जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 52 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।
धारा 53
सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 53 के अनुसार –
इस धारा के अनुसार पैतृक संपत्ति के दायित्व को बताया गया है। इसमे पुत्र या मरता के अन्य वंशज के हाथ मे जब कोई संपत्ति आती है तो मरता के ऋण को चुकाने के लिए भी वही पुत्र और वंशज उत्तरदाई होंगे जो उनकी संपत्ति को उनके मरने के बाद ले रहे होंगे। और जिसके लिए पहले से ही डिक्री पारित की जा चुकी है।
धारा 50 और धारा 52 मे इसका विवरण दिया गया है यह इस धारा के अनुसार ऐसा माना जाएगा की वह म्तक की ऐसे संपत्ति है जो की प्रतिनिधि के रूप मे उनके पुत्र और वंशज को प्राप्त हुई है।
धारा 54
सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 54 के अनुसार –
धारा 54 मे यह बताया गया है की किस प्रकार सम्पदा का विभाजन होगा –
इसके अनुसार जहा डिक्री किसी ऐसे अभिभूत संपदा के विभाजन के लिए है। जिस पर सरकार जो राजश्व देती है वह निर्धारित किया गया है।
वह सम्पदा जिसका अंश प्रथक प्रथक कब्जे के रूप मे प्रयोग हो रहा है। वह संपदा का विभाजन कलेक्टर के द्वारा किया जाएगा। या फिर किसी ऐसे राजपत्रित अधीनस्थ के हाथो से होगा जिसने इसका प्रतिनिधित्व किया हो।
ऐसे सम्पदा का विभाजन यदि कोई उस समय की विधि हो तो उसके अनुसार की जाएगी।
धारा 55
सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 55 के अनुसार-
यह धारा गिरफ्तारी और निरोध को बताती है।
इसके अनुसार निर्णीत ऋणी डिक्री के निष्पादन मे किसी भी समय और किसी भी दिन गिरफ्तार किया जा सकता है।
और गिरफ्तार करने के बाद जितना जल्दी हो सकेगा न्यायालय के समझ प्रस्तुत कर दिया जाएगा।
वह व्यक्ति जिला कारागार मे जहा उस स्थानीय क्षेत्र का न्यायालय स्थित हो वह निरोध किया जाएगा। अगर वह सुविधा नही है तो राज्य सरकार के द्वारा स्थापित कारागार मे जिसको राज्य सरकार ने व्यक्ति के निरोध के लिए स्थापित किया है वह निरोध किया जा सकता ही। जिसका आदेश जिला न्यायालय के द्वारा दिया जाएगा।
इस धारा के अनुसार किसी व्यक्ति को निरोध करने के लिए सूर्य उदय से पहले और सूर्य अस्त के बाद उसके घर से उसको निरोध नही कर सकता है।
इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति या अधिकारी किसी निर्णीत ऋणी के घर का बाहरी द्वार तब तक नही तोड़ सकते है जब तक की वह निवास घर ऋणी के अधिबोग मे न हो और वह अपने को सुपुर्द करने से माना नही करता हो परंतु यदि कोई अधिकारी गिरफ्तार करने के लिए पाहुच गया है और बाहरी द्वार पर प्रवेश कर लिया है तो वह अंदर का दरवाजा तोड़ सकता है यदि ऋणी सुपुर्द करने से माना कर रहा हो और अधिकारी को पता हो की वह इस स्थान पर या इस कमरे मे है।
यदि कमरा किसी स्त्री का है तो निर्णीत ऋणी का नही है तो गिरफ्तारी करने के लिए अधिकारी पहले उस स्त्र्री को सूचित करेगा और फिर उस स्त्री को वह से निकलने की सुविधा प्रदान करेगा और फिर वह गिरफ्तारी के लिए उस कमरे मे जा सकता है।
जहा पर डिक्री जिसका निष्पादन धन संदाय के लिए हुआ है और निर्णीत ऋणी डिक्री की रकम को गिरफ्तार व्यक्ति को दे देता है तो गिरफ्तार व्यक्ति को यह आज्ञा है की वह उसको तुरन छोड़ दे
राज्य सरकार अधिसूचना के द्वारा यह घोषणा करेगा की ऐसा कोई व्यक्ति जिसकी गिरफ्तारी से लोंगों को खतरा हो सकता है ऐसे व्यक्ति के गिरफ्तारी के लिए राज्य सरकार के लिए या डिक्री के निष्पादन के लिए राज्य सरकार भिन्न प्रक्रिया के अनुसार उसकी गिरफ्तारी करेगा जो राज्य सरकार द्वारा लिखित होगी। यह गिरफ्तारी किए जाने के दायित्व के अधीन नही होगा।
जब किसी निर्णायक ऋणी को धन संदाय के लिए डिक्री के निष्पादन के ईईए न्यायालय लाया गया है तो न्यायालय उसको बताएगा की वह दिवालिया घोषित होने के लिए आवेदन कर सकता है। और यदि वह व्ही पर आवेदन कर देता है तो उसी समय उसके दिवालिया विधि को अनुबन्धो के अनुसार अनुपालन करके उन्मोचित किया जा सकेगा।
यदि न्यायालय किसी व्यक्ति को धन संदाय के लिए गिरफ्तार करती है और वह व्यक्ति न्यायालय को बताता है की वह 1 माह के अंदर दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन कर देगा और वह अपना आशय न्यायालय को बताता है तो न्यायलय उसको डिक्री के निष्पादन समबन्धि जिसके संबंध मे वह बुलाया गया हो। और वह संजात होगा तब वहा न्यायालय उसको छोड़ देगी पर्न्त यदि वह न्यायालय के बुलाये जाने पर नही आता है तब न्यायलय उसको जिला कारागार मे सुपुर्द कर देगी।
धारा 56
सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 56 के अनुसार-
इस धारा के अनुसार यह बताया गया है की यदि धन की डिक्री के निष्पादन के संबंध मे स्त्री की गिरफ्तारी या निरोध कैसे किया जाएगा।
इस भाग मे यह बताया गया है की किसी बात के होते हुए भी न्यायालय यदि धन की डिक्री के निष्पादन के संबंध मे स्त्री की गिरफ्तारी या निरोध करने के संबंध मे सिविल कारागार मे निरूढ़ करने के लिए आदेश नही देगा।
धारा 57
सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 57 के अनुसार –
इस धारा मे सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार यह बताया गया है की जीवन निर्वाह भत्ता कैसे दिया जाएगा।
इसके अनुसार निर्णीत ऋणी को राज्य सरकार के द्वारा उनके जीवन निर्वाह के लिए संदेह मसिक भत्तो के मापमान और उनकी पंक्ति ,वंश और मूलवंश तथा राष्ट के अनुसार क्रम के अनुसार राज्य सरकार उनको नियत करेगी।
सिविल प्रक्रिया संहिता की कई धराये अब तक बता चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।
यदि आपको इन धारा को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धारा मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।
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