भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 171 से 173 तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 170 तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

अनुच्छेद 171

इस अनुच्छेद के अनुसार विधान परिषदों की संरचना को बताया गया है।

(1)- विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद मे कुल सदस्यो कि संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई भाग से अधिक नहीं होगी।

परंतु यदि किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में चालीस से कम नहीं होनी चाहिए।

(2)- जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा किसी अन्य उपबंध के द्वारा न न करे । तब तक किसी राज्य की विधान परिषद की संरचना खंड3 में उपबंधित रीति से होगी।

(3)- किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या का-

(क)- निकटतम एक-तिहाई भाग उस राज्य की नगरपालिकाओंतथा जिला बोर्र्डों और अन्य ऐसे स्थानीय प्राधिकारियों के अंतर्गत जो संसद विधि द्वारा विनिर्दिष्ट करे या फिर सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा।

(ख)- निकटतम बारहवाँ भाग उस राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों के द्वारा निर्वाचित होगा। जो कि भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विश्वविद्यालय मे कम से कम तीन वर्ष से स्नातक हैं । या फिर जिनके पास कम से कम तीन वर्ष से ऐसी अर्हताएँ हैं जो संसद के द्वारा बनाई गई किसी विधि या उसके अधीन ऐसे किसी विश्वविद्यालय के स्नातक की अर्हताओं के समतुल्य विहित की गई हों।

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(ग)-जिसका निकटतम बारहवाँ भाग ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों के द्वारा निर्वाचित होगा जो कि राज्य के भीतर माध्यमिक पाठशालाओं मे से निम्न स्तर की ऐसी शिक्षा संस्थाओं में जो संसद के द्वारा बनाई गई है। या फिर किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएँ। जिसको पढ़ाने के काम में कम से कम तीन वर्ष से लगे हुए हैं।

(घ)- जिसका निकटतम एक-तिहाई भाग राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से निर्वाचित होगा जो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं।

(ङ)- शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खंड 5 के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किए जाएँगे।

(4)- खंड 3 के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग) के अधीन निर्वाचित होने वाले सदस्य ऐसे किसी प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में चुने जाएँगे जो कि संसद के द्वारा बनाई गई विधि या फिर उसके अधीन विहित किए जाएं तथा उक्त उपखंडों के और उक्त खंड के उपखंड (घ) के अधीन निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के द्वारा होंगे।

(5)- राज्यपाल के द्वारा खंड 3 के उपखंड (ङ) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया है।

इसमे निम्न संविधान संशोधन हुआ है।

संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 10 के द्वारा ” एक चौथाई” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

अनुच्छेद 172

इस अनुच्छेद के अनुसार राज्यों के विधान–मंडलों की अवधि को बताया गया है।

(1)- प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभाजो कि यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो वह अपने प्रथमअधिवेशन के लिए नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी । इससे अधिक आवधि के लिए नही । इस अवधि की समाप्ति का परिणाम विधान सभा का विघटन होगा । परंतु उक्त अवधि को जब आफात् की उद्घोषणा प्रवर्तन में है। तब संसद् विधि के द्वारा ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकती है। जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् किसी भी दशा में उसका विस्तार छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा ।

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(2)- राज्य की विधान परिषद का विघटन नहीं होगा। किंतु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक -तिहाई सदस्य संसद् द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त बनाए गए उपबंधों के अनुसार उसको प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवॄत्त हो जाएंगे। विधान परिषद का चुनाव एक ही समय नहीं होता । उसका चुनाव हर दो वर्ष पश्चात इसके एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते है । और उनके स्थान पर नये सदस्य चुने जाते है। अतः विधान परिषद का हर सदस्य छः साल तक अपने पद पर आसीन रहता है।

अनुच्छेद 173

इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य के विधान–मंडल की सदस्यता के लिए अर्हता को बताया गया है।

विधानमंडल के सदस्यों की निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए।

सभी प्रत्याशी भारत का नागरिक होना चाहिए।
विधानसभा के लिए उसकी आयु 25 वर्ष या उससे अधिक होना चाहिए। तथा विधान परिषद के लिए उसकी आयु 30 वर्ष या उससे अधिक होना चाहिए।
वह संसद के द्वारा निश्चित सभी योग्यताएं रखता हो।
वह भारत सरकार व राज्य सरकार के अधीन किसी भी लाभ केे पद पर आसीन न हो।
वह किसी न्यायालय के द्वारा पागल घोषित न किया गया हो।
वह किसी न्यायालय के द्वारा दिवालिया न घोसित किया गया हो।
वह संसद के द्वारा बनाये गये किसी कानून के अनुसार विधान सभा के लिए अयोग्य न हो ।

इन योग्यताओं के अतिरिक्त भी यदि कोई भी व्यक्ति विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य एक साथ नहीं रह सकता और न ही एक से अधिक राज्यों की विधान मंडलों का सदस्य बन कर रह सकता है।इसके लिए चुनाव के पश्चात कोई भी सदस्य की अनुमति के विना लगातार 60 दिन सदन के अधिवेशन से अनुपस्थित नहीं रह सकताहै।

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साथ ही विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए यह भी आवश्यक है कि सम्बद्ध व्यक्ति ’जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951’ की सभी शर्तो को पूरा करता हो । 1988 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इस संविधान मे ऐसी व्यवस्था की गयी कि आतंकवादी गतिविधियों, तस्करी, जमाखोरी, मुनाफाखोरी खाद्य-पदार्थो, तथा दवाओं में मिलावट करने वाले और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार करने वाले व्यक्तियों को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार चुनाव में भाग लेने से वर्जित कर दिया जाता है।

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