भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 155 से 161 तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 155  तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

अनुच्छेद 155

इस अनुच्छेद मे राज्यपाल की नियुक्ति को बताया गया है।

राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाएगी तथा यह भारत का संविधान संघात्मक है। इसमें संघ तथा राज्यों के शासन के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। यह राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल (गवर्नर) होता है। और यह मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है।इस अनुसार राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र के द्वारा नियुक्त करेगा।

अनुच्छेद 156

इस अनुच्छेद मे 156(1) के अनुसार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल के बीच परस्पर संबंध के तौर पर संविधान में अनुच्छेद 155 को बताया जाता है। और यह कहता है कि राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा।

अनुच्छेद 156 (1) के अनुसार  राष्ट्रपति की अनुशंसा या प्रसादपर्यंत (सामान्य भाषा में राष्ट्रपति की प्रसन्नता) पर ही राज्यपाल पद ग्रहण करेगा।  यानी कि राष्ट्रपति की इच्छा समाप्त होने के बाद राज्यपाल का पद निरस्त कर दिया जाएगा।

राष्ट्रपतियों द्वारा ऐसे फैसले कम ही मौकों पर लिए गए हैं। इसका एक उदाहरण  डॉ. किरण बेदी के मामले में लिया गया जिसमे राष्ट्रपति के प्रेस सचिव की संक्षिप्त अधिसूचना जारी करना यह बताता है कि इस फैसले में किरण बेदी को राज्यपाल पद से हटाए जाने में राष्ट्रपति की मौन सहमति रही है।

See Also  भारत का संविधान अनुच्छेद 236 से 240 तक Constitution of India Article 236 to 240

यह यह राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि वह इस अनुच्छेद को कब और कैसे तथा कहा प्रयोग करते हैं।

(2) राज्यपाल राष्ट्रपति के कहने पर उनको संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

(3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन रहते हुएयह कहा जा सकता है कि  राज्यपाल अपने पदग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा।

परन्तु राज्यपालयदि  अपने पद की अवधि समाप्त हो गयी है फिर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।

अनुच्छेद 157

इस अनुच्छेद मे यह बताया गया है कि राज्यपाल की नियुक्ति की आहर्ताए क्या क्या होगी।

इस अनुच्छेद के अनुसार कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है । और उसने पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर लिया हो।

अनुच्छेद 158

इस अनुच्छेद मे राज्यपाल पद के लिए शर्तें दी गयी है जिसके अनुसार –

(1) राज्यपाल संसद के किसी सदन का या फिर पहली अनुसूची मेंकाही गयी बाटो के अनुसार किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा । और यदि संसद के किसी सदन का या ऐसे किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है । तो ऐसा माना  जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है ।

(2) राज्यपाल अपने पद के अतिरिक्त अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा ।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 221 से धारा 223 का विस्तृत अध्ययन

(3) राज्यपाल बिना किराया दिए अपने शासकीय निवासों के उपयोग कर सकता है।  और ऐसी उपलब्धियोंया  भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा, बताई गयी है। और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबन्ध नहीं किया जाता है । तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैंउसका  हकदार होगा ।

(3क) जहां एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है।  उस स्थित मे उस   राज्यपाल को संदेय उपलब्धियाॅं और भत्ते उन राज्यों के बीच इस प्रकार से अनुपात में आवण्टित किये जायेंगे जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे ।
(4) राज्यपाल की उपलब्धियाॅं और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जा सकते है।

अनुच्छेद 159

इस अनुच्छेद मे राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञानको बताया गया है।  जिसके अनुसार प्रत्येक राज्यपाल और प्रत्येक व्यक्ति जो राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है। या फिर अपना पद ग्रहण करने से पहले उस राज्य के सम्बन्ध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा और  प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

जो इस प्रकार होगा।
”मैं अमुकव्यक्ति ——— ईश्वर की शपथ लेता हॅूं /सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हॅंू कि मैं श्रद्धापूर्वक ……………. (राज्य का नाम) के राज्यपाल के पद का कार्यपालन (अथवा राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन) करूॅंगा । तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूॅंगा । और मैं …………… (राज्य का नाम) की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 201 से धारा 205 का विस्तृत अध्ययन

अनुच्छेद 160

इस अनुच्छेद के अनुसार कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन को बताया गया है।

इस अनुच्छेद के अनुसार  राष्ट्रपति ऐसे किसी आकस्मिकता में जो कि  इस अध्याय में उपबन्धित नहीं है। उस  राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है ।

अनुच्छेद 161

इस अनुच्छेद के अनुसार  क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति को बताया ज्ञ है ।

 किसी राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार हुआ है। या  किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये गये किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा या  उसका प्रविलम्बनया  विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलम्बन परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त  होगी ।

यदि आपको इन को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स  जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है।  कृपया हमें कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो आप उससे संबन्धित जानकारी भी ले सकते है।

Leave a Comment