जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 67 तक का अध्ययन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 68 –
इस धारा के अनुसार ऐसी दस्तावेज के निष्पादन का साबित किया जाना बताया गया है। जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वार अपेक्षित है। इसके अनुसार यदि किसी दस्तावेज का अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा उपेक्षित है । तो उसे सज्ञख्य के रूप में उपयोग में न लाया जाएगा जब तक कि कम-से-कम एक अनुप्रमाणक साक्षी के द्वारा यदि कोई अनुप्रमाणक साक्षी जीवित और न्यायालय की आदेशिका के अध्यधीन हो तथा साक्ष्य देने के योग्य हो तो फिर उसका निष्पादन साबित करने के प्रयाजन से न बुनाया गया हो।
धारा 69-
इस धारा के अनुसार जब किसी भी अनुप्रमाणक साक्षी का पता न चलता है । तब तक सबूत- यदि किसी अनुप्रमाणक साक्षी का पात न चल सके अथवा यदि दस्तावेन का यूनाइटेड किंगडम में निष्पादित होना तात्पर्यित हो तो उस बात के लिए यह साबित करना होगा कि कम-से-कम एक अनुप्रमाणक साक्षी का अनुप्रमाण उसी के हस्तलेख में है। तथा यह कि दस्तावेज का निष्पादन करने वाले व्यक्ति का हस्ताक्षर उसी व्यक्ति के हस्तलेख में है।
धारा 70-
इस धारा के अनुसार अनुप्रमाणित दस्तावेज के पक्षकार द्वारा निष्पादन की स्वीकृति को बताया गया है। जिसमे अनुप्रमाणित दस्तावेज के किसी पक्षकार की अपने द्वारा उसका निष्पादन करने की स्वीकृति करना तथा उस दस्तावेज के निष्पादन का उसके विरुद्ध पर्याप्त सबूत होगा। यद्यपि वह ऐसी दस्तावेज हो जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित है।
धारा 71 –
इस धारा के अनुसार जबकि अनुप्रमाणक साक्षी निष्पादन का प्रत्याख्यान करता है। उस समय सबूत के बारे मे बताया गया है। जिसके अनुसार यदि अनुप्रमाणक साक्षी दस्तावेज के निष्पादन का प्रत्याख्यान करे या उसे उसके निष्पादन का स्मरण न हो तो ऐसे दशा मे उसका निष्पादन अन्य साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकेगा।
धारा 72 –
इस धारा के अनुसार उस दस्तावेज का साबित किया जाना जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित नहीं है बताया गया है। इसके द्वारा कोई अनुप्रमाणित दस्तावेज जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित नहीं है। तो ऐसे दशा मे ऐसे साबित की जा सकेगी मानों वह अनुप्रमाणित नहीं हो।
धारा 73 –
इस धारा के अनुसार हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा की तुलना अन्यों से जो स्वीकृत या साबित हैं। उसको बताया गया है।
यह अभिनिश्चित करने के लिए कि क्या कोई हस्ताक्षर लेख या मुद्रा उस व्यक्ति की है। जिसके द्वारा उसका लिखा या किया जाना तात्पर्चित है । उस अनुसार किसी हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा की, जिसके बारे में यह स्वीकृत करना या न्यायालय को समाधानप्रद रूप में साबित कर दिया गया है । कि वह उस व्यक्ति द्वारा लिखा या किया गया था उससे जिसे साबित किया जाना है। उससे उसकी तुलना की जा सकेगी यद्यपि वह हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा किसी अन्य प्रयोजन के लिए पेश या साबित न की गई हो।
धारा 74 –
इस धारा के अनुसार लोकदस्तोवेजें को बताया गया है।
इसके अनुसार निम्नलिखित दस्तावेजें लोक-दस्तावेजें है—
(1) वे दस्तावेजें जो-
(क) प्रभुसत्तासम्पन्न प्रधिकारी के
(ख) शासकीय निकायों और अधिकरणों के
(ग) भारत के किसी भाग के या कामनवेल्थ के या किसी विदेश के विधायी, न्यायिक तथा कार्यपालक लोक अफसर के।कार्यों के रूप में या कार्यों के अभिलेख के रूप में है।
(2) किसी राज्य में रखे गए प्राइवेट दस्तावेजों के लोक-अभिलेख के रूप मे रखे गए है।
धारा 75 –
इस धारा के अनुसार प्राइवेट दस्तावेज़ के बारे मे बताया गया है की अन्य सभी दस्तावेज़ प्राइवेट दस्तावेज़ है।
धारा 76-
इस धारा के अनुसार लोक-दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां कौन कौन सी है यह बताया गया है। इसके अनुसार हर लोक ऑफिसर जिसकी अभिरक्षा में कोई ऐसी लोक दस्तावेज है। जिसमे उनको निरीक्षण करने का किसी भी व्यक्ति को अधिकार है। तथा वह दस्तावेज़ की मांग किए जाने पर उस व्यक्ति को उसकी प्रति उसके लिए विधिक फीस चुकाए जाने पर प्रति के नीचे इस लिखित प्रमाण-पत्र के सहित देगा कि वह यथास्थिति ऐसी दस्तावेज की या उसके भाग की शुद्ध प्रति है।
तथा ऐसा प्रमाण-पत्र ऐसे ऑफिसर द्वारा दिनांकित किया जाएगा और उसके नाम और पदाभिधान से हस्ताक्षरित किया जाएगा तथा जब कभी ऐसा ऑफिसर विधि द्वारा किसी मुद्रा का उपयोग करने के लिए प्राधिकृत है, तब मुद्रायुक्त किया जाएगा, तथा इस प्रकार प्रमाणित ऐसी प्रतियाँ प्रमाणित प्रतियाँ कहलाएंगी।
स्पष्टीकरण — जो कोई ऑफिसर पदीय कर्त्तव्य के मामूली अनुक्रम में ऐसी प्रतियाँ परिदान करने के लिए प्राधिकृत है। वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसी दस्तावेजों की अभिरक्षा रखता है।
धारा 77-
इस धारा के अनुसार प्रमाणित प्रतियों के पेश करने द्वारा दस्तावेजों का सबूत को बताया गया है।
इसके अनुसार ऐसी प्रमाणित प्रतियां उन लोक दस्तावेजों की या उन लोक दस्तावेज के भागों की अन्तर्वस्तु के सबूत में पेश की जा सकेंगी जिनकी वे प्रतियां होना तात्पर्यित हैं।
धारा 78 –
इस धारा के अनुसार अन्य शासकीय दस्तावेजों का सबूत को बताया गया है।
निम्नलिखित लोक दस्तावेजें निम्नलिखित रूप से साबित की जा सकती है।
(1) केन्द्रीय सरकार के किसी विभाग के या क्राउन रिप्रेजेन्टेटिव या फिर किसी ऐसे राज्य सरकार के या फिर किसी राज्य सरकार के किसी विभाग के कार्य, आदेश या अधिसूचनाएं
उन विभागों के अभिलेखों के द्वारा जो क्रमशः उन विभागों के मुख्य पदाधिकारियों द्वारा प्रमाणित हैं।
या किसी दस्तावेज द्वारा जो ऐसी किसी सरकार के गया यथास्थिति क्राउन रिप्रेजेन्टेटिव के आदेश द्वारा मुद्रित हुई तात्पर्यित हुई है।
(2) विधान-मण्डलों की कार्यवाहियां जो की क्रमशः इन निकायों के जर्नलों द्वारा या प्रकाशित अधिनियमों या संक्षिप्तियों द्वारा या सम्पृक्त सरकार के आदेश द्वारा]मुद्रित होना तात्पर्यित होने वाली प्रतियों द्वारा;
(3) हर मजेस्टी द्वारा या प्रिवी कौन्सिल द्वारा या ‘हर मजेस्टी की सरकार के किसी विभाग द्वारा निकाली गई उद्घोषणाएं, आदेश या विनियम,लन्दन गजट में अन्तर्विष्ट या कवीन्स प्रिंटर द्वारा मुद्रित होना तात्पर्यित होने वाली प्रतियों या उद्धरणों द्वारा
(4) किसी विदेश की कार्यपालिका के कार्य या विधान मंडल की कार्यवाहिया जो की उनके प्राधिकार से प्रकाशित या उस देश में सामान्यतः इस रूप में गृहीत, जर्नलों द्वारा, या उस देश या प्रभु की मुद्रा के अधीन प्रमाणित प्रति के द्वारा या किसी केन्द्रीय अधिनियम में उनकी मान्यता द्वारा प्राप्त हुई है।
(5) किसी राज्य के नगरपालिक निकाय की कार्यवाहियांजो की ऐसी कार्यवाहियों की ऐसी प्रति द्वारा जो उनके विधिक पालक द्वारा प्रमाणित है। या ऐसे निकाय के प्राधिकार से प्रकाशित हुई तात्पर्यित होने वाली किसी मुद्रित पुस्तक द्वारा
(6) किसी विदेश की किसी अन्य प्रकार की लोक दस्तावेजें,मूल द्वारा या उसके विधिक पालक द्वारा प्रमाणित किसी प्रति द्वारा जिस प्रति के साथ किसी नोटरी पब्लिक की, या भारतीय कौन्सल या फिर राजनयिक अभिकर्ता की मुद्रा के अधीन यह प्रमाणपत्र है। कि वह प्रति मूल की विधिक अभिरक्षा रखने वाले आफिसर द्वारा सम्यक् रूप से प्रमाणित है, तथा उस दस्तावेज की प्रकृति उस विदेश की विधि के अनुसार साबित किए जाने पर।
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