आपको मैंने पहले से ही संविदा के बारे मे बताया है। जिसमे मैंने बताया है की संविदा क्या होता है इसके लक्षण क्या है। सर्वसम्मति क्या होता है इसका विस्तृत ज्ञान हमने आपको दिया है जो की पिछले पोस्ट मे मौजूद है आप उसको कांट्रैक्ट लॉं के टैग से देख सकते है तो अब हम उसके आगे का पढ़ेंगे। आज हम आपको भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 124 क्षतिपूर्ति की संविदा के बारे मे बताने जा रहे है।
क्षतिपूर्ति संविदा-
क्षति यानी हानि से बचाव जब किसी व्यक्ति को किसी वजह से कोइ हानि होती है और वह उस हानि से बचना चाहता है। तो वह क्षतिपूर्ति संविदा लेता है। यह भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 124 क्षतिपूर्ति की संविदा मे बताया गया है।
इसमे कोई व्यक्ति क्षति का दायित्व अपने उपर ले लेता है और इस प्रकार क्षतिपूर्ति संविदा करता है।
बीमा की संविदा क्षतिपूर्ति की संविदा कहलाती है। .
धारा 124 के अनुसार इसमे एक पछकार दूसरे पच्छकार को यह वचन देता है की वह संविदा से होने वाले क्षतिपूर्ति का भरण करेगा। इसमे वचन कर्ता अपने वचन आचरण से यह शपद् लेता है कि वह क्षतिपूर्ति करेगा।
जब किसी व्यक्ति द्वारा उसके कार्य या उसके आचरण से दूसरे व्यक्ति को हानि पहुँचती है। तब उस व्यक्ति का यह कर्तव्य बनता है की वह उसकी भरपायी कुछ राशि देकर करे जिससे उसकी हानि को दूर किया जाये। यह वादी को दिया जायेगा।
एक वाद मे कहा गया का मनुष्य जहाँ तक सोच सकता है क्षतिपूर्ति वाह तक ही संभव है। परंतु स्मिथ बनाम लंदन वेस्टर्न रेलवे वाद मे कहा गया कि यदि असावधानी की स्थित मे क्षतिपूर्ति कितनी भी हो सकती है।
एडमसं बनाम जायश –
इसमे वादी एक निलामकर्ता है और उसने प्रतिवादी के कहने पर कुछ गाय नीलाम किया और बाद मे पता चला की वह गाय प्रतिवादी की नही है। और वादी पर केस हो गया जिसे क्षतिपूर्ति प्रतिवादी द्वारा किया गया।
क्षतिपूर्ति संविदा के आवश्यक तत्व –
क्षतिपूर्ति संविदा सुरू मे साधारण संविदा की तरह होती है बाद मे यह क्षतिपूर्ति संविदा कुछ आवश्यक तत्वो के जुड़ जाने से हो जाती है।
इसके आवश्यक तत्व इस प्रकार है-
दो पक्षकार –
इसमे 2 पक्षकार होते है वचनदाता और वचन ग्रहीता जिसको क्षतिपूर्ति दाता और क्षतिपूर्ति धारी होती है।
क्षतिपूर्ति दाता –
वह व्यक्ति जो पक्षकार को उसके हानि से बचाने का वचन देता है। क्षतिपूर्ति दाता कहलाता है।
क्षतिपूर्ति धारी –
यह वह पक्षकार होता है जिसके दायित्व की रक्षा करने के लिए वचन दिया जाता है।
स्वतंत्र सहमति –
इसमे दोनों पक्षकारो के मध्य स्वतंत्र सहमति होनी आवश्यक है दोनों पक्षकार अपनी मर्जी से संविदा किए हो और उसका कोई कारण या उद्देश्य होना आवश्यक है।
पक्षकारो की सक्षमता-
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार केवल वे व्यक्ति ही अनुबन्ध करने की क्षमता रख सकते हैं ।
जो वयस्क हैं
जिनका स्वस्थ मस्तिष्क हैं।
जो राजनियम द्वारा अनुबन्ध के लिए अयोग्य घोषित नही किये गये हैं।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि राजनियम द्वारा अनुबन्ध के लिए अयोग्य घोषित व्यक्ति जैसे राष्ट्रपति, विदेशी राजदूत तथा दिवालिया आदि
प्रतिफल-
क्षतिपूर्ति अनुबंध मे प्रतिफल का होना आवश्यक है। प्रतिफल से तात्पर् दोनों पक्षकार द्वारा वचनदाता की इच्छा पर किये गये कार्य अथवा कोई कार्य करने अथवा कार्य करने से विरत रहने के लिए दिये गये वचन से है। ठहराव में प्रतिफल ही इस बात का प्रमाण है कि पक्षकार आपस में वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा रखते हैं। इसके अतिरिक्त ठहराव का उद्देश्य भी न्यायोचित होना चाहिए।
क्षतिपूर्ति दाता का दायित्व –
इसको धारा 125 मे बताया गया है, इसमे क्षतिपूर्ति धारी अपने अधिकार मे कार्य करते हुए क्षतिपूर्ति दाता से सभी नुकसान ,वो सभी धन जो मुकदमे के दौरान खर्च किए हो। जो वाद करने के मध्य क्षतिपूर्ति दाता से ।अगर कोई समझौता हुआ है तो उसका राशि उसको दिया जाये और वह इसकी वसूली कर सकता है।
क्षतिपूर्ति दाता के अधिकार-
इसके अनुसार जब क्ष्हतिपूर्तिदता ने नुकसान की भरपाई कर दी तो क्षतिपूर्ति दाता क्षतिपूर्ति धारी का अधिकार ग्रहण कर सकता है।
इसके अनुसार क्षतिपूर्ति धारी का वाद करने का अधिकार क्ष्हतिपूर्ति दाता को मिल जाएगा। क्योकि उसने सभी क्षति की पूर्ति कर दी है।
क्षतिपूर्ति कर्ता से क्षतिपूर्ति धारी को जितनी राशि दी है उतनी ही राशि क्षतिपूर्ति का वाद लगाकर तीसरे व्यक्ति से प्राप्त कर सकता है उससे अधिक नही।
यदि क्षतिपूर्ति धारी को संविदा के बाहर हानि हुई है तो क्षतिपूर्ति कर्ता उसका जिम्मेदार नही होता है।
इसका एक उदाहरण इस प्रकार है । त ने स से कुछ सामान कानपुर पाहुचाने को कहा और यह भी निर्धारित किया की किस समय वह पहुचेगा त उसको वह से ले लेगा परंतु वह निश्चित समय टीके नही पाहुच सका और स ने माल वही रख चला गया जिसमे से कुछ माल गायब हो गया अब स उसका जिम्मेदार नही होगा।
क्षतिपूर्ति और गारंटी मे अंतर –
क्षतिपूर्ति और गारंटी मे निम्न अंतर होता है।
क्षतिपूर्ति तब होती है जब एक पक्षकार दूसरे पक्षकार के नुकसान की भरपाई करने का वादा करता है। और गारंटी यह है कि जब कोई व्यक्ति दूसरे पक्षकार को यह आश्वासन देता है कि वह अपने द्वारा किए गए वादे को पूरा करेगा तथा तीसरे पक्षकार के भी दायित्व को पूरा करेगा यदि वह खुद वादा को पूरा नही करता है।
जब यह संविदा में प्रवेश करते समय किसी को टैस्ट को को सुरक्षित करने के बारे में होता है, तो लोग ज्यादातर क्षतिपूर्ति या गारंटी के अनुबंध के लिए जाते हैं।
क्षतिपूर्ति मे गारंटी तब होती है जब गारंटी मे इसके होने की संभावना होती है।
क्षतिपूर्ति किसी अन्य व्यक्ति के नुकसान के लिए जिम्मेदार होने और उन्हें किसी भी नुकसान या क्षतिपूर्ति के लिए सहमत होने का वादा है
गारंटी एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को किया गया वादा होता है यदि वह व्यक्ति भुगतान नही करेगा तो मै उसका भुगतान करूँगा।
क्षतिपूर्ति मे 2 व्यक्ति होते है क्षतिपूर्ति दाता और क्षतिपूर्ति धायी।
गारंटी मे 3 पच्छ होते है ऋण दाता, ऋणी, और गारंटर
यह भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 124 मे दिया गया है।गारंटी भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 126 मे दिया गया।
इसमे दो व्यक्ति यानी क्षतिपूर्ति कर्ता और क्षतिपूर्ति धारी होते हैं। इसमे तीन पच्छ लेनदार, देनदार और ज़मानत होता है।
क्षतिपूर्ति मे संविदा की संख्या एक होता है। जबकि गारंटी मे तीन होता है।
प्रमोटर के दायित्व की डिग्री मुख्य होती है।गारंटी मे यह माध्यमिक होता है।
क्षतिपूर्ति का उद्देश्य नुकसान की भरपाई के लिए होता है गारंटी वचन देने वाले को आश्वासन देता है।
क्षतिपूर्ति मे देयता की परिपक्वता होती है। गारंटी मे जब आकस्मिकता होती है।