भारत का संविधान अनुच्छेद 191  से 195  तक

जैसा की आप सबको पता ही है कि भारत का संविधान अनुच्छेद 185 से लेकर के 190  तक हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। इस पोस्ट पर हम भारत का संविधान अनुच्छेद 191  से लेकर के 195   तक आप को बताएंगे अगर आपने इससे पहले के अनुच्छेद नहीं पढ़े हैं तो आप सबसे पहले उन्हें पढ़ ले जिससे कि आपको आगे के अनुच्छेद पढ़ने में आसानी होगी।

अनुच्छेद 191

सदस्यता के लिए निरर्हताएं—

जिसके अनुसार —

(1) कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हता होगा-

(क) यदि वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना राज्य के विधान-मंडल ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है।
(ख) यदि वह विकृत चित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है।
(ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है।
(घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ती को अभिस्वीकार किए हुए है।
(ङ) यदि वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है।

इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार से है  – इस खंड के प्रयोजनों के लिए—

 कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है।

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 कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का सदस्य होने के लिए निरर्हता होगा, यदि वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है।

अनुच्छेद 192

सदस्यों की निरर्हताओं से सम्बन्धित प्रश्नों पर विनिश्चय:
(1) यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 191 के खण्ड (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राज्यपाल को विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अन्तिम होगा ।
(2) ऐसी किसी प्रश्न पर विनिश्चय करने से पहले राज्यपाल निर्वाचन आयोग की राय लेगा और ऐसी राय के अनुसार कार्य करेगा ।

अनुच्छेद 193

अनुच्छेद 188 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या अर्हित न होते हुए या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति

यदि किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् में कोई व्यक्ति अनुच्छेद 188 की अपेक्षाओं का अनुपालन करने से पहले, या यह जानते हुए कि मैं उसकी सदस्यता के लिए अर्हित नहीं हूं या निरर्हित कर दिया गया हूं या संसद् या राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों द्वारा ऐसा करने से प्रतिषिद्ध कर दिया गया हूं, सदस्य के रूप में बैठता है या मत देता है तो वह प्रत्येक दिन के लिए जब वह इस प्रकार बैठता है या मत देता है, पांच सौ रुपए की शास्ति का भागी होगा जो राज्य को देय ऋण के रूप में वसूल की जाएगी।

अनुच्छेद 194

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विधान-मंडलों के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार, आदि

(1) इस संविधान के उपबंधों के और विधान-मंडल की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुएजो कि  प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल में वाक्-स्वातंत्र्य होगा।

(2) राज्य के विधान-मंडल में या उसकी किसी समिति में विधान-मंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुंद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।  और किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन पत्र तथा  मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

(3) अन्य बातों में राज्य के विधानमंडल के किसी सदन की और ऐसे विधानमंडल के किसी सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्ति ऐसी होंगी जो कि वह विधानमंडल, समय-समय पर विधि द्वारा परिनिश्चित करें । और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्चित नहीं की जाती हैं। तब तक वही होंगी, जो संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 26 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।

(4) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर राज्य के विधानमंडल के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार वे उस विधान-मंडल के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं।

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अनुच्छेद 195

सदस्यों के वेतन और भत्ते

राज्य की विधान सभा और विधान परिषद के सदस्य ऐसे वेतन और भत्ते, जिन्हें उस राज्य का विधानमंडल, समय-समय पर, विधि द्वारा समय समय पर  अवधारित करे और जब तक इस संबंध में इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है।  तब तक ऐसे वेतन और भत्ते, ऐसी दरों से और ऐसी शर्तों पर, जो तत्स्थानी प्रांत की विधान सभा के सदस्यों को इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू थी उसको  प्राप्त करने के हकदार होंगे। I

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