जैसा की आप सबको पता ही है कि भारत का संविधान अनुच्छेद 191 से लेकर के 195 तक हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। इस पोस्ट पर हम भारत का संविधान अनुच्छेद 196 से लेकर के 200 तक आप को बताएंगे अगर आपने इससे पहले के अनुच्छेद नहीं पढ़े हैं तो आप सबसे पहले उन्हें पढ़ ले जिससे कि आपको आगे के अनुच्छेद पढ़ने में आसानी होगी।
अनुच्छेद 196
विधेयकों के पुर स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध को बताता है।
(1) धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 198 और अनुच्छेद 207 के उपबंधों के अधीन रहते हुए जब कोई विधेयक विधान परिषद वाले राज्य के विधानमंडल के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा।
(2) अनुच्छेद 197 और अनुच्छेद 198 के उपबंधों के अधीन रहते हुए जब कोई विधेयक विधान परिषद वाले राज्य के विधानमंडल के सदनों द्वारा तब तक पारित किया गया नहीं समझा जाएगा । जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए हैं । उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते हैं।
(3) किसी राज्य के विधानमंडल में लंबित विधेयक उसके सदन या सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा।
(4) किसी राज्य की विधान परिषद में लंबित विधेयक जिसको विधान सभा ने पारित नहीं किया है विधान सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा।
(5) कोई विधेयक जो किसी राज्य की विधान सभा में लंबित है या जो विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और विधान परिषद् में लंबित है विधान सभा के विघटन पर व्यपगत हो जाएगा।
अनुच्छेद 197
धन विधेयकों से भिन्न विधेयकों के बारे में विधान परिषद की शक्तियों पर निर्बंधन
(1) यदि विधान परिषद वाले राज्य की विधानसभा द्वारा किसी विधेयक के पारित किए जाने और विधान परिषद को प्रेषित किए जाने के पश्चात्–
(क) विधान परिषद द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया जाता है। या
(ख) विधान परिषद के समक्ष विधेयक रखे जाने की तारीख से तथा उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना, तीन मास से अधिक बीत गए हैं। या
(ग) विधान परिषद द्वारा विधेयक ऐसे संशोधनों सहित पारित किया जाता है जिनसे विधानसभा सहमत नहीं होती है।
तो विधानसभा विधेयक को, अपनी प्रक्रिया का नियमन करने वाले नियमों के अधीन रहते हुए, उसी या किसी पश्चात्वर्ती सत्र में ऐसे संशोधनों सहित या उसके बिना, यदि कोई हों जो विधान परिषद ने किए हैं। सुझाए हैं या जिनसे विधान परिषद सहमत है, पुनः पारित कर सकेगी और तब इस प्रकार पारित विधेयक को विधान परिषद को प्रेषित कर सकेगी।
(2) यदि विधानसभा द्वारा विधेयक इस प्रकार द्वारा पारित कर दिए जाने और विधान परिषद को प्रेषित किए जाने के पश्चात —
(क) विधान परिषद द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया जाता है। या
(ख) विधान परिषद के समक्ष विधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना, एक मास से अधिक बीत गया है। या
(ग) विधान परिषद द्वारा विधेयक ऐसे संशोधनों सहित पारित किया जाता है जिनसे विधानसभा सहमत नहीं होती है।
तो विधेयक राज्य के विधानमंडल के सदनों द्वारा ऐसे संशोधनों सहित यदि कोई हों तो जो विधान परिषद ने किए हैं या सुझाए हैं और जिनसे विधानसभा सहमत है, उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधानसभा द्वारा दुबारा पारित किया गया था।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी।
अनुच्छेद 198
धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
(1) धन विधेयक विधान परिषद में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।
(2) धन विधेयक विधान परिषद वाले राज्य की विधानसभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात विधान परिषद को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और विधान परिषद विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित विधानसभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर विधानसभा, विधान परिषद की सभी या किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी।
(3) यदि विधानसभा, विधान परिषद की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है . तो धन विधेयक विधान परिषद द्वारा सिफारिश किए गए और विधानसभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा।
(4) यदि विधानसभा, विधान परिषद की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक विधान परिषद द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधानसभा द्वारा पारित किया गया था।
(5) यदि विधानसभा द्वारा पारित और विधान परिषद को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर विधानसभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधानसभा द्वारा पारित किया गया था।
अनुच्छेद 199
धन विधेयक” की परिभाषा
(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात् —
(क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन;
(ख) राज्य द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा राज्य द्वारा अपने। पर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन;
(ग) राज्य की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की ओंभरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना;
(घ) राज्य की संचित निधि में से धन का विनियोग;
(ङ) किसी व्यय को राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रकम को बढ़ाना;
(च) राज्य की संचित निधि या राज्य के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन; या
(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।
(2) कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा, कि वह जुर्माना अन्य धनीय शास्त्रियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीस की या की गई सेवाओं के लिए फीस की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।
(3) यदि यह प्रश्न उठता है कि विधान परिषद वाले किसी राज्य के विधानमंडल में पुरःस्थापित कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर उस राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होगा।
(4) जब धन विधेयक अनुच्छेद 198 के अधीन विधान परिषद को प्रेषित किया जाता है और जब वह अनुच्छेद 200 के अधीन अनुमति के लिए राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब प्रत्येक धन विधेयक पर विधानसभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है
अनुच्छेद 200
विधेयकों पर अनुमति
जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा या विधान परिषद वाले राज्य में विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है ।
परन्तु राज्यपाल अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक प्रस्तुत किये जाने के पश्चात यथाशीघ्र उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो सदन या सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि सदन या दोनों सदन विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करें और विशिष्टतया किन्हीं ऐसे संसाधनों के पुरःस्थापन की वांछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन या दोनों सदन विधेयक पर तदनुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राज्यपाल के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुमति नहीं रुकेगा ।
परन्तु यह और कि जिस विधेयक से, उसके विधि बन जाने पर, राज्यपाल की राय में उच्च न्यायालय की शक्तियों का ऐसा अल्पीकरण होगा कि वह स्थान, जिसकी पूर्ति के लिए वह न्यायालय इस संविधान द्वारा परिकल्पित है संकटापन्न हो जाएगा, उस विधेयक पर राज्यपाल अनुमति नहीं देगा, किन्तु उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा ।