सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 79 से धारा 81का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 78  तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराये समझने मे आसानी होगी। और पढ़ने के बाद हमे अपना कमेंट अवश्य दीजिये।

धारा 79

इस धारा के अनुसार सरकार के द्वारा या उसके वीरुध वाद या अपनी पदीय हैसियत मे लोक अधिकारी के द्वारा या उसके विरुद्ध किया गया वाद  को बताया गया है जो कि –

केंद्र सरकार के द्वारा या उसके विरुद्ध किया गया वाद कि दशा मे भारत एक संघ होगा।

किसी राज्य सरकार कि दशा मे वह एक राज्य होगा।

धारा 80

इस धारा के अनुसार  कानूनी नोटिस के बारे मे बताया गया है।

इसमे कानूनी नोटिस जारी करने की प्रक्रिया क्या होगी यह बताया गया है । इसके अनुसार यह  केवल दीवानी मामलों में दायर किया जाता है। एक कानूनी नोटिस एक प्रकार की सूचना होती  है और इस प्रकार निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध होती है।

शिकायत से संबंधित सटीक बयान और तथ्य जिसके लिए कार्रवाई की जानी हैस्पस्ट और सरल शब्दो मे वर्णित होती है।

शोक पार्टी द्वारा मांगी गई विकल्प / राहत।

हाथ में राहत / समस्या को कैसे हल किया जाए इसके  तथ्यों का सारांश और इसे हल किया जा सकता हैआदि का विवरण ।

उस समस्याओं के बारे में पूरी जानकारी जिससे  कि पीड़ित पक्ष का सामना करना पड़ रहा है।  इस मुद्दे को हल करने के लिए क्या किया जा सकता है ।इसको  संयुक्त रूप से स्पष्ट रूप से उल्लेख किए जाने की आवश्यकता है। कानूनी नोटिस के अंतिम  में एक विस्तृत विवरण होना चाहिए कि राहत कैसे प्राप्त की जा सकती है । या फिर  समस्या को हल कैसे किया जा सकता है।  अगर शिकायत पर पारस्परिक रूप से सहमति हो।तो उसका निवारण कैसे होगा ।

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तैयार कानूनी नोटिस, दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य कर सकता है।  और यह  अदालत को भी  इस मुद्दे को हल करने में मदद कर सकता है।  अगर वे दोनों इस मुद्दे पर समझौता करने के इच्छुक हैं।

कानूनी नोटिस के लिए   एक साधारण दस्तावेज, सटीक और सटीकता की आवश्यकता होती है।  और यह सुनिश्चित करने के लिए कि भेजे गए संदेश को सही करने के लिए निश्चित भाषा का उपयोग सही तरीके से की  है। एक कानूनी विशेषज्ञ या एक एजेंट कानून के अनुसार कानूनी नोटिस को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है।

सबसे पहले  कानूनी नोटिस का मसौदा तैयार करना है।  इस मुद्दे को हल करने के लिए एक निश्चित  राहत और निश्चित समय सीमा (जो की  30 से 60 दिन) होता है। इस मुद्दे को हल करने के लिए दूसरे पक्ष को संबोधित किया जाना है।  और एक के माध्यम से भेजा गया पंजीकृत विज्ञापन पोस्ट।

नोटिस भेजने के बाद भेजी गई रसीद की कॉपी को सेव कर लें। तथा कोर्ट केस के लिए फाइल करने के मामले में यह काम आ सकता है।

इसके बाद कोर्ट केस दायर करने से पहले एक निश्चित अवधि तक प्रतीक्षा करें।

फिर जिस व्यक्ति या संस्था को कानूनी नोटिस के द्वारा संबोधित किया जाता है। उसके पास उपरोक्त दिन होंगे नोटिस के साथ वापस लौटने या अदालत से बाहर निकलने के लिए सहमत होने के लिए।

अन्य पक्ष कानूनी नोटिस का जवाब दे भी सकते हैं और नहीं भीयह उस पर निर्भर करता है। और  यह उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है जिस पर कानूनी नोटिस को निर्धारित समय के भीतर जवाब भेजने के लिए संबोधित किया जाता है। यदि नोटिस का जवाब नहीं दिया जाता है। तो यह मान लिया जाएगा कि  कानून का पालन नहीं  किया जा रहा है। और ऐसा करने से  नुकसान हो सकता है। अदालत में उपस्थित होने पर दूसरे पक्ष को अनुचित लाभ दे सकता है।

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कानूनी नोटिस भी व्यक्तिगत रूप से भी  भेजा जा सकता है। एक कानूनी नोटिस का मसौदा तैयार कर सकता है,। और दूसरे पक्ष को भेजने से पहले इसे अधिकृत कर सकता है। हालाँकि, यदि कानूनी मामला ख़त्म करना बेहद ज़रूरी है।  अगर यह मामला अदालत तक पहुँचता है, और इस बात का हवाला देते हुए कि आपने जो दावा किया है।  वह आवश्यक है।  तो कानूनी नोटिस की प्रतियां बनाने के लिए कानून का विशेषज्ञ का होना आवश्यक होता है जो आपके लिए काम करेगा।

यही बात कानूनी नोटिस का जवाब देने के लिए भी लागू होती है।  क्योंकि यहां भी किसी को दूसरे पक्ष के द्वारा मांगे गए दावों पर वापस जाने के लिए उपयुक्त कानून का उपयोग नहीं करना चाहिए।

धारा 81

इस धारा के अनुसार गिरफ्तारी और उपसंजाति से छूट को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार ऐसा कोई भी कार्य जो लोक सेवक अधिकारी के द्वारा उसके पद के अंतर्गत किया गया हो उसके विरुद्ध संस्थित किए गए वाद मे –

डिक्री के निष्पादन मे से अन्यथा न तो गिरफ्तार किए जाने का दायित्व प्रतिवादी पर और न ही कुर्क किए जाने का दायित्व उसकी संपत्ति पर होगा।

जब न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि प्रतिवादी लोकसेवा का उपाय किए बिना अपने कर्तव्य से अनुपस्थित नही हो सकता है। वह वह उसको स्वीय उपसंजाति से छूट दे देगा।

सिविल प्रक्रिया संहिता की कई धराये अब तक बता चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

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यदि आपको इन धाराओ को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धाराओ मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video  भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है।  कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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