सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 13 से 20 तक का विस्तृत अध्ययन

फ़ॉरेन कोर्ट वह कोर्ट होता है जिसका अधिकार क्षेत्र भारत से बाहर होता है।यह सिविल प्रक्रिया संहिता के धारा 2(6) मे बताया गया है।  इसमे विदेशी न्यायालय आता है कोई कोर्ट फोरेंग कोर्ट तभी होगी जब वह भारत के बाहर की हो और वह केंद्र सरकार द्वारा स्थापित न हो और न ही उसका संबंध केंद्र सरकार से हो।

सेक्शन 13 सिविल प्रक्रिया संहिता –

सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार फ़ॉरेन जजमेंट कब प्रभाव मे आएगा और कब वह प्रभाव मे नही होगा कब यह निश्चायक माना जाएगा ।  इसको बताया गया है और res judicata कब लागू नही होगा। जब फ़ॉरेन judgement कोंपेटेंट कोर्ट द्वारा नही दिया गया हो या विदेशी कोर्ट द्वारा treaty के अनुसार judgement नही दिया गया। या व्यक्ति फ़ॉरेन judgement से संतुस्ट नही है।

यदि किसी कोर्ट ने इंडियन लॉं को नही माना है या दोनों पछकारो को नही सुना या उसमे से एक पच्छ अपना पच्छ नही रखा है तो वह नही माना जाएगा।

यदि पच्छकार 2 देशो से संबन्धित है तो दोनों देश के नियम को ध्यान रखकर decision देना होगा यदि ऐसा नही किया गया तो यह मान्य नही होगा।

यदि नैचुरल जस्टिस को ध्यान मे नही रखा है तो यह लागू नही होगा।

जब कोई judgement फ़्रौड के द्वारा प्राप्त किया गया हो तो वह प्रभावी नही होगा।

जब इंडियन substancive नही मान रहा हो और उसके विरोध मे judgement दिया हो।

यदि इसके अतिरिक्त कोई केस है तो वह रेस जुडीकटा के अनुसार कार्य करेगा । और इसके विरुद्द नही जा सकते है इसके अनुसार विदेशी निर्णय इंडिया मे भी मान्य होगा । और यदि इससे संबन्धित है तो व्यक्ति पुनः केस दायर कर सकता है और यह ऐसे प्रभाव मे लाया जाएगा जैसे कोई नया केस फ़ाइल हुआ है।

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धारा 14 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार –

इसमे यह बताया गया है कि विदेशी निर्णय की उपधारणा क्या है और इंडिया मे वेदेशी निर्णय कब मान्य होगा।

जब विदेशी निर्णय का कोई प्रमाण न्यायालय मे प्रस्तुत किया जाएगा की विदेशी कोर्ट ने यह निर्णय दिया है तब यह मान्य होगा। और यदि किसी व्यक्ति द्वारा जब तक यह सिद्ध नही किया जाएगा की यह competent कोर्ट द्वारा निर्णय नही दिया गया है तब तक न्यायालय इसको सही निर्णय मानेगी और उसके अनुसार चलने को कहेगी।

धारा 15 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार –

 यह वाद दाखिल करने का स्थान को बताता है। इसके अनुसार नियम बताए गए है इसके अनुसार कोई वाद सबसे पहले लोअर कोर्ट मे दाखिल करना होता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता के इस धारा मे वाद सबसे पहले सेसन कोर्ट फिर हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट मे दायर होगी पर अगर कोई उच्च कोर्ट कोई निर्णय देती है तो यह मान्य होगी। इसको मना नही किया जा सकता है। 

धारा 16 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार-

इसमे यह बताया गया है कि अचल सम्पतियों से संबंधित वाद को कहा दायर कर सकते है। इसके अनुसार अचल सम्पतियों से संबंधित वाद वाहा के लोकल कोर्ट मे दायर किया जा सकता है जहाँ सम्पति का स्थान हो। 

इसमे सम्पतियों का विभाजन

सम्पतियों का किराया लाभ आदि सम्मलित है । 

इसके अलावा संपति से संबंधित लोन, मॉर्गेज, चार्ज आदि शामिल हैं। किसी चल संपत्ति से संबंधित वाद को भी वहा दायर किया जा सकता है जहा पर संपत्ति का स्थान है। या किसी के अधिकार से संबंधित वाद सम्पति जहाँ स्थित है वहा पर कर सकते हैं। जहाँ पर अचल संपत्ति के रिलीफ या compensasion से जुडा मामला है तो वाद को प्रतिवादी के स्थान पर या अचल संपत्ति जहा स्थित हो वहा कर सकते हैं। 

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धारा 17 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार –

इसमे यह बताया गया है कि यदि अचल संपत्ति एक से अधिक जगह पर है तो उसमे से किसी भी स्थान पर वाद दायर किया जा सकता है। इसके लिए यह आवश्यक नही है कि कोई निश्चित स्थान पर ही वाद दायर किया जाए। 

धारा 18 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार-

यहाँ पर यह स्पस्ट किया गया है कि यदि अचल संपत्ति से संबंधित वाद कहा किया जाए इसमे कोई संदेह है तो यह किसी भी संदेह वाली जगह पर किया जा सकता है। न्यायालय को यदि लगा है की 2 स्थान को लेकर संदेह है और संपत्तियाँ दोनों स्थान पर है तो उनमे से किसी भी स्थान से संबंधित न्यायालय उस वाद को ले सकता है। उसके लिए वह रिपोर्ट देगा। और संतुष्ट होगा की वाद यहाँ दायर किया जा सकता है क्योकि यह सदेहप्रद है। 

यदि कोई पछकार इसकी शिकायत अपीलीय अदालत मे करता है तो अदालत उस याचिका को खारिज कर देगी। 

धारा 19 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार-

यह मुख्यतः टॉर्ट से संबंधित है इसके अनुसार यदि आपके चल संपत्ति मे कुछ गलत हुआ है या आपके साथ चल सम्पतियों से संबंधित कुछ गलत हुआ है तो आप वाद कहा दायर कर सकते है। इस धारा मे यही बताया गया है। 

इसमे बताया गया है की जब वाद compensation से संबंधित हो और प्रतिवादी तथा वाद जहाँ स्थित हो एक ही स्थान न हो तो प्रतिवादी के अनुकूल स्थान वाद दायर करने के लिए चुनना होगा। 

उदाहरण के लिए यदि क और खा दोनों दोस्त है और क खा की प्रोपर्टी जो की दिल्ली मे थी कब्जा कर लिया और क मथुरा मे रहता है तो खा वाद या तो दिल्ली मे या मथुरा मे दायर कर सकता है। 

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धारा 20 सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार-

इसके अनुसार वाद दायर करने से संबंधित स्थान जो 16 से 18 तक मे नही कर सकते इसमे कर सकते है। इसके अनुसार यदि contract हुआ है तो या तो जहाँ contract हुआ है या फिर जिस स्थान पर beech of contract हुआ है वहा वाद दायर कर सकते है। इसके अतिरिक्त जहाँ प्रतिवादी रहता है वहा भी वाद दायर कर सकते है या फिर इनमे से किसी भी स्थान पर जहा न्यायालय वाद को लेने को तैयार हो जाए। 

उदाहरण के लिए य ने ह और ज से contract किया जो की सुल्तानपुर मे हुआ, य अयोध्या मे रहता है, ह कानपुर और ज नागपुर मे रहता है तो या वाद सुल्तानपुर मे दायर कर सकता है इसके अतिरिक्त कानपुर और नागपुर मे भी वाद दायर कर सकते हैं। 

इस प्रकार हमने आपको धारा 13 से धारा 20 तक का अध्ययन कराया इसमे यदि आपको कोई त्रुटि लगती है। या आप इससे संबन्धित कोई सुझाव देना चाहते है तो आप हमे कमेंट कर बता सकते है।

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