जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 173 तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
अनुच्छेद 174
इस अनुच्छेद मे राज्य के विधान–मंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन को बताया गया है।
(1) राज्यपाल जो कि समय-समय पर राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जहा वह जो वह ठीक समझे। अधिवेशन के लिए आहूत कर सकता है। किंतु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा ।
(2) राज्यपाल , समय-समय पर –
(क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ।
(ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा ।
अनुच्छेद 175
इस अनुच्छेद के अनुसार सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार को बताया गया है।
(1) राज्यपाल जो कि विधान सभा में या विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में उस राज्य के अनुसार विधान-मंडल के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में वह अभिभाषण कर सकेगा । तथा इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा ।
(2) राज्यपाल किसी भी राज्य के विधान-मण्डल में उस समय लम्बित किसी विधेयक के सम्बन्ध में संदेश या फिर कोई अन्य संदेश जो कि उस राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों को भेज सकेगा । और जिस सदन को कोई संदेश भेजा गया है तो वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा ।
अनुच्छेद 176
इस अनुच्छेद के अनुसार सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल के अभिभाषण को बताया गया है।
(1) राज्यपाल जो कि विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् जो कि प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के सुरू मे विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा । और विधान-मंडल को उसके आह्वान के कारण बताएगा ।
(2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों के द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए उसका उपबंध करेगा।
अनुच्छेद 177
इस अनुच्छेद के अनुसार सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार को बताया गया है।
इसके अनुसार प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होता है कि वह उस राज्य की विधानसभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोल सकते है और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले सकते है और विधान-मंडल की किसी समिति में जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है। वह पर वह भाषण दे सकते है। और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले सकते है। किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
यह सदनो के सम्मान में मंत्रियों तथा महाधिवक्ता के अधिकारों के साथ संबंध रखता है। तथा महाधिवक्ता राज्य का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है।और वह सभी कानूनी मामलों में राज्य सरकार की सहायता के लिए जिम्मेदार है।और वह राज्य सरकार के हितों का बचाव तथा रक्षा करता है| और राज्य के महाधिवक्ता का कार्यालय भारत के अटॉर्नी जनरल के कार्यालय से समान ही होता है।
अनुच्छेद 178
इस अनुच्छेद के अनुसार विधान सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बारे मे बताया गया है।
इसके अनुसार प्रत्येक राज्य की विधान सभा जो कि जितना शीघ्र हो सकता है अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है । तब-तब विधान सभा किसी अन्य सदस्य को जितना जल्दी हो सकता अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी ।
अनुच्छेद 179
इस अनुच्छेद के अनुसार अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया जाना आदि को बताया गया है।
इसके अनुसार विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति –
(क) यदि विधान सभा का सदस्य नहीं रहता है । तो वह अपना पद रिक्त कर देता है।
(ख) किसी भी समय जब यदि वह सदस्य अध्यक्ष है। तो वह उपाध्यक्ष को संबोधित और यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित वह अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
(ग) विधान सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प के द्वारा वह अपने पद से हटाया जा सकेगा ।
परंतु खंड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना पहले से न दे दी गई हो । परंतु यह और कि जब कभी विधान सभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात् होने वाले विधान सभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा ।
विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला व्यक्ति –
(क) यदि वह विधान सभा का सदस्य नहीं रहता है तो वह अपना पद रिक्त कर देगा ।
(ख) किसी भी समय यदि वह सदस्य अध्यक्ष होता है । तो उपाध्यक्ष को संबोधित कर सकता है और यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
(ग) विधान सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प के द्वारा वह अपने पद से हटाया जा सकेगा ।
परंतु खंड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा । जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन पूर्व की सूचना न दे दी गई हो । परंतु यह और कि जब कभी विधान सभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात् होने वाले विधान सभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा ।