उस दशा में जिसमें ऐसी धनराशि ऐसे आदेश से पूर्व दे दी गई थी उस आदेश के दिए जाने की तारीख से रद्द कर देगा।
या फिर किसी अन्य दशा में उस अवधि की जो की यदि कोई हो जिसके लिए पति द्वारा उस स्त्री को वास्तव में भरण पोषण दिया गया है। समाप्ति की तारीख से रद्द कर देगा।
जिस स्त्री ने अपने पति से विवाह विच्छेद प्राप्त कर लिया है। और उसने अपने विवाह विच्छेद के पश्चात् अपने स्थित भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के अधिकारों का स्वेच्छा से त्याग कर दिया था। तो वह आदेश को उसकी तारीख से रद्द कर देगा।
किसी भरण पोषण या दहेज के लिए किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसे धारा 125 के अधीन भरण पोषण और अन्तरिम भरण पोषण या उनमें से किसी के लिए कोई मासिक भत्ता संदाय किए जाने का आदेश दिया गया है। तो वसूली के लिए डिक्री करने के समय सिविल न्यायालय उस राशि की भी गणना करेगा जो ऐसे आदेश के अनुसरण में उस स्थिति भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण या इनमें से किसी के लिए मासिक भत्ते के रूप में उस व्यक्ति को संदाय की जा चुकी है। या उस व्यक्ति द्वारा वसूल की जा चुकी है।
धारा 128
इस धारा के अनुसार भरण पोषण के आदेश का प्रवर्तन को भी बताया गया है।
इस स्थिति मे भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण और कार्यवाहियों के व्यय के बारे मे बताया गया है । इस आदेश की प्रति उस व्यक्ति को जिसके पक्ष में वह दिया गया है। या उसके संरक्षक को यदि कोई हो तो या उस व्यक्ति को जिसे उस स्थिति के अनुसार भरण पोषण के लिए भत्ता या अंतरिम भरण पोषण के लिए भत्ता और कार्यवाही के लिए व्यय किया जाना है। निशुल्क दी जाएगी और ऐसे आदेश का प्रवर्तन किसी ऐसे स्थान में जहां वह व्यक्ति है। या जिसके विरुद्ध वह आदेश दिया गया था। या किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पक्षकारों को पहचान के बारे में और यथास्थिति देय भत्ते या व्यय के न दिए जाने के बारे में ऐसे मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाने पर किया जा सकता है।
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