जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 105 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी। और पढ़ने के बाद हमें अपना कमेंट अवश्य करे।
धारा 106 —
इस धारा के अनुसार कौन से न्यायालय के द्वारा अपील सुनी जाएगी यह बताया गया है। इस धारा के अनुसार जहां पर किसी आदेश की अपील अनुज्ञात है। तो वहां वह उस न्यायालय में होगी। जिसमें उस वाद की डिक्री की अपील होती है । तथा जिसमें ऐसा आदेश किया गया था या फिर जहां ऐसा आदेश अपीली अधिकारिता के प्रयोग में किसी न्यायालय द्वारा जो की उच्च न्यायालय द्वारा नहीं है । किया जाता है वहां वह उच्च न्यायालय में होगी।इसमे यह बताया गया है की —
आदेश की अपील उसी न्यायालय में की जा सकेगी । जिसमें कि उस बाद में को जिसमें ऐसा आदेश किया जाता है। जिसमे आज्ञप्ति से अपील होती है।
यदि आदेश करने वाला न्यायालय ऐसा आदेश अपील में करता है तो उस आदेश से अपील उच्च न्यायालय होगी।
धारा 107 —
इस धारा के अनुसार अपील न्यायालय की शक्तियों को बताया गया है। इस धारा के अनुसार अपील न्यायालय की शक्तिया इस धारा के शर्तो और परिसीमाओ के अधीन रहते हुए जो शक्तिया विहित की जाए ।
(क )अपील न्यायालय को यह शक्ति होगी की वह किसी भी मामले को जिसका अपील किया गया है उसको अंतिम रूप मे अवधारित करे।
(ख) मामले का प्रतिश्रेशण करे।
(ग)विवाधक विरचित करे और उनको विचारण के लिए निर्द्रेषित करे।
(घ) अतिरिक्त साक्ष का लिया जाना अपेिक्षत करे ।
(2) पूर्वोक्त के अधीन रहते हुएकिसी अपील न्यायालय को वे ही शक्तिया और वह जहां तक हो सके उउनका पालन
करेगा, जोआरंभिक अिधकािरता वाले न्यायालय मे संस्थित वादो के अधीन रहते हुए जो उन्हे प्रदत्त किए गए या फिर अधिरोपित किए गए है।
धारा 108 –
इस धारा के अनुसार अपीली डिक्रिया और आदेश की अपील की प्रक्रिया को बताया गया है।मूल डिक्रियों की अपील से सम्बिन्धत इस भाग के उपबन्ध जहां
तक हो सके,—
(क) अपीलीडिक्रियों की अपील को लागू होना तथा
(ख) उन आदेश की अपील को लागू होना जो इस संहता के अधीन या ऐसी किसी विशेष या स्थानीय विधि के
अधीन किए गए है जिसमे कोई भिन्न प्रक्रिया उपबंधित नही की गयी है।
धारा 109
इस धारा के अनुसार उन शर्तों को प्रदान करना बताया गया है। जिनके तहत सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है:
उच्च न्यायालय के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश से संबन्धित
सामान्य महत्व के कानून के पर्याप्त प्रश्न से संबंधित मामला
इस तरह के प्रश्न से निपटने के लिए उच्च न्यायालय इसे सर्वोच्च न्यायालय के लिए उपयुक्त मानता है
धारा 110
इस धारा का लोप किया गया है।
धारा 111
इस धारा को भी निरसित कर दिया गया है।
धारा 112
इस धारा के अनुसार इस संहिता मे अंतर्विष्ट किसी भी बात के लिए यह समझा जाएगा। कि वह —
संविधान के अनुच्छेद 136 या अन्यकिसी उपबन्ध के अधीन उच् चतम न्यायालय की शक्तिया पर पर्भाव
डालती है अथवा
(ख) उच् चतम न्यायालय मे अपीलों को उपिस्थत करने के लिए या उसके सामने उनके संचालन के लिए उस
न्यायालय द्वारा बनाए गए और तत्समय प्रभाव किसी नियमो के हस्तक्षेप करती है।
इसमे अन्तिवष्ट कोई भी बात किसी भी दाण्डक या नाविधकरण विषयक या उपनाविधकरण विषयक अिधकािरता के
विषयो अथवा प्राइस न्यायालयों के अधीन आदेश और अपील को लागू नही होता है।
धारा 113
इस धारा के अनुसार उच्च न्यायालय को निर्देश को बताया गया है। उन शर्तो और परिसीमाओ के अधीन रहते हुए जो विहित की जाए उस अनुसार कोई भी न्यायालय मामले का कथन करके उसे उच्च न्यायालय की राय के लिए निर्देशित कर सकेगा । और उच्च न्यायालय उस पर ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।
परंतु जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है । कि उसके समक्ष लंबित मामले में किसी अधिनियम या अध्यादेश या विनियम अथवा किसी अधिनियम अध्यादेश या विनियम मैं अंतर्विष्ट किसी उपबंध कि विधिमान्यता के बारे में ऐसा प्रश्न अंतरवलीत है। तथा जिसका अवधारण उस मामले को निपटाने के लिए आवश्यक है और उसकी यह राय है कि ऐसा अधिनियम जो कि अध्यादेशया विनियम या उपबंध अविधिमान्य या अपरिवर्तनशील है।
किंतु उस उच्च न्यायालय द्वारा जिसके वह न्यायालय अधिनस्थ है। या उच्चतम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित नहीं किया गया है। तथा वहां न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को ऊपवर्णित करते हुए मामले का कथन करेगा और उसे उच्च न्यायालय की राय के लिए निर्देशित करेगा।
स्पष्टीकरण- इस धारा में “विनियम” बंगाल, मुंबई या मद्रास संहिता का कोई भी विनियम या साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) मैं या किसी राज्य के साधारण खंड अधिनियम में परिभाषित कोई भी विनियम अभिप्रेत है।
उदाहरण —
गोवा उच्च न्यायालय के मतानुसार केवल ऐसे ही मामलों को उच्च न्यायालय में निर्देशित किया जाएगा जिनकी डिक्री के विरुद्ध अपील नहीं हो सकती हो।
1972 ए आई आर (गोवा) 3131
राजस्थान उच्च न्यायालय ने अभी निर्धारित किया है । कि भिन्न-भिन्न न्याय पीठो द्वारा किराया निर्धारण के संबंध में विभिन्न मत किराया के वाद में दिए गए जिससे परिस्थिति जटिल हो गई और किराया अदायगी में दुबारा चूक हुई। इस विवादित प्रश्न को निर्णय हेतु इसे बृहद पीठ के समक्ष निर्देशित किया गया। निर्देश का सकारात्मक उत्तर दिया गया कि दूसरी चूक होने पर भी किराए का निर्धारण होना चाहिए।
उम्मीद करती हूँ । आपको यह समझ में आया होगा। अगर आपको ये आपको पसन्द आया तो इसे social media पर अपने friends, relative, family मे ज़रूर share करें। जिससे सभी को इसकी जानकारी मिल सके।और कई लोग इसका लाभ उठा सके।
यदि आप इससे संबंधित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमें कुछ जोड़ना चाहते है। या इससे संबन्धित कोई और सुझाव आप हमे देना चाहते है। तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में जाकर अपने सुझाव दे सकते है।
हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है। कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो उसके लिए भी आप उससे संबंधित जानकारी भी ले सकते है।