UGC NET & UPPSC APO की तैयारी हेतु– भारतीय संबिधान के आपातकालीन उपबंध

सामान्‍य परिस्थितियों में भारतीय संविधान ससंघात्‍मक ढॉंचे का अनुसरण करता है।  परन्‍तु, हमारे संविधान निर्माताओं को इस बात का अहसास था कि यदि देश की सुरक्षा खतरे में हो या उसकी एकता और अखण्‍डता को खतरा हो तोऐसे स्थित मे  यह ढॉंचा परेशानी का कारण भी बन सकता है। ऐसी परिसस्‍थतियों में देश की रक्षा के लिये परिसंघ के सिद्धातों को त्‍याग दिया जाता है । और जैसे ही देश की स्थितियॉं सामान्‍य होती हैं। तो  संविधान पुन: अपने सामान्‍य रूप में कार्य करने लगता है।

भारतीय संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाग 18 के अनुक्ष्‍छेद (352-360) में तीन प्रकार के आपातों का उल्‍लेख किया है –

युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्‍त्र विद्रोह की स्थिति में उत्‍पन्‍न आपात जिसे आम-बोलचाल में ‘राष्‍ट्रीय आपात’ कहा जाता है। हालॉंकि संविधान में इसके लिये ‘आपात की उद्घोषणा‘ शीर्षक का प्रयोग हुआ है।

राष्‍ट्रीय आपात (National emergency)—

भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद 352 के अनुसार राष्‍ट्रपति को आपात की उद्घोषणा करने की शक्ति प्राप्‍त है। और  यदि उसे यह समाधान हो जाता है कि यह  ‘युद्ध’, ‘बाह्य आक्रमण’ या ‘सशस्‍त्र विद्रोह’ के कारण भारत या उसके किसी क्षेत्र की सुरक्षा संकट में है। जरूरी नहीं है कि संकट वास्‍तव में मौजूद हो यदि संकट सन्निकट है तो भी उद्घोषणा की जा सकती है। 44वे संविधान संशोधन द्वारा यह स्‍पष्‍ट किया गया है कि राष्‍ट्रपति ऐसी उद्घोषणा केवल तभी कर सकता है जब संघ का मंत्रीमंडल (Cabinet) इस संदर्भ में अपने विनिश्‍चय की सूचना लिखित रूप में प्रदान करें।

मूल संविधान में आपात की उद्घोषणा का आधार ‘युद्ध’, ‘बाह्य आक्रमण’ और ‘आंतरिक अशांति‘ था परंतु 44वें संविधान संशोधन के द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ के स्‍थान पर ‘सशस्‍त्र विद्रोह‘ को आधार बनाया गया।

’38वें संविधान संशोधन 1975′ के द्वारा अनुच्‍छेद 352 में एक नया खण्‍ड जोड़कर यह स्‍पष्‍ट किया गया कि राष्‍ट्रपति को इस अनुच्‍छेद के तहत विभिन्‍न आधारों पर एक ही समय में विभिन्‍न घोषणाऍं करने की शक्ति होगी, चाहे राष्‍ट्रपति ने पहले से कोई उद्घोषणा कर रखी हो और वह प्रवर्तन में हो।

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 भारतीय संविधान में केवल अनुच्‍छेद 352 में ही एक बार मंत्रिमंडल (Cabinet) शब्‍द का प्रयोग हुआ है, शेष सभी स्‍थानों पर मंत्रिपरिषद शब्‍द का उल्‍लेख है।
राज्‍यों में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की स्थिति से उत्‍पन्‍न परिस्थिति। प्रचलित भाषा में इसे राष्‍ट्रपति शासन के नाम से जाना जाता है। संविधान में इसके लिये कहीं भी आपात या आपातकाल शब्द का उल्‍लेख नहीं मिलता है।

उद्घोषणा का राज्‍यक्षेत्रीय विस्‍तार (Territorial extension of the proclamation)

मूल संविधान में विशिष्‍ट तौर पर यह नहीं कहा गया था । कि आपात की उद्घोषणा को भारत के किसी विशिष्‍ट भाग तक भी सीमित किया जा सकता है। इसका अर्थ यह निकाला जाता था कि समस्‍या चाहे देश के किसी विशिष्‍ट भाग तक ही सीमित क्‍यों न हो परंतु आपात की उद्घोषणा पूरे देश के लिये की जाएगी। 42वे संविधान संशोधन 1976 द्वारा राष्‍ट्रपति को य‍ह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह आपात की उद्घोषणा को पूरे भारत या उसके किसी विशिष्‍ट क्षेत्र तक भी सीमित रख सकता है। यह संशोधन युक्तियुक्‍त और तर्कसंगत है जैसे यदि संकट लद्दाख पर हो तो यह आवश्‍यक नहीं कि कन्‍याकुमारी में भी आपात लागू किया जाये। संकट किस क्षेत्र पर है, इसका निर्णय राष्‍ट्रपति करेगा। यहाँ राष्‍ट्रपति के निर्णय का अर्थ मंत्रिमंडल के निर्णय से है।
ऐसी स्थिति जिसमें भारत का वित्‍तीय स्‍थायित्‍व या साख संकट में हो, तो उसे वित्‍तीय आपात कहते हैं। संविधान में भी इसे ‘वित्‍तीय आपात‘ कहा गया है

आपात का अनुमोदन और अवधि (Approval and duration of emergency)

44वें संविधान संशोधन 1978 से पूर्व उद्घोषणा दो मास तक की अवधि तक विधिमान्‍य और प्रवर्तन में रहती थी। किन्‍तु, यदि दो मास की अवधि के समाप्‍त होने से पूर्व संसद के दोनों सदन सामान्‍य बहुमत के संकल्‍प द्वारा उसका अनुमोदन कर देते थे तो ऐसे दशा मे वह उद्घोषणा अनिश्चित काल तक ( जब तक मंत्रिपरिषद चाहे तब तक ) बनी रह सकती थी।

प्रत्‍येक अनुमोदन से उद्घोषणा को केवल छ: माह का जीवनकाल प्राप्‍त होता है और उसे नया जीवनकाल प्राप्‍त करने के लिये पुन: विशेष बहुमत के अनुमोदन की आवश्‍यकता होती है।

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यदि लोकसभा का विघटन हो गया है तो ऐसी स्थिति में राज्‍यसभा उद्घोषणा का अनुमोदन करेगी और लोकसभा के पुनर्गठन के पश्‍चात् पहली बैठक के 30 दिनों के भीतर उद्घोषणा का लोकसभा द्वारा अनुमोदन आवश्‍यक है। ध्‍यातव्‍य है कि जब लोकसभी अस्तित्‍व में न हो और केवल राज्‍यभा द्वारा ही आपात उद्घोषणा का अनुमोदन किया जा रहा हो, तब भी उद्घोषणा की अवधि एक बार में छ: माह से अधिक नहीं हो सकती है।

आपात के दौरान मूल अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों को अनुच्‍छेद 358 और 359 में स्‍पष्‍ट किया गया है।

    अनुच्‍छेद 358 के अनुसार

 आपात के दौरान अनुच्‍छेद 19 का स्‍वत: निलंबन होता है। इसके लिये कोई पृथक घोषणा नहीं करनी पड़ती। अनुच्‍छेद 19 का निलंबन युद्ध और बाह्य आक्रमण के समय ही होता है, सशस्‍त्र विद्रोह के कारण घोषित आपात की स्थिति में नहीं। अनुच्‍छेद 358 केवल उन्‍हीं विधियों को सुरक्षा प्रदान करता है जिनका सीधा संबंध आपातकाल के साथ है और जिनमें इस आशय की स्‍पष्‍ट घोषणा की गई है। ऐसे कानूनों के तहत दिये गये आदेशों को भी यह सुरक्षा प्राप्‍त होती है। आपात की उद्घोषणा के समाप्‍त होते ही अनुच्‍छेद 19 पुन: जीवित हो जाता है।

   मूल संविधान में उल्‍लेख था कि आपात के दौरान अनुच्‍छेद 359 के अनुसार राष्‍ट्रपति आदेश निकालकर किसी भी मूल अधिकार का निलंबन कर सकता है। निलंबन कितने समय के लिये होगा इसकी घोषणा राष्ट्रिपति के आदेश में ही की जाएगी। ’44वे संविधान संशोधन 1978′ के द्वारा अनुच्‍छेद 359 पर यह शर्तें आरोपित कर दी गई कि-

 अनुच्‍छेद 359 के तहत जारी आदेश से अनुच्‍छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्‍त मूल अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकेगा।

अनुच्‍छेद 356 में उल्‍लेख है कि यदि कोई राज्‍य अनुच्‍छेद 256 और 257 के तहत केन्‍द्र द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है या पालन करने में असमर्थ है, तो राष्‍ट्रपति के लिये यह निष्‍कर्ष निकालना विधिपूर्ण (Lawful) होगा कि राज्‍य की सरकार को संवैधानिक उपबंधों के अनुासर नहीं चलाया जा सकता है और अनुच्‍छेद 356 के तहत उद्घोषणा करना विधिसंगत होगा।

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भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद 360(1) के अनुसार, यदि राष्‍ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि भारत या उसके किसी राज्‍यक्षेत्र के किसी भाग का वित्‍तीय स्‍थायित्‍व या साख संकट में है, तो वह देश में वित्‍तीय आपात की उद्घोषणा कर सकता है। ध्‍यातव्‍य है कि राष्‍ट्रपति के समाधान का अर्थ यहॉं मंत्रिपरिषद के समाधान से है।
आरंभ में उद्घोषणा दो माह तक प्रवृत्‍त रहती है, यदि दो माह की अवधि के भीतर संसद, साधारण बजुमत से  उद्घोषणा का अनुमोदन कर देती है तो उद्घोषणा अनिश्चित काल तक बनी रह सकती है। क्‍योंकि अनुच्‍छेद 360 में उद्घोषणा के लिये अधिकतम अवधि निर्धारित नहीं की गई है। यदि लोकसभा अस्तित्‍व में नहीं है तो अनुमोदन राज्‍यसभा द्वारा किया जाएगा और उद्घोषणा का नवगठित लोकसभा के द्वारा अपनी पहली बैठक के 30 दिनों के भीतर अनुमोदन आवश्‍यक है, अन्‍यथा 30 दिन की अवधि पूरी होते ही उद्घोषणा स्‍वत: समाप्‍त हो जाएगी।

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