सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 82 से धारा 86 का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 81   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी। और पढ़ने के बाद हमें अपना कमेंट अवश्य दीजिये।

धारा 82-

इस  धारा मे डिक्री के निष्पादन को बताया गया है। इसके अनुसार जहा पर सरकार के द्वारा या फिर इसके विरुद्ध जिसके बारे मे यह तात्पर्य किया गया है की वह ऐसे लोक अधिकारी के द्वारा अपने पद के अनुसार ही किया गया है। उसके द्वारा या फिर उसके विरुद्ध किसी वाद मे  यथास्थिति, भारत
संघ या किसी राज्य या लोक अधिकारी के विरुद्ध डिक्री पारित  की जाती है तो वहा ऐसे डिक्री  उपधारा (2) के उपबंध के अनुसार ही
निष्पादित की जाएगी।

ऐसे डिक्री  की तारीख से संगिणत तीन मास की अवधि तक तुष्ट न हो पर ऐसे किसी डिक्री के निष्पादन का आदेश निकाला जाएगा।

उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबंध किसी आदश या पंचाट के सम्बन्ध मे  ऐसे कानून लागू करते है तो उसके  संबंध
मे ऐसे लागू होंगे जैसे वह डिक्री के संबंध मे लागू होते है। पंचाट —

[भारत संघ] या किसी  राज्य के या यथापूर्व किसी  कायर् के बारे में किसी  लोक अधिकारी के विरुद्ध , चाहे
न्यायालय के द्वारा  या चाहे अन्य किसी प्राधिकारी के द्वारा दिया  गया हो,
(ख) इस संहिता  या तत्समय प्रभाव से किसी अन्य विधि के उपबंधों  के अधीन ऐसे निष्पादित किए  जाने के योग्य हो
मानो  वह डिक्री हो ।

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धारा 83 –

इस धारा मे यह बताया गया है की अन्य देशीय कब वाद ला सकते है। इसके अनुसार अन्यदेशीय शत्रु जो भारत सरकार के अनुज्ञा पर भारत मे निवास कर रहे है। और अन्य देशीय मित्र जो किसी भी न्यायालय मे वाद का विचारण करने के लिए अन्यथा सक्षम है। उस प्रकार से वाद ला सकते है मानो की वह भारत के नागरिक हो। किन्तु अन्यदेशीय शत्रु जो बिना किसी अनुज्ञा के भारत मे निवास कर रहे है और भी किसी देश मे निवास कर रहे है वह न्यायालय मे वाद नहीं  ला सकते है।

स्पष्टीकरण –

ऐसे हर व्यक्ति के बारे मे जो विदेश  मे निवास कर रहा है। और जिसकी भारत से युद्ध स्थित बनी हुई है। जो केंद्र सरकार के बिना किसी अनुज्ञा के कार्य कर रहा है। इस धारा के लिए ऐसा समझा जाएगा मानो वह देशीय शत्रु है।

धारा 84-

इस धारा के अनुसार यह बताया गया है की विदेशी  राज्य कब वाद ला सकते

इसके अनुसार कोई विदेशी राज्य किसी भी सक्षम न्यायालय मे  वाद ला सकता ।
 परन्तु यह तब जब वाद का उद्देश्य  ऐसे राज्य के किस  शासक मे  या ऐसे राज्य के किसी लोक अधिकारी मे  उसकी लोक हैसियत मे निहित
प्राइवेट अधिकार का परिवर्तन कराया हो ।

धारा 85-

इस धारा के अनुसार विदेशी शासकों की प्रतिरक्षा के लिए सरकार के द्वारा नियुक्त किए गए व्यक्ति के बारे मे बताया गया है।
विदेशी राज्य के शासक के अनुरोध पर या ऐसे शासक के रूप मे कार्य करने के लिए केन्द्रीय सरकार के सक्षम किसी व्यक्ति की राय पर , केन्द्रीय  सरकार ऐसे शासक की ओर से किसी  वाद का अभियोजन करने या प्रतिरक्षा करने के लिए किन्हीं व्यक्तियों के आदेश का नियुक्ति कर सकेगी। और ऐसे नियुक्ति व्यक्ति ऐसे मान्यताप्राप्त अभिकर्ता समझ जाएंगे। जो ऐसे शासकों के अधीन उपसंजात हो सकेंगे ।  और कार्य और आवेदन कर सकेंगे।  

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 इस धारा के अधीन नियुक्ति किसी विरंडिस्ट वाद के या फिर अनेक वादों के प्रयोजनों के लिए या ऐसे सभी वादों के प्रयोजनों के लिए की जा सकेगी जिनका ऐसे शासक की और से प्रतिरक्षा करना समय समय पर आवश्यक हो।

 इस धारा के अधीन नियुक्त व्यक्ति ऐसे किसी वाद या फिर किन्ही वाद मे  उपसंजात होने तथा आवेदन और कार्य करने के
लिए किन्ही व्यक्ति पर प्राधिकरत या नियुक्ति कर सकेगा मानो वह स्वयं ही उसका या उनका पक्षकार हो ।

धारा 86-

इस धारा के अनुसार विदेशी राज्यों ,राजदूतों और दूतों के विरुद्ध वाद को बताया गया है।इसके अनुसार विदेशी राज्य  पर कोई भी वाद किसी भी न्यायालय मे , जो
अन्यथा ऐसे वाद का विचारण  करने के लिए सक्षम है। उसको केन्द्रीय  सरकार की ऐसी सहमति के बिना नहीं लाया  जा सकेगा जो उस प्रकार
के किसी सचिव को लिखित रूप मे  प्रमाणित की गई हो ।
 परन्तु वह व्यक्ति जो स्थावर संपत्ति के अधिकार के तौर पर ऐसे विदेशी राज्य पर जो उसको धारण करता है या फिर उसको धारण करने का दावा करता है। यथा पूर्वक सहमति के बिना वाद ला सकता है।

ऐसे सहमति से विरंडिस्ट वाद या अनेक विरंडिस्ट वाद या किसी विरंडिस्ट वाद के समस्त वाद के संबंध में दी जा सकेगी।और उस वादों की दशा मे उस न्याययलय को विरंडिस्ट कर सकेगी। जिससे उस विदेशी राज्यों के विरुद्ध वाद लाया जा सकेगा। किन्तु वह तब तक नहीं दी जाएगी जब तक केंद्र सरकार को यह प्रतीत नहीं होता है की विदेशी राज्य –

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उस व्यक्ति के विरुद्ध जो उस पर वाद लाने की वाछा करता है । उस न्यायालय मे उपस्थित कर चुका
है, अथवा
(ख) स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा  उस न्यायालय की अधिकारिता  की स्थानीय सीमा के भीतर व्यापार
करता ह, अथवा
(ग) उन सीमा के भीतर स्थित  स्थावर संपत्ति पर  कब्जा रखता है और उसके विरुद्ध किसी ऐसे संपत्ति पर या फिर उस धन के बारे में जिसका अधिभार उसके अंदर है उसके अंतर्गत वाद लाया जाना है।

इस धारा के द्वारा उसको विशेषाधिकार का अधित्यजन अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से कर चुका है।

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