भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 63 से 66 (भारत का उपराष्ट्रपति) तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने राज्य के नीति निर्देशक तत्व का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

अनुच्छेद 63

भारत का एक उपराष्टपति होना आवश्यक होता है। भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है। और वह उपराष्टपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।

संवैधानिक व्यवस्था में उपराष्ट्रपति पद का धारक कार्यपालिका का भाग है परंतु उपराष्टपति राज्य सभा के सभापति के रूप में वह संसद का एक भाग है। इस प्रकार उपराष्ट्रपति की दोहरी भूमिका होती है और उपराष्टपति दो अलग-अलग और पृथक पद धारण करता है।
उपराष्ट्रपति का पद भारत के संविधान की एक महत्वपूर्ण पद है। जो की विश्व के लोकतांत्रिक संविधान वाले अन्य देशों में इसके जैसे समतुल्य कोई पद विद्यमान नहीं है। राष्ट्रमंडल देशों की अन्य संसदीय शासन प्रणालियों में ऐसा कोई पदविधमान नहीं है। विश्व के महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक देशों में संयुक्त राज्यअमेरिका का संविधान की एकमात्र ऐसा संविधान ही जो ऐसे पद का उपबंध करता है।

भारत के उपराष्ट्रपति का पद संयुक्त राज्य अमरीका में उपराष्ट्रपति के पद के समान है लेकिन यह संयुक्त राज्य अमरीका में उपराष्ट्रपति के पद के बिल्कुल अलग हैक्योकि अमेरिका में राष्ट्रपति शासन प्रणाली है न कि भारत की तरह संसदीय शासन प्रणाली। और फिर भी भारत के संविधान निर्माताओं ने मूलत: ब्रिटिश संसदीय प्रणाली का अनुसरण करते हुए अमरीकी प्रणाली को अपनाने का निर्णय लिया। और संयुक्त राज्य अमरीका के उपराष्ट्रपति के समान इस पर का उपबंध किया।

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भारत का उपराष्ट्रपति उच्च सदन की अध्यक्षता करते है। और यदि कोई आकस्मिक स्थितियों में राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।भारत के उपराष्ट्रपति को दोहरी व्यवस्था सौंपी गई है, उपराष्ट्रपति कार्यपालिका के दूसरे मुख्यिा के रूप में और संसद के उच्च सदन के पीठासीन अधिकारी के रूप में भी दोहरी भूमिका निभाते है।
यह इन दो पदों के धारक पर निश्चित रूप से भारी जिम्मेदारी पड़ती है। और उपराष्ट्रपति को दो ऐसे पदों के कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है जो भिन्न और पृथक हैं। सभापति अपने मन मस्तिष्क पर उपराष्ट्रपति की हैसियत से अर्जित ज्ञान का प्रभाव पड़ने नहीं दे सकते। उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उपराष्ट्रपति कोई काम नहीं कर सकता। जो सभापति के रूप में उसके दायित्वों पर गलत प्रभाव डाले।
भारत मे यह प्रक्रिया का सालो से निरवाह होता रहा है और विश्व मे इस दोहरी ज़िम्मेदारी से भारत को सम्मान और प्रतिस्ठा मिलती रही है।

अनुच्छेद 64

इस अनुच्छेद के अनुसार उपराष्ट्रपति जो की राज्य सभा का पदेन सभापति होगा । और उपराष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा। तथा जिस किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या फिर राष्ट्रपति के कार्यो का निर्वहन करता है। उस अवधि के दौरान वह राज्य मे राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह उपराष्ट्रपति अनुच्छेद 97 के अधीन राज्य सभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।

अनुच्छेद 65

इस अनुच्छेद के अनुसार यदि राष्ट्रपति की मॄत्यु, पद त्याग या पद से हटाए जाने अथवा अन्य कारण से राष्ट्रपति पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद संभालेंगे।
जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति होंगे या फिर बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कॄत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कॄत्यों का निर्वहन करेंगे। जिस तारीख को राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को वापस से संभाल लेंगे।
उपराष्ट्रपति को उस अवधि के दौरान और उस अवधि के संबंध में, जब वह राष्ट्रपति के रूप में इस प्रकार कार्य कर रहा है या राष्ट्रपति कॄत्यों का निर्वहन कर रहे होंगे तब राष्ट्रपति की सभी शक्तियां और उन्मुक्तियां होंगी तथा वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशाधिकारों का जो संसद्, विधि द्वारा, अवधारित करे, और जबतक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों , भत्तों और विशाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैंउप राष्ट्रपति उसके हकदार होंगे।

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अनुच्छेद 66

इस अनुच्छेद मे उप राष्ट पति के निर्वाचन के बारे मे बताया गया है। उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के द्वारा मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एक मत के द्वारा होता है। और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होता है। उपराष्ट्रपति के पद के लिए किसी व्यक्ति को निर्वाचित किए जाने हेतु निर्वाचकगण में संसद के दोनों सदनों के सदस्य होना आवश्यक होता है।

उपराष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का या किसी भी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होता है। बल्कि यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है। तो यह माना जाता है कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप मे अपने पद का त्याग कर दिया है।
कोई उप राष्टपति तभी बन सकता है जब उसमे निम्न गुण हो-

वह भारत का नागरिक है;

उसकी आयु पैंतीस वर्ष की आयु पूरी हो गयी हो

वह राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।

उसे भारत का नागरिक होना चाहिए, उसकी आयु 30 वर्ष की होनी चाहिए, उसे उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए । जहां से वह प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित होना चाहता है।

वह व्यक्ति जो भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन या किसी अधीनस्थ स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद ग्रहण करता है वह भी इसका पात्र नहीं होता है।

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उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाता है। यदि रिक्ति पद मृत्यु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हो रही है। तब उस रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन रिक्ति होने के पश्चात् यथाशीघ्र किया जाता है। इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति अपने पद ग्रहण की तारीख से पूरे पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण कर सकता है।

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