भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 162 से 167 तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 161तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

अनुच्छेद 162 

इस अनुच्छेद मे राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार को बताया गया है। 

इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए यदि किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों पर होगा जिनके संबंध में उस राज्य के विधान-मंडल को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है। 
परंतु जिस विषय के संबंध में राज्य के विधान-मंडल और संसद को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है। तो उसमें राज्य की कर्यपालिका शक्ति इस संविधान द्वारा या फिर  संसद के द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या संघ या उसके प्राधिकारियों को अभिव्यक्त रूप से प्रदत्त कार्यपालिका शक्ति के अधीन और उससे परिसीमित होगी।
अनुच्छेद 163-इस अनुच्छेद मे राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्री-परिषद के बारे मे बताया गया है।

(1) इस संविधान के द्वारा या इसके अधीन जिन बातो को राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार कार्य करे। उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद् का गठन होगी और जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है।(2) यदि कोई प्र्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है। या नहीं जिसके सम्बन्ध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे तो ऐसे स्थित मे राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंतिम होगा। और राज्यपाल द्वारा की गयी किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी। कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं ।(3) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जाॅंच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दिया नही यदि किसी मंत्री के द्वारा कोई सलाह दी गयी थी तो वह क्या थी।

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अनुच्छेद 164

इस अनुच्छेद के द्वारा मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध को बताया गया है।

(1) मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा होगी। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर होगा। तथा मंत्री जो कि राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे । परन्तु (छत्तीसगढ़, झारखण्ड)और मध्य प्रदेश तथा (उड़ीसा) राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भारसाधक हो सकेगा ।

(1क) किसी राज्य की मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री को शामिल करते हुए मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पन्द्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी । परन्तु किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या बारह से कम नहीं होगी । परन्तु यह कहा जा सकता है कि जहां संविधान (इक्यानबेवां संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारम्भ पर किसी राज्य की मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित की कुल संख्या जो कि उस वक्त उक्त पन्द्रह प्रतिशत या पहले परन्तुक में विनिर्दिष्ट संख्या से अधिक है । वहां उस राज्य मंत्रियों की कुल संख्या ऐसी तारीख से जो राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा नियत करेउसके अनुसार छह मास के भीतर इस खण्ड के उपबन्धों के अनुरूप लाई जाएगी ।

(1ख) किसी राजनीतिक दल का किसी राज्य की विधान सभा या किसी राज्य के विधानमंडल के द्वारा किसी सदन का जिसमें विधान परिषद हैं। यदि कोई सदस्य जो दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हता है। वह अपनी निरर्हता की तारीख से प्रारम्भ होने वाली और उस तारीख तक जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी। या जहां वह ऐसी अवधि की समाप्ति के पूर्व यथास्थिति, किसी राज्य की विधान सभा के लिए या विधान परिषद् वाले किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन के लिए कोई निर्वाचन लड़ता है। तो उस तारीख तक जिसको वह निर्वाचित घोषित किया जाता है। या फिर इनमें से जो भी पूर्वतर होउसकी अवधि के दौरानउस खण्ड (1) के अधीन मंत्री के रूप में नियुक्त किये जाने के लिए भी निरर्हित होगा ।

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(2) मंत्रि-परिषद राज्य की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी ।

(3) किसी मंत्री के द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले यदि राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्रारूप के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा ।

(4) कोई मंत्री जो निरन्तर छह मास की किसी अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है। और उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा ।

(5) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो उस राज्य का विधानमंडल विधि के द्वारा समय-समय पर आधारित करे और जब तक उस राज्य का विधानमंडल इस प्रकार अवधारित नहीं करता है । तब तक ऐसे होंगे जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं ।

अनुच्छेद 165

इस अनुच्छेद के राज्य का महाधिवक्ता को बताया गया है।

(1) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल जो कि उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा ।

(2) महाधिवक्ता का यह कर्तव्य होगा कि वह उस राज्य की सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्य का पालन करे । जो कि राज्यपाल के द्वारा उसका समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गये हों ।
(3) महाधिवक्ता जो कि राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राज्यपाल अवधारित करे ।

अनुच्छेद 166

इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य की सरकार के कार्य का संचालन को बताया गया है।

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(1) किसी राज्य की सरकार की समस्त कार्यपालिका की कार्यवाही राज्यपाल के नाम से की हुई कहीं जाएगी ।

(2) राज्यपाल के नाम से किये गये और निष्पादित देशों और अन्य लिखतों को ऐसी रीति से अधिप्रमाणित किया जाएगा। जो कि राज्यपाल के द्वारा बनाये जाने वाले नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए । और इस प्रकार अभिप्रमाणित आदेश या लिखत की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह राज्यपाल द्वारा किया गया या निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है ।

(3) राज्यपाल जो कि राज्य की सरकार का कार्य अधिक सुविधा पूर्वक किये जाने के लिए और जहाॅं तक वह कार्य ऐसा कार्य नहीं है । जिसके विषय में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है। कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे वहाॅं तक मंत्रियों में उक्त कार्य के आवेदन के लिए नियम बनाएगा ।

अनुच्छेद 167

इस अनुच्छेद मे राज्यपाल को जानकारी देने आदि के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य को बताया गया है।
 प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य होता है कि वह –

(क) राज्य के कार्यों के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं से सम्बन्धित मंत्रि-परिषद के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करे । 

(ख) राज्य के कार्यों के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं सम्बन्धी जोजानकारी राज्यपाल मांगे वह समय से दे दिया जाना चाहिए।

(ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने यदि विनिश्चय कर दिया है। किन्तु मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है। तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किये जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे ।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है। कृपया हमें कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो आप उससे संबन्धित जानकारी भी ले सकते है।

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