भारत का संविधान अपने आप में संघीय व्यवस्था वाला है। और संघीय व्यवस्था शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत पर आधारित होता है। जिसका मतलब है कि संविधान द्वारा प्रदत्त सारी की सारी शक्तियां जैसे कि विधायी, कार्यपालिका और वित्तीय शक्तियां केंद्र और राज्यों के मध्य विभाजित है।
हालांकि यहाँ पर एक बात याद रखने योग्य है कि हमारे संविधान में न्यायिक शक्तियों के विभाजन की कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि यहाँ पर एकल न्यायिक व्यवस्था है।
केंद्र-राज्य संबंध का वर्गीकरण —
अध्ययन की दृष्टि से देखें तो केंद्र और राज्य के सम्बन्धों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता हैं;
1. विधायी संबंध (Legislative relationship)
2. प्रशासनिक संबंध (Administrative relations)
3. वित्तीय संबंध(Financial relations)
विधायी संबंध का सीधा सा मतलब है केंद्र और राज्य के मध्य विधि बनाने के स्तर पर संबंध। संविधान के भाग 11 में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों (Center-state legislative relations) की चर्चा की गयी है।
संघीय व्यवस्था होने के कारण केंद्र और राज्य के मध्य शक्तियों का बंटवारा कर दिया गया है। जिसमें केंद्र के पास अपेक्षाकृत ज्यादा शक्तियां हैं। पर कितनी विधायी शक्तियां केंद्र के पास है और कितनी विधायी शक्तियां राज्य के पास है इसे चार भागों में बाँट कर देखा जा सकता है।
1. केंद्र और राज्य विधान के सीमांत क्षेत्र
2. केंद्र-राज्य विधायी विषयों का बंटवारा
3. राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान
4. राज्य विधानमंडल पर केंद्र का नियंत्रण
1. केंद्र और राज्य विधान के सीमांत क्षेत्र
इसका मतलब ये है कि केंद्र और राज्य के विधान बनाने की सीमाएं क्या-क्या है। संविधान, केंद्र और राज्यों के विधायी शक्तियों के संबंध में सीमाओं को लेकर, अनुच्छेद 245 के तहत निम्न प्रावधान की व्यवस्था करता है,
> संसद के पास पूरे भारत या इसके किसी भी क्षेत्र के लिए कानून बनाने अधिकार है। यहीं नहीं संसद द्वारा बनाया गया कानून भारतीय नागरिक एवं उनकी विश्व में कहीं भी संपत्ति पर भी लागू होता है।
राज्य विधानमंडल की बात करें तो राज्य विधानमंडल सिर्फ उस राज्य के लिए कानून बना सकती है।
कुछ विशेष स्थितियों को छोड़ दे तो उसके अलावा राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित कानून राज्य के बाहर के क्षेत्रों में लागू नहीं होता है।
संसद के कानून पर प्रतिबंध –
कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां पर संसद का कानून लागू नहीं होता। या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास कुछ विशेषाधिकार होता है, जिसका इस्तेमाल करके वे खुद नियम, परिनियम आदि बना सकते हैं।
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा एवं नागर हवेली और दमन व दीव में राष्ट्रपति केन्द्रीय क़ानूनों को लागू करने के लिए बाध्य नहीं होता है। इन क्षेत्रों की शांति, सुरक्षा एवं अच्छी सरकार के लिए राष्ट्रपति खुद का नियम, परिनियम या कानून लागू कर सकता है। राष्ट्रपति चाहे तो संसद के कानून को भी लागू कर सकता है (संशोधन करके या बगैर संशोधन के)।
राज्यपाल और राष्ट्रपति को ये शक्ति है कि अनुसूची 6 के राज्यों यथा मिज़ोरम, असम, मणिपुर और त्रिपुरा के विशेष स्टेट्स प्राप्त जनजातीय जिलों में, संसद के किसी कानून को परिवर्तनों के साथ लागू कर सकता है।
ऐसा करने का मकसद दरअसल वहाँ के जनजातीय संस्कृति को बचाना है। क्योंकि जाहिर है एक ही कानून इतने बड़े देश में सबके लिए उसी रूप में उपयुक्त हो; ये जरूरी तो नहीं और ऐसा किया भी नहीं जाना चाहिए।
राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान
ऊपर हमने अभी जो भी विधायी शक्तियों के बँटवारे के बारे में पढ़ा है वो दरअसल तब लागू होता है जब स्थिति सामान्य हो। लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसी परिस्थितियाँ आती है जिसमें संसद ही राज्य के लिए विधान बनाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, ये उस प्रश्न का उत्तर है कि केंद्र किन परिस्थितियों में राज्य सूची पर भी कानून बना सकती है
केंद्र-राज्य विधायी विषयों का बंटवारा
अनुच्छेद 246 के तहत, संविधान में केंद्र एवं राज्य के बीच विधायी विषयों के बंटवारे के संबंध में त्रिस्तरीय व्यवस्था की है गयी है। जिसे सातवीं अनुसूची (Seventh schedule) में रखा गया है। ये तीन प्रकार की सूचियाँ हैं –
संघ सूची (Union list),
राज्य सूची (State list), और
समवर्ती सूची (Concurrent list)
1. संघ सूची से संबन्धित किसी भी मसले पर कानून बनाने की संसद को विशिष्ट शक्ति प्राप्त है। इसमें कोई राज्य हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
जिस समय संविधान बनाया गया था उस समय तो इसमें 97 विषय था पर अभी इस सूची में 100 विषय है, जैसे – रक्षा, बैंकिंग, विदेश मामले, मुद्रा, आण्विक ऊर्जा, बीमा, संचार, केंद्र-राज्य व्यापार एवं वाणिज्य, जनगणना, लेखा परीक्षा आदि।
2. इसी प्रकार राज्य सूची के विषयों पर राज्य विधानमण्डल को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है, पर सामान्य परिस्थितियों में, क्योंकि कभी-कभी कुछ ऐसी विशिष्ट परिस्थिति आ जाती है जहां राज्य के विषयों पर भी कानून केंद्र ही बनाती है – जैसे कि आपातकाल ।
जिस समय संविधान बनाया गया था उस समय तो इसमें 66 विषय था पर अब इसमें 61 विषय है। जैसे- सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस, जन-स्वास्थ्य एवं सफाई, कृषि, जेल, स्थानीय शासन, मतस्य पालन, बाजार आदि।
3. समवर्ती सूची के संबंध में संसद एवं राज्य विधानमंडल दोनों कानून बना सकते है। इस सूची में इस समय 52 विषय मूल रूप से इसमें मात्र 47 विषय था।
जैसे- आपराधिक कानून प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, विवाह एवं तलाक, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन, बिजली, श्रम कल्याण, आर्थिक एवं सामाजिक योजना, दवा, अखबार, पुस्तक एवं छापा प्रेस, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के अतिरिक्त सभी न्यायालयों का गठन एवं अन्य।
42वें संशोधन अधिनियम 1976 के तहत 5 विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में शामिल किया गया। वे है – शिक्षा, वन, नाप एवं तौल, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, न्याय का प्रशासन।
जो भाग किसी राज्य के अंतर्गत नहीं आता है, संसद उस भाग के लिए तीनों सूचियों या उसके अतिरिक्त भी किसी विषय पर कानून बना सकता है। जैसे कि केंद्रशासित प्रदेश।
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