भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 147 से 154 तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 146  तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

अनुच्छेद  147

इस अनुच्छेद के अनुसार निर्वाचन को बताया गया है।
इस अध्याय के अनुसार  तथा भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के अधीन जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक  कोई अधिनियमिति रहते हुए  अथवा किसी सपरिषद आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वाचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देश हैं ।

अनुच्छेद 148

इस अनुच्छेद के अनुसार भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को बताया गया है।

इस अनुच्छेद के अनुसार भारत के एक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक होगा।  जिसका राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा और उसे उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्ही आधारों के द्वारा  हटाया जाएगा जिस रीति से या जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।

प्रत्येक वह  व्यक्ति जो भारत का नियंत्रक-महालेखा परीक्षक नियुक्त किया जाता है। उसको  पदग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष  जो कि तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा।  और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का वेतन और सेवा की अन्य शर्ते उस प्रकार होगी।  जो संसद के द्वारा  विधि द्वारा अवधारित करें और जब तक वे इस प्रकार अवधारित नहीं की जाती है तब तक ऐसी होगी जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।

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 परन्तु न तो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के वेतन में और न ही अनुपस्थिति छुट्टी पेंशन या निवृत्ती की आयु के संबंध में उसके अधिकारों में उसी नियुक्तिम के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को अपने पद पर न रह जाने के पश्चात या तो सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी और पद का पात्र नहीं होगा।

इस संविधान के और संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए कोई भी  भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग में सेवा करने वाले व्यक्तियों की सेवा शर्तें और नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की प्रशासनिक शक्तियां इस प्रकार से होगी  जो नियंत्रक-महालेखा परीक्षक से परामर्श करने के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाए।

नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, के अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों को या उनके संबंध सभी में देय वेतन, भत्ते और पेंशन आदि आता है वह  भारत की संचित निधि पर भारित होंगे।

अनुच्छेद 149

इस अनुच्छेद के अनुसार  भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कर्तव्य एवं शक्तियां को बताया गया है।
इसके अनुसार नियंत्रक-महालेखा परीक्षक संघ के और राज्यों के तथा अन्य किसी प्राधिकारी या निकाय के लेखाओं के संबंध में  संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किया जाए इस प्रकार के  कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा ।  जब तक इस निमित्व इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता तब तक संघ के औरा राज्यों के लेखाओं के संबंध में ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करता रहेगा।  जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमश: भारत डोमिनियन के और प्रांतों के लेखाओं के संबंध में भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को प्रदान की गयी  थी या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य थीं।

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अनुच्छेद 150

इस अनुच्छेद के अनुसार संघ के और राज्यों के लेखाओं का प्रारूप को बताया गया है।
संघ के और राज्यों के लेखाओं को ऐसे प्रारूप में  इस प्रकार से रखा जाएगा जो राष्ट्रपति के द्वारा  भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श के पश्चात विहित करें।

अनुच्छेद 151

इस अनुच्छेद मे लेखा परीक्षा प्रतिवेदन को बताया गया है।

इसके अनुसार भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक की संघ के लेखाओं संबंधी रिपोर्ट को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा । और उन्हीं के अनुसार जो उनको संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की किसी राज्य के लेखाओं  से संबंध रिपोर्टों को राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा जो कि उनको उस राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा।

अनुच्छेद 152

इसमे परिभाषा दी गयी है।

इस भाग मेंयह कहा गया है कि  जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो \”राज्य\” पद  के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य नहीं है।
इसमे निम्न संशोधन किया गया है।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “का अर्थ प्रथम अनुसूची के भाग क में उल्लिखित राज्य है” के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया है।

अनुच्छेद 153

इस अनुच्छेद के अनुसार राज्यों के राज्यपाल को बताया गया है।

इसके अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा ।
परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल नियुक्त  किए जाने से निवारित नहीं  करेगी ।
इसमे निम्न संविधान संशोधन किया गया है।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 6 के द्वारा जोड़ा गया।

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अनुच्छेद 154

इस अनुच्छेद मे राज्य की कार्यपालिका शक्ति को बताया गया है।

राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी ।और राज्यपाल इसका प्रयोग  इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।

 इस  अनुच्छेद के अनुसार की गयी कोई बात –
(क) किसी विद्यमान विधि के  द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य जो कि  राज्यपाल को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी।  या
(ख) राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कार्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान-मंडल को निवारित नहीं करेगी।

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