बैंकिंग कंपनी क्या होती है? भारत में बैंकिंग कंपनी कैसे स्थापित कर सकते है?

 बैंकिंग कंपनी ,बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949  के अनुसार पूरे देश में लागू होती है। इस अधिनियम के अलावा कुछ और भी अधिनियम हैं वे सभी एक पूरक अधिनियम के रूप में कार्य करते हैं।  जैसे नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (negotiable instrument act), कम्पनी एक्ट 1956( Companies Act 1956) जिसे बैंकिंग कंपनी एक्ट 1949 के रूप में पास किया गया था।  यह अधिनियम बैंकिंग कंपनी एक्ट 1949 के रूप में पारित  किया गया । था यह अधिनियम 16 मार्च 1949 को प्रकाश में आया था और यही अधिनियम 01 मार्च 1966 को बैंकिंग नियंत्रण अधिनियम (Banking Regulations Act 1949) के रूप में कार्य करने लगा।

बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 5 (सी) के अनुसार-

 “बैंकिंग कंपनी” का अर्थ है कि कोई भी कंपनी जो भारत में बैंकिंग कंपनी के व्यवसाय का लेन-देन करती है।इसमे बैंकिंग का अर्थ होता है, उधार देने या निवेश के उद्देश्य के लिए स्वीकार करना, जनता से धन जमा करना, मांग पर या अन्यथा चुकाना, और चेक, ड्राफ्ट, भुगतान आदेश या अन्यथा के द्वारा वापस लेने योग्य।

भारत के सभी बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक के  द्वारा  ग्राहकों की बेहतर देखभाल सुनिश्चित की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक भारत में बैंकों के कामकाज पर चौकस नजर रखता है । और प्रत्येक बैंकिंग ग्राहक के हितों की रक्षा के लिए जब भी आवश्यक होता है। और उसके लिए  सुधारात्मक कदम  भी उठता है।

बैंकिंग कंपनी का भारत मे प्रवेश –

भारत मे बैंक मुख्य निम्न  रूप से प्रवेश कर सकते है।

पार्लियामेंट के स्पेशल एक्ट के तहत कंपनी बना कर
कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार कंपनी बना कर

आरबीआई ने वर्ष 1993 के बाद से निजी क्षेत्र में सिर्फ 12 बैंकों को खोलने की इजाजत दी है। इससे पहले सभी सरकारी बैंक हुआ करते थे। केंद्रीय बैंक ने  सात साल से किसी भी नए निजी बैंक को अनुमति नहीं दी है। काफी समय  बाद एक बार फिर आरबीआई निजी क्षेत्र को बैंक लाइसेंस देगा। इसके लिए नए नियम बनाने का सिलसिला पिछले तीन वर्षो से चल रहा है।

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बैंकिंग कानून में संशोधन करने  से और पर्याप्त अधिकार मिलने के बाद आरबीआई ने नए बैंकों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इस नियमों से यह भी स्पष्ट हो गया है कि रीयल एस्टेट, सरकारी उपक्रम, शेयर ब्रोकिंग या बीमा क्षेत्र की कंपनियां भी बैंकिंग कारोबार कर  सकेंगी।

आरबीआई के इससे संबंधित कुछ नियम इस प्रकार है।

नए बैंकों को अपनी  शाखा का एक चौथाई शाखाएं 10 हजार से कम आबादी वाले गांवों में खोलनी होंगी। और प्राथमिक क्षेत्र और गैर प्राथमिक क्षेत्र को कर्ज बांटने संबंधी सभी नियमों का पालन करना होगा। बैंक खोलने के लिए इच्छुक कंपनी या समूह को एक पूर्ण स्वामित्व वाली गैर संचालित फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी स्थापित करनी होगी। जो कि   बैंक के अलावा  भी उस समूह के सभी अन्य वित्तीय गतिविधियों वाले कारोबार की मुख्य हिस्सेदारी इस एनओएफएचसी के पास ही होनी चाहिए। लेकिन समूह की अन्य किसी भी अन्य सहयोगी कंपनी के पास बैंक की दस फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए। बैंक के निदेशक बोर्ड में अनिवार्य रूप से आधे स्वतंत्र विशेषज्ञ सदस्य होने चाहिए।

स्वतंत्रता के समय, संपूर्ण बैंकिंग क्षेत्र निजी स्वामित्व में था। देश की ग्रामीण आबादी को अपनी आवश्यकताओं के लिए छोटे  उधारदाताओं पर निर्भर होना पड़ता था । इन मुद्दों को हल करने और अर्थव्यवस्था का बेहतर विकास करने के लिए भारत सरकार ने 1949 में भारतीय रिज़र्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया ।
1955 में इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण हुआ उसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का नाम दिया गया।
1949 में बैंकिंग विनियमन अधिनियम (Banking Regulation Act,1949) लागू किया गया ।
राष्ट्रीयकरण अवधि (1969 से 1991)

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सन 1969 मे भारत सरकार ने 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया
जिन बैंक की  जमा-पूंजी 50 करोड़ से अधिक थी । बैंकों की सूची इस प्रकार है।
इलाहाबाद बैंक
बैंक ऑफ इंडिया
पंजाब नेशनल बैंक
बैंक ऑफ बड़ौदा
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
कैनरा बैंक
देना बैंक
इंडियन ओवरसीज बैंक
इंडियन बैंक
संयुक्त बैंक
सिंडिकेट बैंक
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
यूको बैंक

राष्ट्रीयकरण के बाद  भारत मे भारतीय बैंकिंग प्रणाली बेहद विकसित हुई लेकिन  उस समय भी समाज के ग्रामीण, कमजोर वर्ग और कृषि को अभी भी सिस्टम के तहत कवर नहीं किया गया था।

और इसके लिए 1974 में नरसिंहम समिति ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) की स्थापना की सिफारिश की थी। 2 अक्टूबर 1975 को, आरआरबी को ग्रामीण और कृषि विकास के लिए ऋण की मात्रा बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।

वर्ष 1980 में छह और बैंकों को  राष्ट्रीयकृत किया गया। तथा ऋण देने का लक्ष्य भी 40% तक बढ़ाया गया।
आंध्र बैंक
निगम बैंक
नई बैंक ऑफ इंडिया
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स
पंजाब एंड सिंध बैंक
विजया बैंक

एक बैंकिंग कंपनी के लिए बिजनेस की अनुमति यह बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 की   (धारा 6) मे बताया गया है जिसके अनुसार निम्न शर्त होना आवश्यक होता है।

बिना सुरक्षा के उधार देना/ और पैसों को उधार पर प्राप्त करना,यात्री चेक और विदेशी मुद्रा नोट को जारी करना. और, जमा पूंजी को खरीदना और और उसे हस्तांतरित करना एवं सिक्योरिटी(बांड और अन्य प्रतिभूतियों) को ग्राहकों की ओर से खरीदना शामिल है।
 प्रत्येक प्रकार के गारंटी का कारोबार करना और वित्तीय कार्यों एवं क्षतिपूर्ति व्यापार को सम्पादित करना आदि आता है।  
बेचना, प्रबंधन करना बैंक के संपत्ति के दावों को जोकि उसके कब्जे के सन्दर्भ में प्राप्त किये जाने अत्यावश्यक हो ऐसा कार्य  करना आता है।
 ट्रस्टों के उपक्रमो के सभी कार्यों को सम्पादित करना शामिल होता है।
 कंपनी के विकास और बढ़ोत्तरी के लिए आवश्यक कार्यों को सम्पादित करना और  साथ ही उसकी प्रगति के लिए कार्य करना भी इसमे आता है।
व्यापारिक गतिविधियों को अंजाम देना ताकि   सरकार के अधिसूचनाओं में दिए गए जो भी नियम  हों और वह उसके द्वारा परिभाषित किये गए हो।

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